रायपुर-  मसला कानून में एक संशोधन के साथ शुरू हुआ था और यह संशोधन एक बड़े विरोध के रूप में जा खड़ा हुआ है. दरअसल हाल ही में छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता में संशोधन कर नया प्रावधान जोड़ दिया गया. नए प्रावधान के तहत राज्य सरकार आदिवासियों की जमीन सहमति से खरीद सकेगी और इसका इस्तेमाल राज्य और केंद्र सरकार की विकास से जुड़ी परियोजनाओं के लिए किया जा सकेगा. विधानसभा के शीतकालीन सत्र में कानून को मंजूरी दिए जाने के बाद से शुरू हुआ सियासी बवाल लगातार बढ़ रहा है. छह जनवरी को सर्व आदिवासी समाज का आंदोलन होना है, इससे पहले आज राज्य सरकार के चार बडे़ मंत्रियों ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर सफाई दी है. सरकार ने समाजिक स्तर पर बढ़ते विरोध की वजह कांग्रेस को बताया है. प्रेस कांफ्रेंस में तीन आदिवासी मंत्रियों रामसेवक पैकरा, केदार कश्यप और महेश गागड़ा की मौजूदगी में राजस्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय ने कहा कि- कांग्रेस आदिवासी समाज में संशोधित कानून को लेकर भ्रम फैला रही है.

प्रेमप्रकाश पांडेय ने कहा कि – आदिवासियों की जमीन राज्य और केंद्र सरकार की विभिन्न परियोजनाओं के लिए ही ली जाएगी. आदिवासियों की सहमति से ही उनकी जमीन ली जाएगी. उन्होंने कहा कि उन्हीं की जमीन ली जाएगी, जो देना चाहेगा. आदिवासियों से ली जाने वाली जमीन का उपयोग सडक, पुल-पुलिये जैसी अधोसंरचना के लिए की जाएगी. इसे किसी भी निजी क्षेत्र के उद्योगों को हस्तांतरित नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा कि कांग्रेस के पास अब कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं बचा है, लिहाजा आदिवासी को भ्रमित कर कांग्रेस राजनीतिक फायदा लेना चाहती है.

राजस्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय ने कहा कि कांग्रेस ये भ्रम फैला रही है कि कोई मंत्री जमीन खरीद लेगा या कोई बाहरी व्यक्ति जमीन खरीद सकेगा, जबकि ऐसा नहीं है. उन्होंने कहा कि केवल राज्य सरकार, केंद्र सरकार या सरकारी उपक्रम ही आदिवासियों की सहमति से जमीन लेंगे और सिर्फ सरकार अपने उपयोग के लिए ही जमीन का इस्तेमाल करेगी और निजी हाथों को जमीन नहीं सौंपी जाएगी. मंत्री ने कहा कि आदिवासियों को अब जमीन बेचने पर ज्यादा लाभ मिलेगा.

प्रेमप्रकाश पांडेय ने कहा कि कांग्रेस के पास कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं बचा है, इसलिए आदिवासी समाज को बरगलाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि सरकार आदिवासियों के बीच जाकर भ्रम दूर करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि चूंकि 2018 चुनावी साल है, इसलिए कांग्रेस इसे राजनीतिक हथियार बनाकर इसका इस्तेमाल कर रही है.

इधर कांग्रेस का पलटवार

सरकार के तीन आदिवासी मंत्रियों की मौजूदगी में राजस्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय की प्रेस कांफ्रेस लिए जाने के मुद्दे पर कांग्रेस ने कटाक्ष किया है. कांग्रेस प्रवक्ता आर पी सिंह ने कहा कि- हमें जानकारी मिली है कि प्रेस कांफ्रेस के दौरान तीनों ही आदिवासी मंत्रियों को बोलने नहीं दिया गया, जबकि पत्रकार आदिवासी मंत्रियों से यह जानना चाहते थे कि जब समाज के भीतर सरकार द्वारा जमीन लिए जाने का विरोध किया जा रहा है, तो इस विरोध के बीच आपका नजरिया क्या है. कांग्रेस का आरोप है कि आदिवासियों की जमीनों को लेकर उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाये जाने की यह पूरी कवायद है. क्योंकि सरकार ने भू राजस्व संहिता में जिस प्रावधान का जिक्र है, उसे कानून में परिभाषित नहीं किया गया है. विधानसभा में नए बिंदू को जोड़कर अलग से नियम बनाए जाने की बात कहीं गई है. ऐसे में सरकार का यह दावा कि आदिवासियों की जमीनों का दुरूपयोग नहीं होगा, यह बात समझ से परे हैं. प्रवक्ता आर पी सिंह ने कहा कि इससे पहले भी बस्तर जैसे आदिवासी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर आदिवासियों की जमीनों को सरकार ने उद्योगों के लिए अधिग्रहित किया था, लेकिन उद्योग नहीं लगे. जमीनें भी आदिवासियों को अब तक नहीं लौटाई जा सकी है, जबकि भू अधिग्रहण कानून में यह स्पष्ट प्रावधान है कि जमीन का उपयोग नहीं होने पर आदिवासियों को उनकी जमीन लौटाई जाएगी.

मुद्दा आदिवासियों के हितों से जुड़ा था, लिहाजा उम्मीद की जा रही थी कि प्रेस कांफ्रेस में आदिवासी मंत्री भी सरकार के इस फैसले पर अपना पक्ष रखेंगे, लेकिन उनकी चुप्पी विपक्ष को बड़ा मुद्दा दे गया. बहरहाल सरकार के संशोधित कानून को लेकर जिस तरह से विरोध सड़कों पर उतर आया है, ऐसे में क्या सरकार की यह सफाई क्या सार्थक होगी या फिर विरोध के बीच सरकार की साख दांव पर लगेगी, यह बड़ा सवाल बना हुआ है.