भोपाल। मध्यप्रदेश में अन्नदाता की नियति ही शायद ये बन गई है कि मौत के बाद भी उसे न्याय नहीं मिल पाता। प्रशासन की सिर्फ यही कोशिश रहती है कि कैसे भी मौत को कर्ज या फसल बीमा की असफलता से झुठलाया जाए ! लेकिन, छतरपुर और सागर में अब जिन 2 किसानों ने मौत को गले लगाया तो वह खुदकुशी करने से पहले खत भी लिख गए !आज पहली दुखद खबर उस सागर संभाग से आई, जहां से शिवराज मंत्रिमण्डल में गृह और वित्त मंत्री प्रतिनिधित्व करते हैं। यहां गढाकोटा थाने के सिंगपुर कला में किसान गुलाब पटेल ने फांसी के फंदे पर झूलकर आत्महत्या कर ली। इस अभागे किसान के ऊपर 3 लाख का कर्ज था। 2016 की फसल का बीमा यूनियन बैंक शाखा गढाकोटा से था, जिसका बीमा नही मिला। कर्जदार परेशान करते थे, हाल ही में चने की फसल में ओले गिरने से फसल में नुकसान था। पत्नि का कहना है कि कर्ज से परेशान थे, इस कारण जान दे दी।
अन्नदाता के जान देने का एक ही दिन में दूसरा मामला छतरपुर जिले के लवकुशनगर थाना अंतर्गत गुढाकला गांव में सामने आया। यहां भी कर्ज से डूबे एक किसान ने अपने खेत पर लगे पेड़ पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। 40 वर्षी दृगपाल सिंह के पास सिर्फ 7 बीघा जमीन थी। सूखे के कारण फसल बोई नही गई और बैंक का लगभग डेढ़ लाख का कर्ज भी था। बेटी भी शादी काबिल थी, यही सब चिन्ताएं मृतक किसान के मौत का कारण बन गयीं। उसने गांव से दूर अपने खेत पर लगे बबूल के पेड़ पर फांसी लगा ली।
मध्यप्रदेश में जून में हुई 50 खुदकुशी–
मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन के बीच आठ जून से अब तक किसानों की खुदकुशी की सबसे अधिक घटनाएं हुई। नीमच, मंदसौर के बाद छतरपुर, सागर, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, सीहोर आदि जिलों से ऐसी खबरें मिली। मध्यप्रदेश में जून 2017 के आंकड़े सभी को चौंकाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक जून में 50 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली।
जहां हैप्पीनेस मंत्रालय, वहां किसान दुखी क्यों ?
देश में मध्यप्रदेश ही ऐसा राज्य है जहा हैप्पीनेस मंत्रालय मतलब आनंद मंत्रालय बनाया गया है, लेकिन पिछले माह जून 2017 के आंकड़े सभी को चौंकाते हैं। जहां जून में 50 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली। इसी राज्य को चार बार कृषि कर्मण अवार्ड मिल चुके हैं। सरकार का भी दावा है कि आने वाले वर्षों में कृषि को लाभ का धंधा बनाएंगे और यह प्रगति करेगी।