नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी विवेक ढांड और एम के राउत के द्वारा स्पेशल लीव पिटीशन दायर की गई थी, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायधीशों ने एक आदेश जारी किया है. जिसमें छत्तीसगढ उच्च न्यायालय के द्वारा एक जनहित याचिका में पारित किए गये आदेश को रद्द कर दिया है.
इस आदेश में माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ शासन के समाज कल्याण विभाग विभाग में आरोपित भ्रष्टाचार के सदंर्भ में केंद्र सरकार की जॉच एजेंसी सीबीआई को एफआईआर दर्ज कर इस मामले की जांच करने के लिए निर्देशित किया था. वरिष्ठ अधिवक्ता परमजीत सिंह पटवालिया और अधिवक्ता अवि सिंह अपीलार्थीगण की ओर से बहस करते हुए तर्क पेश किए कि उपरोक्त आदेश अरक्षणीय है. इसमें प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है, क्योंकि इसमें न्यायालय में अफसरों के खिलाफ आदेश जारी करने के पूर्व उन्हें नोटिस जारी नहीं किया था.
उन्होंने कहा कि उसी विभाग के असंतुष्ट कर्मचारियों ने यह जनहित याचिका लगाकर न्यायालय के क्षेत्राधिकारिता का दुरूपयोग किया है. वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने यह तर्क पेश किया कि उच्च न्यायालय बिना किसी जांच के आरोपित कई हजार करोड़ रूपये के फंड के दुरूपयोग के निष्कर्ष पर पहुंच गई, जो कि जनहित याचिकाकर्ताओं के महज कपोलकल्पित आंकड़ों पर आधारित है. छत्तीसगढ़ शासन की ओर से वष्ठि अधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा महाधिवक्ता और मुकुल रोहतगी ने तर्क पेश किए.
तर्कों को सुनने बाद सर्वोच्च न्यायालय ने यह मानते हुए कि माननीय उच्च न्यायालय के द्धारा आदेश जारी करने की प्रकिया का त्रुटिपूर्ण थी, अमान्य कर दिया. मामले को सर्वोच्च न्यायालय को रिमांड बैक करते हुए सभी पक्षों को सुनते हुए विधिसम्मत तरीके से मामले की सुनवाई करने का निर्देश दिया है. वहीं इस दौरान सीबीआई को भी किसी भी तरह की विपरीत कार्रवाई करने से रोकने का आदेश दिया है.
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