नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष ने महाभियोग प्रस्ताव ला तो दिया, लेकिन विपक्ष में इसे लेकर काफी मतभेद है. वैसे तो कांग्रेस ने 71 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव का नोटिस उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को सौंपा है, लेकिन लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल और पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस इस प्रस्ताव के समर्थन में नहीं हैं. कांग्रेस ने सीपीएम, सीपीआई, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, एनसीपी और मुस्लिम लीग का समर्थन पत्र उपराष्ट्रपति को सौंपा है. इधर ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी बीजू जनता दल (बीजेडी) पहले से ही इस प्रस्ताव के समर्थन में नहीं है.
सीपीएम में भी महाभियोग प्रस्ताव को लेकर असमंजस
इधर सीजेआई के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन करने वाली सीपीएम में भी अब इसे लेकर मतभेद की स्थिति दिख रही है. जहां पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने प्रस्ताव का समर्थन किया है, तो वहीं वरिष्ठ नेता प्रकाश करात ने इसकी जानकारी होने से ही इनकार कर दिया है.
कांग्रेस में भी मतभेद
कांग्रेस में भी महाभियोग को लेकर मतभेद है. जहां पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि वे महाभियोग प्रस्ताव के समर्थन में नहीं हैं, तो वहीं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी इससे अलग रखा गया है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा है कि अगर संविधान के तहत कोई जज बदसलूकी करता है, तो संसद उसकी जांच कर सकती है. उन्होंने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के कई फैसलों पर भी सवाल उठाए हैं. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने कुछ महीनों पहले सीजेआई की कार्यशैली के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी.
महाभियोग की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है. हस्ताक्षर होने के बाद प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है. ये प्रस्ताव राज्यसभा के सभापति या लोकसभा स्पीकर में से किसी एक को सौंपना पड़ता है. राज्यसभा के सभापति या लोकसभा स्पीकर पर निर्भर करता है कि वे प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं या फिर रद्द. अगर प्रस्ताव स्वीकार होता है, तो आरोप की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया जाता है. इस कमेटी में एक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद् शामिल होते हैं.
इसके बाद अगर कमेटी जज को दोषी पाती है तो जिस सदन में प्रस्ताव दिया गया है, वहां इस रिपोर्ट को पेश किया जाता है. ये रिपोर्ट दूसरे सदन को भी भेजी जाती है. जांच रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से समर्थन मिलने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए चीफ जस्टिस को हटाने का आदेश दे सकते हैं.