केजरीवाल सरकार ने इस बार दिल्ली में 4 हजार एकड़ से अधिक एरिया में पराली गलाने के लिए इस घोल का छिड़काव करने की तैयारी की हुई है, जबकि पिछले साल करीब 2 हजार एकड़ एरिया में ही छिड़काव किया गया था. जब से थर्ड पार्टी ऑडिट रिपोर्ट आई है, तब से किसान इसके परिणाम को लेकर काफी उत्साहित हैं, इसलिए इस बार यह लक्ष्य बढ़कर दोगुना हो गया है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए दिल्ली सरकार 24 सितंबर से पूसा इंस्टीट्यूट के सहयोग से खरखरी नाहर में बायो डि-कंपोजर का घोल तैयार करा रही है.
दिल्ली की तरह पड़ोसी राज्य भी कर सकते हैं अपने किसानों की मदद
केजरीवाल सरकार 24 सितंबर से बना रही बायो डि-कंपोजर का घोल- गोपाल राय
मंत्री गोपाल राय ने कहा कि केजरीवाल सरकार ने 24 सितंबर को बायो डि-कंपोजर का घोल बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत की थी. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के सहयोग से खरखरी नाहर में यह घोल तैयार किया जा रहा है. थर्ड पार्टी ऑडिट रिपोर्ट से किसान काफी उत्साहित हैं और वे बासमती धान वाले खेतों में भी छिड़काव की मांग कर रहे हैं. इस बार सरकार घोल बनाने से लेकर छिड़काव करने तक करीब 50 लाख रुपए खर्च कर रही है.
पड़ोसी राज्यों में जलने वाली पराली से खराब होती है दिल्ली की हवा- गोपाल राय
केजरीवाल सरकार ने केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को भी सौंपी है ऑडिट रिपोर्ट
केजरीवाल सरकार ने केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को भी बायो डी-कम्पोज़र से पराली गलाने से संबंधित ‘थर्ड पार्टी ऑडिट रिपोर्ट’ सौंपी है. केंद्र सरकार की एजेंसी वाप्कोस ने बायो डि-कंपोजर के छिड़काव का पराली पर पड़ने वाले प्रभाव का थर्ड पार्टी ऑडिट किया था. केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के अधीन काम करने वाली वाप्कोस एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में बायो डि-कंपोजर को पराली गलाने का एक बेहतर समाधान बताया है. केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से बायो डि-कंपोजर तकनीक को दूसरे राज्यों में भी लागू करने की मांग की गई है. साथ ही, दिल्ली सरकार ने वाप्कोस की ऑडिट रिपोर्ट का हवाला देते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से भी पड़ोसी राज्यों में बायो डि-कंपोजर का उपयोग कराने की अपील की है. केंद्र सरकार की एजेंसी वाप्कोस ने दिल्ली के 39 गांवों में 310 किसानों के करीब 1935 एकड़ गैर-बासमती धान के खेतों में पूसा बायो डि-कंपोजर के छिड़काव के प्रभाव को अपनी ऑडिट रिपोर्ट में शामिल किया था.
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के कहने पर कराया गया थर्ड पार्टी ऑडिट
केजरीवाल सरकार ने दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के समक्ष बायो डि-कंपोजर को लेकर अपील की थी, ताकि पड़ोसी राज्यों को पराली जलाने के बजाय उसे समाप्त करने के लिए बायो डि-कंपोजर का उपयोग करने का निर्देश दिया जा सके. इस पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन पर आयोग द्वारा बायो डि-कंपोजर के प्रयोग के बाद उसके प्रभाव का थर्ड पार्टी इम्पैक्ट एसेसमेंट (मूल्यांकन) की इच्छा जताई थी. यह थर्ड पार्टी इम्पैक्ट असेसमेंट, वाप्कोस की एक टीम द्वारा किया गया.
थर्ड पार्टी ऑडिट में निकला था यह परिणाम
1. 90 फीसदी किसानों ने कहा है कि बायो डि-कंपोजर के छिड़काव के बाद 15 से 20 दिनों में पराली गल जाती है, जबकि पहले पराली को गलाने में 40-45 दिन लगते थे.
2. पहले किसानों को गेहूं की बुआई से पहले 06-07 बार खेत की जुताई करनी पड़ती थी, जबकि बायो डि-कंपोजर के छिड़काव के बाद केवल 1 से 2 बार ही खेत की जुताई करनी पड़ी.
3. मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा 05 फीसद से बढ़कर 42 फीसद हो गई है.
4. मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा 24 फीसदी तक बढ़ गई है.
5. मिट्टी में बैक्टीरिया की संख्या और फंगल (कवकों) की संख्या में क्रमशः 7 गुणा और 3 गुणा की बढ़ोतरी हुई है.
6. मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के कारण गेहूं के बीजों का अंकुरण 17 फीसदी से बढ़कर 20 फीसदी हो गया.
7. 45 फीसदी किसानों ने यह स्वीकार किया है कि बायो डि-कंपोजर के इस्तेमाल के बाद डीएपी खाद की मात्रा पिछले वर्ष की तुलना में 46 किलोग्राम प्रति एकड़ से घटाकर 36-40 किलोग्राम प्रति एकड़ हो गई है.
8. बायो डि-कंपोजर के छिड़काव के बाद मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ गई, जिसके चलते गेहूं की उपज 05 फीसदी बढ़कर 08 फीसदी हो गई.
- दिल्ली की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- पंजाब की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक
- छतीसगढ़ की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक
- मध्यप्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें