शादी के महज 8 महीने बाद एक लाख रुपये दहेज की खातिर मधुमिता को उसके ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया था. प्रताड़ित होकर लड़की मां-पिता के घर लौटी तो सालों तक डिप्रेशन में रही. खुद को संभालते हुए गांव में बढ़ई से लकड़ी की कारीगरी सीखी. इसके बाद अपना छोटा सा काम शुरू किया और कुछ ही सालों में देखते-देखते वुडक्राफ्ट का ‘पीपल ट्री’ नामक इतना बड़ा ब्रांड खड़ा कर लिया कि आज उन्होंने दो सौ से भी ज्यादा महिलाओं को रोजगार दे रखा है.
यह कहानी है झारखंड के एक छोटे से शहर घाटशिला की रहने वाली मधुमिता साव की. घाटशिला कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा करने के कुछ महीनों बाद उनकी शादी हो गयी. ससुराल की देहरी पर कदम रखने के बाद से ही मधुमिता के पति और ससुराल वाले हर रोज दहेज मांगने लगे. मायके वालों ने शुरूआत में उनकी कुछ मांगें पूरी भी कीं, दहेज मांगने का सिलसिला रुका नहीं. एक लाख रुपये की नयी मांग को लेकर उन्हें प्रताड़ित किया जाने लगा. माता-पिता बेबस थे.
ससुराल से प्रताड़ित होकर जब मधुमिता मायके लौटी तो दूर के रिश्तेदार ताना देते थे. इन हालातों से उबरने में उन्हें तकरीबन ढाई-तीन साल लग गये. इसके बाद आदिवासी महिलाओं के साथ मिलकर इसके बाद लकड़ी की कारीगरी सीखी. लकड़ी के कई अन्य तरह के शो-पीस बनाने लगीं. 2016 में उन्होंने ‘पीपल ट्री’ नामक एक संस्था शुरू की और इसके जरिए बड़ी संख्या में महिलाओं को कारीगरी का प्रशिक्षण देकर उनके बनाये उत्पादों को बेचने के लिए एक छोटा सा आउटलेट खोला. सामानों को शोरुम में बेचने के लिए कुछ फर्नीचर शोरूम के मालिक ने अपने यहां जगह दी.
आज पीपल ट्री झारखंड का एक जाना-माना ब्रांड बन चुका है. इनके बनाये वुडक्राफ्ट प्रोडक्ट्स राज्य के बाहर भी खूब बिकते हैं. झारखंड में पीपल ट्री के नौ आउटलेट हैं. रांची, पतरातू वैली, जमशेदपुर के पीएम मॉल, बुरुडीह डैम, नेतरहाट सहित अन्य स्थानों पर इन आउटलेट्स को शानदार रिस्पांस मिल रहा है. पीपल ट्री का सालाना टर्नओवर लगभग 60 लाख है. पीपल ट्री की वेबसाइट से भी देश-विदेश के लोग अच्छी संख्या में खरीदारी करते हैं.
इनकी संस्था में 230 महिलाएं अभी काम कर रही है, ये प्रतिमाह सात-आठ हजार से लेकर 15 हजार रुपये तक की कमाई कर लेती हैं. पीपल ट्री ने पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका, घाटशिला और मतलाडीह में प्रोडक्शन सेंटर स्थापित किये हैं.
मधुमिता आगे कमजोर वर्ग के बच्चों की पढ़ाई के लिए जल्द ही एक बड़ी पहल करने वाली हैं. फिलहाल उनकी संस्था तीन जिलों में आवासीय बालिका विद्यालयों की छात्राओं को भी वुडक्राफ्ट की ट्रेनिंग देती हैं, ताकि जब वो स्कूल से निकलें तो उनके हाथ में हुनर हो. संस्था जमशेदपुर के गोलमुरी स्थित एक अनाथालय को भी सपोर्ट करती है.
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