बिंदेश पात्रा ,नारायणपुर. इस गांव के लोगों को नहीं पता है कि सरकारी एम्बुलेंस बुलाने के लिए क्या करना पड़ता है. क्या करने से मरीजों को ले जाने के लिए अस्पताल से गाड़ी आती है. आलम तो यह है कि यहा के लोग आज के आधुनिक युग में भी अपना इलाज कराने के लिए अस्पताल नहीं बल्कि ओझा के पास जाते है और झाड़फूक कर उपचार कराते है.

हम बात कर रहे है कि छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ की. जो आज भी देश दुनिया के लिये एक अबूझ पहेली है. यहा के लोग आज भी स्वस्थ्य सुविधाओं से कोसो दूर है, प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के दावे करने वाली सरकार के दावे इस अबूझूमाड़ में आते ही धरे के धरे रह जाते है. यहां के ग्रामीण सिरहा-गुनिया से झाड़फुक करवाकर आज भी अंध विश्वास के मकड़जाल में फंसे हुए है.

जिसका उदाहरण आज अबूझमाड़ के मेटानार पंचायत के आश्रित ग्राम ब्रेहबेड़ा में देखने को मिला है. जहां गांव की एक महिला पिछले तीन सप्ताह से बेहद बीमार है. जिसका उपचार महिला के पति द्वारा झाड़फूक कर कराया जा रहा है. एक झोपड़ी में रहने वाली कारीबाई इचाम के पति नेडाराम इचाम ने बताया कि मेरी पत्नी की तबियत बहुत खराब है. गांव में सरकारी स्वास्थ्य सेवा की सुविधा नहीं होने पर वह गांव के ही एक ओझा के पास अपनी पत्नी का इलाज करावा रहा है. लेकिन अब उसकी तबियत और भी खराब हो गई. ग्रामीणों ने पूछताछ के दौरान बताया गांव में कभी-कभी बीमार लोगों को लाने के लिए अस्पताल से गाड़ी आती है, लेकिन उन्हें नहीं पता है कि गाड़ी बुलाने के लिए क्या करना पड़ता है.