रायपुर. पद्मपुराण में पौषमास के कृष्णपक्ष की एकादशी के विषय में युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण बोले-बडे-बडे यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है. इसलिए एकादशी – व्रत अवश्य करना चाहिए. पौषमास के कृष्णपक्ष में सफला नाम की एकादशी होती है. इस दिन भगवान नारायण की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. यह एकादशी कल्याण करने वाली है. यह एकादशी समस्त व्रतों में श्रेष्ठ है.

धार्मिक मान्यता के अनुसार सफला एकादशी के दिन श्रीहरि के विभिन्न नाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए फलों के द्वारा उनका पूजन करें. धूप-दीप से देवदेवेश्वर श्रीहरिकी अर्चना करें. सफला एकादशी के दिन दीप-दान जरूर करें. रात को वैष्णवों के साथ नाम-संकीर्तन करते हुए जगना चाहिए. एकादशी का रात्रि में जागरण करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर भी नहीं मिलता.

व्रत विधान के विषय में जैसा कि श्री कृष्ण कहते हैं दशमी की तिथि को शुद्ध और सात्विक आहार एक समय लेना चाहिए. इस दिन आचरण भी सात्विक होना चाहिए. व्रत करने वाले को भोग विलास एवं काम की भावना को त्याग कर नारायण की छवि मन में बसाने हेतु प्रयत्न करना चाहिए.

धार्मिक मान्यता के अनुसार एकादशी तिथि के दिन प्रातरू स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर माथे पर श्रीखंड चंदन अथवा गोपी चंदन लगाकर कमल अथवा वैजयन्ती फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत, धूप, दीप, सहित लक्ष्मी नारायण की पूजा एवं आरती करें. संध्या काल में अगर चाहें तो दीप दान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं. द्वादशी के दिन भगवान की पूजा के पश्चात कर्मकाण्डी ब्राह्मण को भोजन करवा कर जनेऊ एवं दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात भोजन करें.

धार्मिक मान्यता के अनुसार  जो भक्त इस प्रकार सफला एकादशी का व्रत रखते हैं और रात्रि में जागरण एवं भजन कीर्तन करते हैं, उन्हें श्रेष्ठ यज्ञों से जो पुण्य मिलता है उससे कहीं बढ़कर फल की प्राप्ति होती है.