बिलासपुर. विख्यात भरथरी गायिका और अहिल्या बाई सम्मान से सम्मानित गायिका सुरुज बाई खांडे का बिलासपुर के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वे 69 साल की थी. खांडे की मौत से प्रदेश सहित देश ने एक बड़ी गायिका को खो दिया है.

बता दे कि आंचलिक परम्परा में आध्यात्मिक लोकनायक के रूप में प्रतिष्ठित राजा भर्तहरि के जीवन वृत्त, नीति और उपदेशों को लोक शैली में प्रस्तुति है – भरथरी. छत्तीसगढ़ में भरथरी गायन की पुरानी परंपरा को सुरुजबाई खांडे ने रोचक लोक शैली में प्रस्तुत कर विशेष पहचान बनाई थी. भरथरी गायन में हारमोनियम, बांसुरी, तबला, मंजीरा का संगत होता है. सुरुजबाई खांडे रुस, दुसाम्बे, अमला के अलावा लगभग 18 देशों में अपनी कला का डंका बजाया और लोक गायिकी को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई है.

मात्र सात साल की उम्र से शुरू की थी गायकी

भरथरी छत्तीसगढ़ की प्रमुख लोक गीत है और अपना जीवन सूरूज बाई खांडे ने लोक कला को समर्पित किया है. सात साल की उम्र से भरथरी गाने की शुरुआत अपने नाना स्वर्गीय राम साय घितलहरे के मार्गदर्शन में किया था.

18 देशों में भी दी है प्रस्तुति

सूरूज बाई ने रुस, दुसाम्बे, अमला के अलावा लगभग 18 देशों में अपनी कला की प्रस्तुति दी थी. इसके साथ ही देश में भोपाल, दिल्ली, इंदौर, सिरपुर, ओडिशा, महाराष्ट्र जैसे लगभग सभी राज्य में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी है.

सड़क हादसे के बाद लिया था रिटार्यमेंट

सूरूज बाई को लोक कलाकार के तौर पर एसईसीएल में चतुर्थ कर्मचारी वर्ग में नौकरी दी गई थी. लेकिन कुछ वर्ष पूर्व मोटर साइकिल से एक्सीडेंट होने की वजह से नौकरी करना संभव नहीं रहा. इसलिए उन्हें नौ साल पहले ही रिटायरमेंट लेना पड़ा.