शरद पाठक, छिंदवाड़ा/ कुमार इंदर जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने छिंदवाड़ा में आदिवासी युवती से दुष्कर्म के आरोपी एक पुलिस आरक्षक को बचाने के लिए साक्ष्य नष्ट करने के आरोप में… एडीजी उमेश जोंगा और पुलिस अधीक्षक विवेक अग्रवाल एवं सिविल सर्जन डॉ शेखर सुराणा को कहीं दूर ट्रांसफर करने के आदेश जारी किए हैं। ताकि जांच प्रभावित न हो।
दरअसल, छिंदवाड़ा में 13 नवंबर 2021 में एक आदिवासी युवती ने सिटी कोतवाली में पदस्थ आरक्षक अजय साहू पर बलात्कार का आरोप लगाया था। युवती के गर्भवती हो जाने के कारण पुलिस अभिरक्षा में हुए गर्भपात से प्राप्त भ्रूण को जिला अस्पताल में पदस्थ डॉक्टरों द्वारा सुरक्षित रूप से प्रिजर्व किए जाने को लेकर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है । इस संबंध में हाई कोर्ट द्वारा जारी दिशा निर्देशों का सही ढंग से पालन न किए जाने पर भी पुलिस विभाग को दोषी माना गया है।
बताया जाता है कि भ्रूण को नॉरमल सलाइन के स्थान पर फॉर्मलीन में संरक्षित कर दिया गया था जिससे भ्रूण की डीएनए जांच नहीं हो पाई और प्रकरण का सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्य नष्ट हो गया। हाईकोर्ट में माना कि भ्रूण को जानबूझकर फॉर्मलीन में संरक्षित किया गया था जबकि डॉक्टरों को यह पता था कि फॉर्मलीन में रखने के बाद डीएनए जांच नहीं हो सकती है। इस संबंध में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों और सिविल सर्जन के बयान में भी काफी विसंगति पाई गई है।
हाईकोर्ट ने पुलिस को पूरी तहकीकात करने के आदेश दिए गए थे परंतु तत्कालीन एडीजी उमेश जोंगा और पुलिस अधीक्षक विवेक अग्रवाल द्वारा मामले को गंभीरता से ना लेते हुए औपचारिकता निभाते हुए जांच रिपोर्ट पेश कर दी गई, जिसमें अनेक विसंगतियां पाई गई। जांच में महत्वपूर्ण तत्वों पर और गवाहों के बयान पर ध्यान नहीं दिया गया। इसे लेकर हाई कोर्ट ने यह धारणा बनाई कि आरोपी पुलिस में आरक्षक है, इसलिए विभाग द्वारा उसे बचाने का प्रयास किया जा रहा है।
हाई कोर्ट द्वारा जारी आदेश में एडीजी उमेश जोंगा, एसपी विवेक अग्रवाल और सिविल सर्जन शिखर सुराणा को जिले से बाहर कहीं दूर पदस्थ करने के आदेश जारी किए है, ताकि वो जांच में साक्ष्य को प्रभावित ना कर सकें।
वहीं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हमने भ्रूण को नॉरमल सलाइन में ही सुरक्षित किया था। यह कब और किस स्तर पर परिवर्तित हो गया, यह जांच का विषय है। हमने अपने बयान में भी बताया है कि अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में फॉर्मलीन रखा ही नहीं जाता तो उसमें भ्रूण को संरक्षित करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।
सिविल सर्जन का कहना है कि यह गड़बड़ी फॉरेंसिक लैब, पुलिस विभाग और अस्पताल तीनों जगह में से किसी एक स्थान पर हो सकती है। इसलिए इस प्रकरण में गड़बड़ी कहां हुई है यह एक जांच का विषय है ।
Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक