कवर्धा. मुख्यमंत्री के गृह जिले के ज्यादातर अस्पताल इन दिनों डॉक्टरों की राह जोहते नजर आ रहे हैं. इन शासकीय अस्पतालों को वर्षों से डॉक्टरों का इंतजार है लेकिन बार बार कोशिशों के बाद भी अब तक इन अस्पतालों को डॉक्टर नसीब नहीं हो सके हैं. आज भी जिले के शासकीय अस्पतालों में डॉक्टरों के कई पद रिक्त हैं.
सबसे दुखद बात है कि मुख्यमंत्री के गृह जिले के जिला अस्पताल में 12 विषेशज्ञ डाक्टरों के पद स्वीकृत हैं. जिनमें 7 विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद वर्षों से खाली पडे़ हैं, जिनमें हड्डी रोग, स्त्री रोग, निश्चेतना, मनोरोग, नाक-कान-गला विशेषज्ञ प्रमुख हैं. इसी तरह मेडिकल आफिसर के 15 पद स्वीकृत हैं, जिनमें 5 पद रिक्त हैं. यह हाल मुख्यमंत्री के गृह जिले का है तो ऐसे में प्रदेश के अन्य जिलों के अस्पतालों का क्या हाल होगा इसका अंदाजा खुद लगाया जा सकता है.
कवर्धा में एक जिला अस्पताल, 6 सामुदायिक केन्द्र, 24 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं. जिला अस्पताल में विशेषज्ञों के 7 पद, 6 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में विशेषज्ञों के 30 पद एवं 24 सामुदायिक केन्द्रों में 4 केन्द्रों को छोड़ सभी 20 केन्द्रों में डाक्टरों के पद रिक्त हैं.इतना ही नहीं यहां नर्स के पद भी बड़ी संख्या में रिक्त हैं. जिला अस्पताल में 36 पद नर्सों के रिक्त हैं.
कवर्धा सीएचएचओ अखिलेश चंद्र त्रिपाठी ने बताया कि इन अस्पतालों में डॉक्टरो की भर्ती के लिए लगातार प्रयास किये जा रहे हैं, इस भर्ती के लिए तीन बार विज्ञापन जारी किया जा चुका है. जिसमें डॉक्टरों के लिए पौने दो लाख रूपये की आकर्षक मंथली सैलरी भी रखी गई है. इसके बाद भी कोई डॉक्टर इस भर्ती में रूचि नहीं दिखा रहा है. त्रिपाठी ने बताया कि चार पद के लिए विज्ञापन जारी किया गया था जिसके लिए दो आवेदन आये थे और दोनों ही आवेदन चयन प्रक्रिया में है.त्रिपाठी ने कहा कि अब निजी अस्पतालों के डाक्टरों को सप्ताह में एक बार सेवा देने के लिए राजी किया जा रहा है जिससे मरीजों को थोड़ी राहत मिल सके.
नगरवासी अमीर खान का कहना है कि जब स्वास्थ्य विभाग के डायरेक्टर ने कहा था कि अप्रैल माह के अंत तक 6 डाक्टरों की नियुक्ति की जायेगी तो लगा था जिले के मरीजों को राहत मिलेगी लेकिन आज तक स्थिति जस की तस बनी हुई है.
ऐसे में विषेशज्ञों के न होने के कारण इन मरीजों को मजबूरी में निजी अस्पताल का रूख करना पड़ रहा है. पैसे वाले तो किसी तरह से अपना इलाज करा रहे हैं लेकिन गरीब वर्ग के लोगों को इलाज कराना महंगा पड़ रहा है. इस स्थिति में अपनों की जान बचाने के लिए परिजन ज्यादा पैसा खर्च कर निजी अस्पताल जाने को मजबूर हैं.