प्रमोद निर्मल, मानपुर। शासन-प्रसासन आदिवासी शिक्षा के उत्थान व नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास के लाख दावे कर ले लेकिन जमीनी हकीकत गाहे-बगाहे सामने आ ही जाती है. इसकी बानगी नवीन जिला मोहला मानपुर के मानपुर ब्लॉक में देखी जा सकती है, जहां शिक्षा व्यवस्था की बदहाली के आगे शासन-प्रशासन के तमाम दावे घुटने टेक चुके हैं.

नक्सल प्रभावित आदिवासी बाहुल्य मानपुर ब्लॉक अंतर्गत ग्राम गहनगट्टा में नौनिहाल पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. बच्चों की पाठशाला इसलिए पेड़ के नीचे लग रही है क्योंकि हफ्ते भर पहले शाला भवन के भीतर बैठकर पढ़ाई करते समय छत का बड़ा हिस्सा भराभरा नीचे गिर गया. गनीमत ये रही कि छत टूट कर किसी बच्चे के ऊपर सीधे नही गिरी अन्यथा बड़ा हादसा भी हो सकता था. हालांकि बच्चों को छुट-पुट चोटें जरूर आई हैं. अब छत पर बड़ा छेद नजर आ रहा है. जिम्मेदारों से स्थिति को देखते हुए बच्चों को बाहर पेड़ के नीचे ही पढ़ाना बेहतर समझा.

प्रशासन स्थिति सुधारने में नाकाम

बता दें कि मानपुर ब्लॉक में शिक्षा के बल पर नक्सल प्रभावित आदिवासी इलाकों के विकास के तमाम दावों को झुठलाती ये एक अकेली तश्वीर नहीं है. बस्तर व महाराष्ट्र के सीमावर्ती औंधी इलाके में ग्राम ऑलकन्हार व मोरचुल में भी शाला का संचालन गांव के सामुदायिक भवन में हो रहा है. इन स्कूल भवनों में दो-तीन वर्षों से कक्षाएं नहीं लग रही है, क्योंकि जर्जर होने की वजह से प्रशासन ने स्कूल भवनों को अनुपयोगी घोषित कर रखा है. बच्चों को संभावित दुर्घटना से बचाने के लिए इन गांवों में लंबे समय से शाला का संचालन उधारी के सामुदायिक भवनों में हो रहा है.

दर्जनभर से अधिक शाला भवन जर्जर

इसी तरह मानपुर ब्लॉक में ऐसे दर्जन भर से अधिक शाला भवन प्रशासन द्वारा अनुपयोगी घोषित की गई हैं. घोडाझरी, बसेली, रानवाही, हनईकल कला, नवागांव, तोलुम, दोरदे, तेरेगांव, ठाकुरटोला, भैंसाराटो के शाला भवनों को प्रशासन ने जर्जर घोषित कर चुका है. ऐसे में इन तमाम स्कूलों का संचालन उधारी के अन्य ठिकानों में जैसे-तैसे संचालित हो रहा है.

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