खुल सकती है लॉटरी !
यदि सब कुछ ठीक ठाक रहा, तो इस दफे छत्तीसगढ़ के रास्ते राष्ट्रपति चुना जा सकता है. चर्चा है कि देश को पहला आदिवासी राष्ट्रपति दिया जाएगा. जिन चार नामों पर रायशुमारी चल रही है, उनमें छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके भी शामिल हैं. उनके अलावा झारखंड की पहली महिला राज्यपाल रही द्रौपदी मुर्मू, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और जुएल उरांव के नाम शामिल हैं. सुनते हैं कि अंतिम चरण में अनुसुइया या द्रौपदी के नाम पर मुहर लगाई जा सकती है. दोनों आदिवासी के साथ-साथ महिला भी हैं. आदिवासी राष्ट्रपति नियुक्त करने की चर्चा के पीछे का समीकरण चुनाव से जुड़ा बताया जाता है. गुजरात, हिमाचल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में चुनाव होने हैं. इन राज्यों में आदिवासी वोट बैंक अच्छी खासी संख्या में है. छत्तीसगढ़ में तो 90 में से 29 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. राज्यपाल बनने के बाद से ही अनुसुइया उइके आदिवासी हितों के लिए काफी मुखर रही हैं. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं. ऐसे में उनके नाम मुहर लग गई तो कोई आश्चर्य नहीं होगा. पिछले दिनों दिल्ली में उइके की प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात भी हुई थी. करीबी बताते हैं कि इस मुलाकात के बाद से राज्यपाल का आत्मविश्वास काफी बढ़ा हुआ है.
विदेश दौरा रद्द
मौसम में बदलाव के साथ-साथ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का विदेश दौरा भी टल गया. मुख्यमंत्री ने बताया कि सिंगापुर के रास्ते बाली जाना था, लेकिन इसकी अनुमति नहीं मिली. इधर दौरा रद्द हुआ, उधर भूपेश दिल्ली के लिए उड़ गए. दिल्ली में राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ लगातार चल रही है. सोनिया गांधी से पूछताछ होनी है. सेंट्रल एजेंसी के राजनीतिक इस्तेमाल का आरोप लगाकर कांग्रेस आंदोलनरत है ही, जाहिर है ऐसे राजनीतिक घमासान के बीच विदेश दौरे पर जाना उचित भी नहीं था. वैसे भी कांग्रेस में इस वक्त भूपेश बघेल से ज्यादा आक्रामक नेता देश में ढूंढने से नहीं मिल रहा. विपरीत हालात बनने की स्थिति में भी सड़कों पर आंखें तरेरकर बैठने में भले ही आला नेता बगले तांकेंगे, मगर भूपेश दाऊ भूल जाएंगे कि संवैधानिक पद हैं, सड़क पर बैठने में भी उन्हें कोई गुरेज नहीं होगा. लखनऊ एयरपोर्ट की तस्वीरें लोगों के जेहन में होगी ही, जब एयरपोर्ट के भीतर ही जमीन पर बैठ गए थे. खैर इस बात में कोई संशय नहीं कि जिस दिलेरी से भूपेश बीजेपी-आरएसएस को चुनौती देते हैं. कांग्रेस के तीस मारखां नेता अपना किनारा बचाकर नेतागिरी करते हैं.
गाड़ियों की वापसी
‘पावर सेंटर’ के इसी कालम में हमने लिखा था कि एक विभाग ने अपना सारा पैसा सरकारी बैंक से निकालकर प्राइवेट बैंक में रख दिया था. यह रकम छोटी-मोटी नहीं थी. सैकड़ों करोड़ की थी. बैंक ने अधिकारियों की इस मेहरबानी से खुश होकर पांच-छह गाड़ियां भेज दी थी. तब अधिकारियों ने ‘पावर सेंटर’ कालम में किए गए खुलासे को झुठलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कभी कहा कि बैंक ने सीएसआर मद से गाड़ियां विभाग को दी है. कभी कहा कि बैंक ने ये गाड़ियां विभाग को दान में दी है. सरकार को ऐसे अधिकारियों के ज्ञान को दुरुस्त करने की जरूरत है. बहरहाल सुनाई पड़ रहा है कि बैंक से ली गई गाड़ियों की वापसी की जा रही है.
संघ की घेराबंदी
बीजेपी के भीतर की खुसर-फुसर में यह बातें सुनाई पड़ती रही है कि पिछले चुनाव में मिली हार के पीछे पार्टी के खुद के करम तो थे ही, आरएसएस का पूरी तरह से बैठ जाना भी एक बड़ा कारण था. बताते हैं कि जिस ढंग से सरकार तब चल रही थी, उससे आरएसएस बेहद नाराज था. सो कैडर ने अपने आपको बांध लिया. मगर अब तस्वीर बदली-बदली नजर आ रही है. सुनाई पड़ रहा है कि आरएसएस इस चुनाव को अपने हिसाब से लीड करने की रणनीति पर काम कर रहा है. सांप्रदायिक मुद्दों पर हवा का रुख कैसा हो? कैसे राजनीतिक नजरिए से फायदा ढूंढा जाए? जैसे समीकरणों पर अब आरएसएस की बनाई रणनीति पर अमल हो रहा है. आदिवासी क्षेत्रों से लेकर मैदानी इलाकों तक हर जगह आरएसएस जमीन पर है. रायपुर के करीब चंपारण में आरएसएस का प्रशिक्षण वर्ग भी जारी है. बीजेपी के आला नेता भी इसमें शामिल हो रहे हैं. चर्चा है कि इस गोपनीय प्रशिक्षण वर्ग से चुनावी जीत का तिलिस्म लेकर नेता बाहर आएंगे. मुद्दे की बात यह है आरएसएस के भीतर अब यह चर्चा भी आम है कि कांग्रेस अपनी नीतियों में बदलाव कर कुछ हद तक आरएसएस जैसा हो जाना चाहती है. आरएसएस की पिच पर कांग्रेस फ्रंटफुट खेल रही है. सो सुनते हैं कि आरएसएस में कांग्रेस की इस रणनीति पर भी मंथन जारी है.