नक्सल क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल छोड़िए जनाब, न्यायधानी के मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था से आप पूरे प्रदेश के मेडिकल कॉलेज की हालत का अंदाजा लगा सकते है.

बिलासपुर का मेडिकल कॉलेज सिम्स कहने को तो 750 बिस्तरों का है. लेकिन यहां पिछले 15 दिनों से सोनोग्राफी की मशीन खराब पड़ी है और इसकी सूध लेने वाला कोई नहीं है. हालांकि इमरजेंसी मरीजों के इलाज के लिए पोर्टेबल मशीन चालू है, लेकिन बाकी मरीजों को सोनोग्राफी कराने के लिए निजी अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ रहे है. सोनोग्राफी के अलावा यहां टीएमटी, लिथोट्रिप्सी मशीन सालों से धूल खा रही है.

ये है खराब मशीनों की लिस्ट की लंबी सूची

पांच साल पहले डेंटल एक्सरे मशीन डेंटल विभाग में थी. वहीं एक्सरे होता था.  एमसीआई के ऑब्जेक्शन के बाद मशीन को रेडियोलॉजी विभाग में शिफ्ट किया था.  फिर सीटी स्कैन और एमआरआई के लिए नीचे काम शुरू हुआ तो जहां डेंटल एक्सरे चालू था उसे स्टोर बना दिया.  तब से मशीन बंद ही पड़ी है.

हृदय गति और क्षमता मापने वाली टीएमटी मशीन सालों से खराब है. हृदय से संबंधित इलाज कराने पहुंचने वाले मरीजों को वहीं से निजी संस्थान में जांच कराने की सलाह दी जा रही है.

पथरी के ऑपरेशन में काम आने लिथोट्रिप्सी मशीन सालों से बंद है.  इसे सिम्स के अफसरों ने चालू करना सही नहीं समझा.  जानकार बताते हैं कि यह मशीन आई और कुछ दिन बाद से ही बंद हो गई.  जो आजतक बंद ही है. अल्ट्रासाउंड शॉक वेव (लिथोट्रिप्सी) मशीन की मदद से पथरी को छोटे टुकड़ों में तोड़ने के लिए उपयोग की जाती हैं, ताकि ये टुकड़े आपके मूत्र के साथ शरीर से बाहर निकल सके.

वर्तमान में पेट से संबंधित बीमारियों के मरीज आ रहे हैं.  पेट के अंदर की समस्या को देखने के लिए एंडोस्कोपी का उपयोग किया जाता है लेकिन सिम्स में जांच बंद है. मशीन होने के बाद भी चालू नहीं कर पा रहे हैं.  डॉक्टरों का दावा है कि इमरजेंसी मरीजों की एंडोस्कोपी कर रहे हैं.