सिवनी, रायपुर। छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के ग्राम-चुरनाटोला में महान बलिदानी राजा अमर शहीद शंकरशाह व कुंवर रघुनाथ शाह के प्रतिमा का अनावरण किया। इस कार्यक्रम का आयोजन गोंड समाज महासभा मध्यप्रदेश द्वारा किया गया। राज्यपाल ने अमर शहीद शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को नमन किया। इस अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह की अमर बलिदान गाथा हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत है, जो हम सभी को राष्ट्र प्रेम की प्रेरणा देते हैं।

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राज्यपाल ने कहा कि समाज के लिए एकजुट होकर प्रयास करें। इस समय कुछ विघटनकारी तत्व समाज को विघटित करने का प्रयास कर रहे हैं, धर्म, सम्प्रदाय, जाति के आधार पर बांटने का प्रयास कर रहे हैं, उनसे सावधान रहने की आवश्यकता है। राज्यपाल ने कहा कि मैं भी स्वयं गोंड समाज से हूं। गोंडी भाषा को स्थान मिले और उसके विकास के लिए मैं हरसंभव प्रयास करूंगी। उन्होंने कहा कि आदिवासी प्रकृति का पूजक होता है। मेरा आग्रह है कि अपनी संस्कृति और परंपराओं को न भूलें। उन्होंने आदिवासियों के जमीन अधिग्रहण के समय शेयर होल्डर बनाने का भी सुझाव दिया।

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राज्यपाल ने कहा कि आदिवासी समाज में वीर नारायण सिंह, टंट्या भील, राजा शंकरशाह और कुंवर रघुनाथ शाह जैसे अनेकों महानायक हैं, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया है। इनमें से कई का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं हो पाए और गुमनामी में खो गए। आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर उन्हें याद किये जाने की आवश्यकता है। उनकी जानकारी नई पीढ़ियों को दी जानी चाहिए, ताकि अपने पूर्वजों के योगदान को जान सकें। उइके ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के उपाध्यक्ष पद के तौर पर किए गए कार्यों की जानकारी दी।

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राज्यपाल ने कहा कि अमर शहीद गोंड महाराजा शंकरशाह व कुंवर रघुनाथ शाह गढ़ा साम्राज्य के गोंडवाना शासक थे। यह भूमि शुरू से ही वीरों की भूमि रही है। राजा शंकर शाह अंग्रेजों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के विरुद्ध थे और अंग्रेजों से स्वतंत्रता चाहते थे। डलहौजी की हड़प नीति के बाद भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि तैयार हो रही थी जिसकी जानकारी राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को भी लग गई थी। पिता-पुत्र ने तत्कालिक परिस्थितियों में शक्तिशाली संगठन तैयार कर लिया और मध्य प्रांत में धीरे-धीरे उनके नेतृत्व में मोर्चा तैयार हो गया।

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राज्यपाल उइके ने कहा कि राजा शंकर शाह ने मध्यप्रांत में बैठक बुलाकर अंग्रेजों से विद्रोह के लिए योजना बनाई। उसी समय गुप्तचरों के माध्यम से जबलपुर केंटोनमेंट छावनी के कमिश्नर को राजा शंकर शाह के योजना की भनक मिल गई और उन्होंने गढ़ा पुरवा में हमला बोल कर राजा शंकर शाह और रघुनाथशाह को गिरफ्तार कर लिया। इन पिता-पुत्र के समक्ष अंग्रेजों ने संधि की शर्त रखी और कहा कि शर्तें मानने के बाद इन उन्हें माफ कर दिया जाएगा। पिता-पुत्र ने इन शर्तों को स्वीकार नहीं किया फलस्वरूप उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई और 18 सितंबर 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई। उन्होंने कहा कि जब उन्हें फांसी की सजा दी गई तब भी उनमें भय का कोई चिन्ह नहीं था। अंग्रेजों ने यह सोचा कि सार्वजनिक रूप से फांसी देने के पश्चात जनता में भय व्याप्त होगा, जबकि इसके उलट परिणाम हुए और पूरे मध्यप्रांत में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी। उनके बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सका।

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राज्यपाल ने कहा कि इस समय आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। हम सभी स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाले नायकों को याद कर रहे हैं। ऐसे लोगों को भी याद करना चाहिए जिसका नाम किन्हीं कारणों से सामने नहीं आ पाया। हमें यह याद रखना चाहिए कि जब हमारा देश गुलाम था, तो उस समय हमारे पूर्वजों के समक्ष अनेक चुनौतियां थी। इसके बावजूद वे पथ से नहीं डिगे, उनका लक्ष्य था अंग्रेजों से मुक्ति दिलाना। फलस्वरूप 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ, लेकिन आज हमारे समक्ष अलग प्रकार की कई चुनौतियां है। हमें इनका सामना करना चाहिए और एकजुट होकर राष्ट्र की प्रगति में योगदान देना चाहिए।

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