नई दिल्ली। केजरीवाल सरकार की ओर से पराली के समाधान के लिए दी गई बायो डी-कंपोजर छिड़काव तकनीक की केंद्र सरकार की एजेंसी वेपकॉस ने भी तारीफ की है. वेपकॉस को बायो डी-कंपोजर के प्रभाव पर अध्ययन करने की जिम्मेदारी दी गई थी. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वेपकॉस की रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि पराली का बायो डी-कंपोजर समाधान है और इसके इस्तेमाल से किसान भी बेदह खुश हैं.
वेपकॉस ने 4 जिलों के किसानों से की बात
वेपकॉस ने 4 जिलों के 15 गांव में जाकर 79 किसानों से बात की. 90 फीसदी किसानों ने स्वीकारा कि बायो डी-कंपोजर से 15-20 दिनों में पराली गल गई. मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा 42 और नाइट्रोजन की मात्रा 24 फीसदी बढ़ गई. इसी तरह बैक्टीरिया 7 गुना, गेहूं के अंकुरण में 17-20 फीसदी और पैदावार में 8 फीसदी की वृद्धि हुई. सीएम केजरीवाल ने कहा कि अगर सभी राज्य सरकारें बायो डी-कंपोजर का इस्तेमाल करें, तो दिल्ली की तरह वहां के किसान भी खुश हो सकते हैं. केंद्र सरकार से भी अपील है कि सभी राज्य सरकारों को किसानों के खेतों में बायो डी-कंपोजर का छिड़काव फ्री में कराने के निर्देश दिए जाएं. सीएम केजरीवाल ने कहा कि वे जल्द ही रिपोर्ट के साथ केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से मिलेंगे और उनसे व्यक्तिगत तौर पर इस मामले में दखल देने की गुजारिश करेंगे.
हमारे द्वारा उठाए गए कदमों से अब पूरे साल हवा रहती है साफ- अरविंद केजरीवाल
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बायो डी-कंपोजर की मदद से पराली के समाधान को लेकर केंद्र सरकार की एजेंसी वेपकॉस की आई रिपोर्ट की डिजिटल प्रेस कांन्फ्रेंस कर जानकारी दी. मुख्यमंत्री ने कहा कि अब दिल्ली की हवा पूरे साल साफ रहने लगी है. हम सब दो करोड़ दिल्लीवासियों ने मिलकर पिछले पांच-छह साल के अंदर कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिसकी वजह से सालभर दिल्ली की हवा काफी साफ रहती है, लेकिन अब अक्टूबर-नवंबर आने वाला है. 10 अक्टूबर के आसपास से दिल्ली की हवा फिर से खराब होने लगेगी. 10 अक्टूबर से लगभग नवंबर के अंत तक दिल्ली की हवा फिर खराब हो जाती है और उसका बड़ा कारण है कि आसपास के कई राज्यों में पराली जलाई जाती है, उसका जो धुआं आता है, उसकी वजह से हवा दूषित होती है. अभी तक सारी सरकारें एक-दूसरे के ऊपर आरोप लगाती थीं. राज्य सरकारें कहती थीं कि केंद्र सरकार कुछ पैसा नहीं दे रही है. केंद्र सरकार कहती है कि राज्य सरकारें काम नहीं कर रही हैं, लेकिन एक-दूसरे के ऊपर छींटाकशी करने से तो काम नहीं चलता है, हमें समाधान निकालना है. दिल्ली सरकार समाधान निकालने पर विश्वास रखती है.
गेहूं की बुआई के लिए किसानों को मिलता है कम समय, इसलिए डंठल जलाने को होते हैं मजबूर- सीएम
सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पिछले साल दिल्ली सरकार ने पराली का समाधान निकाला. इसके लिए पूसा इंस्टीट्यूट ने एक बायो डी-कंपोजर बनाया है. सीएम ने पराली से होने वाली समस्या के बारे में बताते हुए कहा कि किसान धान की फसल लगभग अक्टूबर के महीने में काटता है. धान की फसल कटने के बाद उसके तने (डंठल) का कुछ हिस्सा नीचे जमीन पर रह जाता है. इसी को पराली कहते हैं. धान की फसल कटने के बाद किसान को गेहूं की बुआई के लिए करीब 20-25 दिन का समय मिलता है. इस 20-25 दिन के समय के बीच में ही किसान को धान के डंठल से मुक्ति पानी होती है, इसलिए वे इसमें आग लगा देते हैं और सारी पराली जल जाती है. सारा खेत साफ हो जाता है और किसान दोबारा गेहूं की बुआई कर लेता है. खेत में पराली जलाने की वजह से बहुत प्रदूषण होता है.