पंजाब/नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ साल 1988 के रोड रेज के मामले में याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. इस याचिका में मामले में नोटिस के दायरे को बढ़ाने की मांग की गई है. नवजोत सिंह सिद्धू का 1988 में पटियाला में पार्किंग को लेकर विवाद हुआ था, जिसमें एक बुजुर्ग गुरनाम सिंह की मौत हो गई थी. आरोप है कि सिद्धू और 65 वर्षीय गुरनाम सिंह के बीच हाथापाई भी हुई थी. पुलिस ने इस घटना में नवजोत सिंह सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 1000 रुपये का जुर्माना लगाकर उन्हें बरी कर दिया था. पीड़ित पक्ष ने इसे लेकर पुनर्विचार याचिका दायर की थी.

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नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने पक्ष में दिए थे ये तर्क

याचिका के बाद नवजोत सिद्धू ने एफिडेविट दाखिल किया था कि पिछले 3 दशक में उनका राजनीतिक और खेल करियर बेदाग रहा है. राजनेता के तौर पर उन्होंने न सिर्फ अपने विस क्षेत्र अमृतसर ईस्ट बल्कि सांसद के तौर पर बेजोड़ काम किया है. उन्होंने लोगों के भले के लिए कई काम किए हैं. उनसे कोई हथियार भी बरामद नहीं हुआ और उनकी मरने वाले से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. उन्होंने कहा कि पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी जाए. उन्हें दी गई 1 हजार जुर्माने की सजा पर्याप्त है. इसके बाद मामला अदालत में पहुंचा. सुनवाई के दौरान लोअर कोर्ट ने नवजोत सिंह सिद्धू को सबूतों का अभाव बताते 1999 में बरी कर दिया था. इसके बाद पीड़ित पक्ष निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंच गया. साल 2006 में हाईकोर्ट ने इस मामले में नवजोत सिंह सिद्धू को 3 साल कैद की सजा और एक लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी.

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सुप्रीम कोर्ट ने पहले जुर्माना लगाकर छोड़ा

हाईकोर्ट से मिली सजा के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई 2018 को सिद्धू को गैर इरादतन हत्या के आरोप में लगी धारा 304IPC से बरी कर दिया. हालांकि धारा 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाने का) के मामले में सिद्धू को दोषी ठहराया गया. इसके लिए उन्हें जेल की सजा नहीं हुई, लेकिन एक हजार रुपया जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ अब मृतक के परिवार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की है. उनकी मांग है कि हाईकोर्ट की तरह सिद्धू को 304IPC के तहत सजा होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया था. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.