रायपुर. हर कोई किसी न किसी भगवान को ज्यादा मानता है. उनकी पूजा-पाठ करने के बाद आरती करता है. शास्त्रों के अनुसार आरती के बिना पूजा पूरी नहीं होती. वहीं, घर हो या धार्मिक अनुष्ठान पूजा में आरती का विशेष महत्व बताया गया है. पूजा की बात आते ही सबसे पहले Aarti का ख्याल ही मन में आता है. कोई भी पूजा बिना आरती के पूरी नहीं मानी जाती. पूजन को समापन करने के लिए आरती पूजन विधि का अंतिम चरण होता है.
आरती करने से पूजा स्थल में और उसके आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा भर उठती है. यही समय होता है जब भगवान को प्रसन्न करने के लिए पूजा करने वाला साधक यदि मनोयोग से Aarti वंदना करें, तो उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण करने में भगवान देरी नहीं करते. Aarti का अर्थ है देवता को आर्त्ताभाव और मन से पुकारना. Aarti देवता की कृपा पाने के लिए की जाती है.
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कहते हैं इस समय जो भी आप मन में रखकर आरती करते हैं, वह आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. Aarti करने का ही नहीं, बल्कि Aarti देखने का बड़ा पुण्य मिलता है. ऐसे शास्त्रों में वर्णित हैं, लेकिन Aarti मनोयोग से करें तभी आपकी पुकार ईष्ट तक पहुंचती हैं. आज हम आपको विस्तृत रूप से बताएंगे कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए आरती का किस प्रकार और कैसे किया जाना उत्तम फलदाई होता है.
ये है आरती करने का सही विधि
- पूजन में हुई गलती या किसी प्रकार की कमियों को पूर्ण करने के लिए Aarti पूजा करने के बाद आरती का विशेष महत्व है. घर हो या मंदिर भगवान की आरती दिन में दो बार प्रातःकाल और संध्याकाल में करना अति शुभ होता है.
- आरती में पहले मूल मंत्र द्वारा तीन बार पुष्पांजलि देनी चाहिए और ढोल नगाड़े आदि महावाद्यों द्वारा और रुई की बत्ती या कपूर से विषम संख्या की बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए.
- आरती से पूर्व और पूजा के आरंभ में शंख बजाने का भी विधान है. मान्यता है कि पूजन से पूर्व शंख बजाने से वातावरण में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है और वातावरण की शुद्धि होती है. इसलिए पूजा करने के बाद Aarti से पूजा का समापन करना चाहिए. तभी पूजा पूर्ण मानी जाती है.
- आरती परिवार के साथ मन में भगवान का ध्यान करते हुए और गाकर करना अच्छा होता है.
- Aarti करने के बाद पूरे घर में भी दिखाना चाहिए. इससे पूजा स्थल के साथ- साथ पूरे घर मेंं भी सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है.
- आखिर में अग्नि के चारो और जल को घुमा कर, फिर भगवान को अर्पित कर, उसकी ऊर्जा को खुद भी अपने हाथों द्वारा सिर में रखना चाहिए. ऐसा करने से घर वालों और Aarti करने वालों का मन शांत रहता है और भगवान प्रसन्न होते हैं.
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आरती की सही विधि- इसके पांच अंक के होते हैं.
दीपमाला द्वारा
जलयुक्त शंख से
धुले हुए वस्त्र से
आम और पीपल आदि के पत्तों से
साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग (मस्तक, दोनों हाथ और पांव) से आरती की जाती है.
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