नई दिल्ली। जनगणना में जातियों को शामिल करने की राजनीतिक दलों की कवायद को केंद्र ने झटका दिया है. ओबीसी जनगणना पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया कि पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना प्रशासनिक रूप से कठिन और दुष्कर है. यही नहीं जनगणना के दायरे से इस तरह की सूचना को अलग करना ‘सतर्क नीति निर्णय’ है.

सुप्रीम कोर्ट में बृहस्पतिवार को न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामला सुनवाई के लिए आया था. इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया कि सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी), 2011 में काफी गलतियां एवं अशुद्धियां हैं. यही नहीं एसईसीसी 2011 सर्वेक्षण ‘ओबीसी सर्वेक्षण’ नहीं है, बल्कि यह देश में सभी घरों में जातीय स्थिति का पता लगाने की व्यापक प्रक्रिया थी.

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के सचिव की तरफ से दायर हलफनामे में कहा गया है कि केंद्र ने पिछले वर्ष जनवरी में एक अधिसूचना जारी कर जनगणना 2021 के लिए जुटाई जाने वाली सूचनाओं का ब्यौरा तय किया था, और इसमें अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति से जुड़े सूचनाओं सहित कई क्षेत्रों को शामिल किया गया. लेकिन इसमें जाति के किसी अन्य श्रेणी का जिक्र नहीं किया गया है.

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महाराष्ट्र की एक याचिका के जवाब में उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर किया गया. महाराष्ट्र सरकार ने याचिका दायर कर केंद्र एवं अन्य संबंधित प्राधिकरणों से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित एसईसीसी 2011 के आंकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग की और कहा कि बार-बार आग्रह के बावजूद उसे यह उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है. मामले में अगली सुनवाई 26 अक्टूबर को तय की गई.

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