Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

सैय्या भये कोतवाल तो डर काहे का…

सैय्या भये कोतवाल तो डर काहे का….यह कहावत एक विभाग में खूब फब रही है. दरअसल मामला अनुकंपा नियुक्ति से जुड़ा है. पिछले दिनों इस आधार पर एक लिपिक की अनुकंपा नियुक्ति समाप्त कर दी गई कि परिवार में पहले से ही शासकीय सेवक हैं. नियम भी यही कहता है कि यदि परिवार से कोई शासकीय सेवा में है, तो अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती. यहां तक मामला ठीक था. मगर जब इतिहास के पन्ने पलटे गए, तो मालूम चला कि लिपिक की अनुकंपा नियुक्ति खत्म करने संबंधी बढ़ाई गई फाइल जिन हाथों से गुजरी, उसी हाथ से किए गए दस्तखत ने ऐसी भूल 2015 में की थी. तब उनकी तैनाती दुर्ग जिले में थी. जिस शख्स को अनुकंपा नियुक्ति दी गई थी, उसके माता-पिता दोनों ही सरकारी नौकरी में थे. मां गुजर गई और बेटे को अनुकंपा नियुक्ति दे दी गई. पिता तो सरकारी नौकरी में थे ही. मजाल है कि बाल भी बांका हुआ हो. तब इस मामले की शिकायत आज संवैधानिक पद पर बैठे एक शख्स ने खुद की थी. अनुकंपा नियुक्ति देने वाले महानुभाव एक साथ कई दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं. मंत्री के ओएसडी हैं, तो जाहिर है फाइलें उनसे होकर गुजरती हैं. फाइल हाथ में है, तो अपने मन मुताबिक चिड़िया बिठाने से कौन रोक सकता है. 

राज्यसभा चुनाव और नाराजगी

सूबे का कांग्रेस संगठन हैरान भी है और परेशान भी. कईयों की मुरादें सीने में ही दफन हो गई. चाहत थी कि बस एक दफे ही सही राज्यसभा पहुंच जाए. हर कोई अलग-अलग स्तर पर अपनी फील्डिंग कर रहा था. मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था. हेलीकॉप्टर लैंडिंग हो गई. एक उत्तरप्रदेश से, तो दूसरी बिहार से. हाईकमान ने ये दलील दी कि उच्च सदन में तेजतर्रार, मुखर प्रतिनिधित्व की जरूरत है, जो बीजेपी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ मुकाबला कर सके. इस दलील के पहले ये ख्याल भी ना रहा कि कांग्रेस के पास छत्तीसगढ़ ही इकलौता राज्य है, जहां के नेताओं ने 15 साल की बीजेपी सरकार को धूल चटाकर मैदान मारा है. सदन के भीतर प्रतिशत के लिहाज से जीतने विधायक कांग्रेस के छत्तीसगढ़ से है, देश के किसी भी दूसरे राज्य में नहीं हैं. राज्य संगठन की अगुवाई करने वाले नेता चाहते थे कि दो में से एक सीट भी स्थानीय चेहरे को दिया जाता, तो सियासी समीकरण कुछ और होते. खैर दूसरे राज्य से सीधे छत्तीसगढ़ की जमीन पर लैंडिंग करने वाले नेता जब पहुंचे, तो चेहरे पर कास्मेटिक खिलखिलाहट के साथ कांग्रेसजनों ने उनका स्वागत किया. मगर लाख छिपाने के बाद भी खुसर फुसर चलती रही. 

इधर फोन का जवाब नहीं…

अब ये अफवाह किसने फैलाई मालूम नहीं. मगर सुनते हैं कि राज्यसभा की एक उम्मीदवार को नाराजगी का पूरा-पूरा एहसास करा दिया गया. वैसे तो नामांकन दाखिले के लिए रायपुर पहुंचने पर उनकी आवभगत में कहीं कोई कमी नहीं थी, प्रोटोकॉल का पालन जो करना था. मगर थोड़ी देर बाद कांग्रेस के एक दिग्गज नेता को उनकी ओर से बार-बार फोन करने पर भी किसी तरह का जवाब नहीं दिया गया. बताते हैं कि कई दौर की काॅलिंग के बाद जब नेताजी ने कोई जवाब नहीं दिया, तो उम्मीदवार ने पूछा- कहीं कोई नाराजगी है क्या? हालांकि थोड़ी बार नेताजी का फोन आ गया और बातचीत हो गई. 

कलेक्टर के तबादले की वजह

गरियाबंद कलेक्टर रहीं नम्रता गांधी को चंद महीनों में ही रुखसत होना पड़ा. उनकी जगह प्रभात मलिक को जिले की कमान सौंपी गई है. हालांकि नम्रता गांधी को हटाने के पीछे उनके स्वास्थ्यगत कारणों को बताया जा रहा है. मगर पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और ही बताई जा रही है. बताते हैं कि नम्रता अपनी कार्यशैली की वजह से लोगों के लिए मुसीबत बन गई थी. सब आर्डिनेट्स ने ही उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. शिकायत ऊपर भेजी जाने लगी थी. खैर ये सब होना ही था. बताते हैं कि नम्रता अलग किस्म की अधिकारी है. जिले की कमान मिली तो कलेक्ट्रेट के अपने दफ्तर के दरवाजे आम लोगों के लिए खोल दिए. दफ्तर के दरवाजे को बंद करने की मनाही थी. आम लोगों की सुनवाई होने लगी. शिकायतों पर कार्रवाई होने लगी. प्रशासनिक कसावट ला दिया गया. इन सबसे मातहत अधिकारी-कर्मचारियों को दिक्कत होना लाजमी था. कैंसर से जूझ रहे एक बच्चे की आउट ऑफ वे जाकर मदद करने वाले ऐसी कलेक्टर को हटाने से बेहतरी की उम्मीद करने वाले भी हतप्रभ हैं. 

सेंट्रल एजेंसी की नजर में कौन?

पिछला हफ्ता हलचल भरा रहा. ईडी की रेड की सुगबुगाहट तेज थी. हरकत सभी तरफ शुरू हो गई थी. इस बात में पूरी सच्चाई भी थी. सुनते हैं कि सेंट्रल एजेंसी के लोग नवा रायपुर एक रिसाॅर्ट में ठहरे थे. सो उन पर भी पहरेदारी थी. मौका ही नहीं मिल सका. बहरहाल जिस तरह से अर्जुन की नजर मछली की आंख पर जा टिकी थी, ठीक वैसे ही सेंट्रल एजेंसी की नजर में कुछ खास लोग थे. चर्चा है कि अबकी बार सेंट्रल एजेंसी कुछ जिलों के कलेक्टरों की कुंडली लेकर पहुंची थी. कुछ कारोबारी भी थे. मगर इंफाॅरमेशन लीक हो गई. आला अधिकारी बताते हैं कि झारखंड की घटना के बाद संभलने का मौका मिल गया. संकेत थे ही कि सेंट्रल एजेंसी यहां भी घूमने आएगी.