व्यंकटेश द्विवेदी, सतना। मध्यप्रदेश के सतना जिले में विंध्य पर्वत श्रेणियों के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित है विश्व प्रसिद्ध मैहर धाम। इन्हें मैहर वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। यह मां भवानी के 51 शक्तिपीठों में से एक आदि शक्ति मां शारदा देवी का मंदिर है। मान्यता है कि मां शारदा की पहली पूजा आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। माता के दर दूर-दूर से अपनी मुरादें लेकर पहुंचते हैं और मां शारदा की महिमा का गुणगान करते हैं।
मान्यता है कि कलयुग में अपने भक्त की भक्ति से प्रशन्न होकर माता ने आल्हा-उदल नाम के दो भाइयों को अमरता का वरदान दिया था। कहा जाता है कि आज भी माँ शारदा की पहली पूजा आल्हा-उदल देव ही करते हैं।
मैहर पर्वत का नाम प्राचीन धर्म ग्रंथों में मिलता है। इसका उल्लेख पुराणों में भी है। मां शारदा देवी के दर्शन के लिए 1063 सीढ़िया चढ़कर माता के भक्तों मां के दर्शन करने जाते हैं। यहां हर दिन हजारों माता के भक्त अपनी मन की मुराद पूरी करने की अर्जी लेकर आते हैं। करोना काल में पिछले तीन मेले नहीं लगे। इस साल कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए भक्तों को मां के दर्शन करने की प्रशासन ने अनुमति दी है।
माता सती का हार गिरने के कारण पड़ा मैहर नाम
मान्यता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी। उनकी इच्छा राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी। फिर भी माता सती अपनी जिद पर भगवान शिव से विवाह किया था। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा,विष्णु, इंद्र समेत सभी देवी-देवताओं को बुलाया था। दक्ष ने भगवान शिव को नीच मानते हुए उन्हें यज्ञ में आने का न्योता नहीं दिया था। सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित ना करने का कारण पूछा। इस पर राजा दक्ष ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। अपने पति के अपमान से आहत होकर माता सती ने यज्ञ अग्नि कुंड में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
भगवान शंकर माता सती के पार्थिव शरीर को लेकर ब्रह्मांड में घुमने लगे। ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया था। जहां भी सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। माना जाता है कि यहां पर भी माता सती का हार गिरा था, जिसकी वजह से मैहर नाम पड़ा। मैहर का नाम पहले मां का हार अर्थात माई का हार था, जो बाद में अप्रभंश होकर मैहर नाम पड़ गया। 52 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ मैहर मां शारदा देवी के मंदिर को माना गया है।
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देश-विदेश से दर्शन करने आते हैं माता के भक्त
त्रिकूट पर्वत की चोटी पर ये मंदिर लोगो की आस्था का क्रेंद बन चुका है। देश विदेश से माता के भक्त उनकी दर्शन करने पहुंचते हैं। ।इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आल्हखंड के नायक आल्हा-उदल दो सगे भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे। आल्हा-उदल ने ही सबसे पहले जंगल के बीच मां शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा में इस मंदिर में 12 साल तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें प्रसन्न होकर अमर होने का आशीर्वाद दिया था।
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मंदिर के तलहटी में आज भी आल्हा देव के अवशेष सुरक्षित
मां शारदा मंदिर प्रांगण में स्थित फूलमती माता का मंदिर आल्हा-उदल की कुल देवी हैं। जहां हर दिन ब्रम्ह मुहूर्त में खुद आल्हा-उदल मां की पूजा अर्चना करते हैं। मां के मंदिर के तलहटी में आज भी आल्हा-उदल देव के अवशेष हैं। उनकी तलवार और खड़ाऊ आम भक्तों के दर्शन के लिए रखी गई है। पास ही आल्हा तालाब भी है। अल्हा-ऊदल का अखाड़ा भी है।
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