नेहा केशरवानी. रायपुर. पूरे देश में इन दिनों हर घर तिरंगा अभियान (har ghar tiranga) की तैयारी है. केंद्र सरकार ने इस बार देश के 20 करोड़ से अधिक लोगों के घरों में तिरंगा फहराने की योजना बनाई है. लेकिन क्या आप जानते है कि हमारे देश की शान तिरंगा कैसे बनाया गया ? कैसे इस तिरंगे की डिजाईन और कलर बार-बार बदली गई? तिरंगे के पूरे इतिहास को आज राजधानी रायपुर पहुंचे भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के निदेशक डॉ. ओम उपाध्याय ने बताया.
ये है तिरंगे का पूरा इतिहास
डॉ. ओम उपाध्याय ने बताया कि 1904 से 1906 के बीच पहली बार झंडा डिजाइन किया गया. स्वामी विवेकानंद की शिष्या रही भगिनी निवेदिता ने इसे पहली बार डिजाइन किया. उन्होंने जब इसे पहली बार डिजाइन किया तब इसमें दो रंग थे. लाल और पीला, तब तिरंगा नहीं दोरंगा (दो रंग) हुआ करता था, झंडे के बीच वज्र लगाया, वज्र जो इंद्र का अस्त्र माना जाता है और उस पर कमल लगाया, जो निश्चित रुप से शांति का प्रतीक है. तो इस दो रंगे के साथ ये यात्रा शुरु हुई थी.
1906 में फिर रिडिजाइन हुआ तिरंगा
1906 में झंडे का रिडिजाइन होता है. तब इसे तीन रंग का बनाया गया. नीला, पीला और लाल. बंगाल में डिजाइन किए इस झंडे को सचिनंद्र बोस, शुकुवार बोस इसको डिजाइन करते हैं. 7 अगस्त 1906 को सुरेनंद्र नाथ बनर्जी द्वारा इसे फहराया जाता है. इस समय बंगाल के फार्सी चौक पर बहिष्कार दिवस का आयोजन हो रहा होता है, जिसमें यह झंडा प्रतीक बनता है.
1907 में भीखा जी कामा, विनायक दामोदार सावरकर और श्याम जी कृष्ण वर्मा, फिर एक फ्लैग डिजाइन करते हैं, जिसे पहली बार भारत के बाहर जर्मनी में फहराया जाता है और देश के बाहर पहली बार फहराए जाने वाला झंडा, जो कि हरा केसरिया और लाल था.
इसके बाद 1916, 1917, 1921 तक इसकी यात्रा चलती रहती है. 1931 में आता है एक महत्वपूर्ण पड़ाव, जो झंडे को लेकर बनता है. 1931 में जब केसरिया, सफेद और हरा रंग का झंडा बनता है, तब ये तिरंगा अपने उन्नत रुप में आता है. इस झंडे में अतंर इतना था कि बीच में चरखे को लगाया गया था. जिसे कराची में कांग्रेस अधिवेशन से अप्रूव कराया जाता है. पिंगली वैंकया द्वारा ये पूरा कॉनसेप्ट तैयार किया गया और महात्मा गांधी के आदेश पर इसे 5 साल तक डेवलेप किया गया. इस बीच कई आप्पति आती थी, रंगों से निकलने वाले भावों को लेकर आपत्ति आती थी, धीरे-धीरे वो आपत्ति खत्म होती गई.
22 जुलाई 1947 का दिन सबसे महत्वपूर्ण
1947 में 22 जुलाई का महत्वपूर्ण दिन जब सारी आपत्ति खत्म हो गई, तब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के नेतत्व में इसके लिए एक झंडा समिति बनाई जाती है. समिति ये तय करती है कि चरखे को हटा कर उसकी जगह अशोक सारनाथ स्तंभ से 24 तिलियों का चक्र बीच में लगा दिया जाए. यहीं से तैयार होता है हमारा स्वाभिमान, हमारी आन-बान और शान, हमारे देश का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा.
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