बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिलासपुर के पूर्व आईजी और वर्तमान में रायपुर में पदस्थ एडीजी पवन देव पर महिला कॉन्स्टेबल से फोन पर अश्लील बातचीत करने और छेड़छाड़ के आरोप को गंभीर माना है.

चीफ जस्टिस टीबी राधाकृष्णन और जस्टिस शरद कुमार गुप्ता की बेंच ने कहा कि ये मामला जनहित का नहीं, बल्कि निजी है, लेकिन अधिकारी पर लगाए गए आरोप और विशाखा कमेटी की अनुशंसाओं पर कार्रवाई नहीं होना गंभीर है. मामले की गंभीरता के आधार पर रिट पिटिशन के रूप में डिविजन बेंच में ही इसकी सुनवाई होगी.

मामले की अगली सुनवाई अब 27 फरवरी को होगी. महिला कॉन्स्टेबल ने 1 जुलाई 2016 को आईपीएस अधिकारी पवन देव की शिकायत की थी. इसमें पवन देव पर फोन पर अश्लील बातें करने और बंगले पर आने के लिए कहने का आरोप लगाया गया था. पीड़िता ने चकरभाटा थाने में शिकायत दर्ज कराई थी. पीड़िता ने पुलिस को 3 ऑडियो क्लिप भी सौंपी थी. जिसके बाद मामले की जांच के लिए कमेटी का गठन किया गया.

जांच कमेटी ने 2 दिसंबर 2016 को रिपोर्ट सौंपी, जिसमें अधिकारी को दोषी ठहराया गया और कड़ी कार्रवाई की अनुशंसा की गई. लेकिन इसके बावजूद अधिकारी पवन देव के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. जिसके बाद पीड़िता ने हाईकोर्ट की शरण ली और वहां जनहित याचिका लगाई. जिस पर हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार, गृह सचिव, डीजीपी समेत अन्य को नोटिस जारी किया था.

ये है पूरा मामला

30 जून 2016 को मुंगेली जिले की एक महिला कॉन्स्टेबल ने आईजी पवन देव पर फ़ोन पर अश्लील बात करने और दबाव पूर्वक अपने बंगले बुलाने का आरोप लगा कर शिकायत की थी. इसके बाद राज्य सरकार ने IAS रेणु पिल्लै की अध्यक्षता में 4 सदस्यीय आंतरिक शिकायत समिति गठित की थी. 4 जुलाई 2016 को समिति ने जांच कर अपनी रिपोर्ट 2 दिसम्बर 2016 को डीजीपी को सौंप दी. समिति ने जांच में मुंगेली की महिला कॉन्स्टेबल द्वारा बिलासपुर के तत्कालीन आईजी पवन देव पर लगाए गए लैंगिक उत्पीड़न के आरोप को सही पाया था. महिला कॉन्स्टेबल द्वारा जांच रिपोर्ट के आधार पर पवन देव पर कानूनी कार्रवाई की मांग की गई थी और इसके लिए डीजीपी को ज्ञापन भेजा गया था. साथ ही ये हाई प्रोफ़ाइल मामला प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग तक भी पहुंचा था.

वहीं जांच कमेटी के रिपोर्ट के बावजूद कार्रवाई नहीं होने पर पीड़िता ने फिर से अपनी शिकायत राज्य सरकार, पीएमओ कार्यालय दिल्ली और डीजीपी से की थी. इसके बाद भी शिकायत पर कार्रवाई नहीं बोने पर पीड़िता ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम की धारा 13 का उल्लंघन किए जाने का हवाला देते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई थी.

कानून के मुताबिक
महिलाओं का कार्य स्थल पर लैंगिक उत्पीड़न ( निवारण, प्रतिषेध, प्रतितोष ) अधिनियम 2013 के अनुसार, शिकायत की जांच अनिवार्य रूप से 90 दिन के अंदर करनी होगी.  इस अधिनियम की धारा 13 ( 4 ) में प्रावधान है कि जांच रिपोर्ट प्राप्त होने के 60 दिन के भीतर विभाग प्रमुख को आरोपी व्यक्ति पर कार्रवाई करनी होगी.