खैरागढ़. 1 सितंबर रंगमंच की दुनिया में एक महत्वपूर्ण तिथि है. इसी दिन प्रख्यात रंगनिर्देशक, चिंतक और नाटककार हबीब तनवीर का जन्म हुआ था और ब.व. कारंत का देहावसान हुआ था. इन दोनों रंगव्यक्तित्वों की पुण्य स्मृति में नाट्य विभाग, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ और गुड़ी सामाजिक और सांस्कृतिक समिति, रायगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में 1 तारीख की शाम डॉ. योगेंद्र चौबे द्वारा निर्देशित नाटक-“बाबा पाखंडी” का मंचन किया गया. दर्शक दीर्घा में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की माननीय कुलपति महोदया, कुलसचिव, समस्त संकायाध्यक्ष, प्राध्यापकगण, विद्यार्थी और नगर के वरिष्ठ साहित्यकार जीवन यदु उपस्थित रहें.

नाटक

बाबा पाखंडी की कथा मूलरूप से राजस्थान के प्रसिद्ध कहानीकार विजयदान देथा की कथा-टीडोराव से ली गई है. निर्देशक-डॉ. योगेंद्र चौबे ने मूल कथा को प्रासंगिक बनाने और छत्तीसगढ़ लोक का आवरण देने के उद्देश्य से कई दृश्यों को रचा और नाचा शैली को आधार बनाकर प्रस्तुति की.

इसे भी पढ़ें – नहीं रहे Siddharth Shukla, बालिका वधु से मिली थी पॉपुलैरिटी 

ये कहानी गांव के एक चालाक और निठल्ले लड़के-टेटका की है, जो अपनी पत्नी-टेटकी को लेने ससुराल जाता है. लेकिन संयोग से बरसात होने लगती है. वह अपने कपड़े उतारकर एक मटके में रखकर चलने लगता है. यहीं उसे एक भीगता हुआ गधा भी मिलता है. बरसात बंद होते ही वह अपने कपड़े पहन लेता है. अंदर घुसने से पहले वह टेटकी को खिड़की से झांककर देखता है. उसे पता चलता है कि 25 रोटी है, कुकरी साग है.

जब ससुर बरसात में उसके सूखे होने का कारण पूछता है, तो वह मजाक में कहता है कि मुझे जादू आता है. उसके बाबा बनने पर ससुर तब विश्वास कर लेता है जब टेटका ये भी बता देता है कि आज खाने में क्या-क्या बना है. यहीं से पूरे गांव में टेटका के बाबा होने की खबर फैल जाती है.

किस्मत उसका साथ देती है और वो राजा से भी अपने सोने के मंदिर बनाए जाने की घोषणा करवा लेता है. उसके इस पूरे प्रकरण को गधा बड़े ध्यान से देखता रहता है. टेटका का लालच यही खत्म नही होता, वो चुनाव लड़ने की नीति बनाता है तभी गधा उसकी इस नीति का प्रतिकार करता है लेकिन टेटका उसे ये कहकर चुप करा देता है कि तू गधा था, गधा है और गधा ही रहेगा. गधा इस बात को स्वीकारता है लेकिन दर्शकों के सामने एक प्रश्न खड़ा कर जाता है.

इसे भी पढ़ें – जाने-माने टीवी एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला का निधन, हार्ट अटैक से मौत 

नाटक के मंचन में प्रमुख भूमिकाओं में डॉ. योगेंद्र चौबे (जोकर1), परमानंद पांडेय (जोकर2), टिंकू देवांगन (टेटका), पेमिन मार्कण्डे (टेटकी), धीरज सोनी (गधा), घनश्याम साहू (चेला), अरुण भांगे (राजा), प्रतिज्ञा व्यास (रानी), हेमंत साहू (टेटकी का पिता), राजेश जैन आदि थें.

मंच विन्यास डॉ. चैतन्य आठले का था और प्रकाश परिकल्पना डॉ. आनंद पाडेय की थी. मंच संचालन डॉ. अजय पांडेय जी ने किया था.
अंत में माननीया कुलपति महोदया पदमश्री मोक्षदा चंद्राकर जी ने अपने उद्बोधन में कहा- यह नाटक सच्चे अर्थों में दो महान रंगव्यक्तित्वों के प्रति श्रद्धांजलि रही. हबीब तनवीर जी ने जिस प्रकार अपने नाटकों को बुना, उसी शैली में नाटक कर निर्देशक ने तनवीर जी की शैली को आगे बढाने का कार्य किया है.

कुलसचिव प्रो. आई. डी. तिवारी ने भी अपने वक्तव्य में कहा- कोरोना आपदा के बाद इस प्रस्तुति ने हमें गुदगुदाया भी और पाखंड पर सोचने को मजबूर भी किया. अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. मृदुला शुक्ल जी ने भी इस प्रस्तुति के लिए सभी कलाकारों को बधाई दी.