लखनऊ. हाईकोर्ट (HighCourt) की लखनऊ बेंच के सख्त रुख के बाद पिता (Father) ने लगभग सवा तीन साल के बच्चे को मां के सुपुर्द किया है. इस मामले में न्यायालय ने अलीगंज थाने को आदेश दिया था कि वह झारखंड के धनबाद में रह रहे पिता की कस्टडी से बच्चे को लेकर न्यायालय के समक्ष पेश करे. इस दौरान पिता ने सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति अपील दाखिल करते हुए हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के आदेश को सही करार देते हुए बच्चे को मां को सौंपने का आदेश दिया. छह जनवरी को बच्चे को मां के सुपुर्द किया गया.
न्यायमूर्ति विकास कुंवर श्रीवास्तव की एकल पीठ ने मां की ओर से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विस्तृत आदेश पारित करते हुए, कहा कि हिन्दू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट की के तहत पांच वर्ष या उस से कम के उम्र के बच्चे की प्राकृतिक अभिभावक मां ही होती है. न्यायालय ने महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित एक श्लोक ‘नास्ति मातृसमा छाया’ का उल्लेख करते हुए कहा कि इस उम्र के बच्चे के लिए मां के आश्रय जैसा दूसरा कोई आश्रय नहीं है.
हालांकि, न्यायालय ने पिता को भी बच्चे से मिलने का अधिकार दिया है. न्यायालय ने कहा है कि प्रत्येक रविवार को वह मां के अलीगंज स्थित आवास पर बच्चे से मिल सकता है व मां या उसके परिवार का कोई अन्य सदस्य इसमें बाधा नहीं बनेगा. न्यायालय ने मां को कोर्ट व पिता को सूचित किए बगैर आवास छोड़ने अथवा बदलने पर भी रोक लगा दी है.