तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने रविवार को चीन के सामने एक शर्त रखते हुए कहा कि यदि वह तिब्बत की संस्कृति को विशिष्ट पहचान और सम्मान देने की बात मान ले तो यह चीन का हो सकता है।
साथ ही उन्होंने भारतीय परंपराओं और प्राचीन इतिहास के पुर्नजीवित करने पर जोर दिया। दलाई लामा ने कहा कि ऐतिहासिक व सांस्कृतिक तौर पर तिब्बत स्वतंत्र रहा है । चीन ने 1950 में तिब्बत को अपने नियंत्रण में ले लिया। जब चीन हमारी संस्कृति और तिब्बत के विशेष इतिहास को महत्व देगा, तब तिब्बत इसका हो सकेगा। यह आयोजन तिब्बती धर्मगुरु के भारत आने के 60वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित किया गया था।
गौरतलब है कि 1959 में चीनी सैन्य बलों द्वारा बड़े पैमाने पर विद्रोह के कारण दलाई लामा अपने अनुयायियों के साथ तिब्बत से भारत आ गए थे । 82 वर्षीय तिब्बती आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा को बीजिंग अलगाववादी कहता है जो तिब्बत को चीन से अलग करने की मांग कर रहे हैं।
चीन की सरकार ने तिब्बत में किसी के पास दलाई लामा की एक तस्वीर रखने पर भी रोक लगाई हुई है। जहां भारत की नजरों में दलाई लामा ‘बेहद प्रतिष्ठित एवं सम्माननीय मेहमान’ हैं वहीं चीन उन्हें ‘भिक्षु के वेश में भेडिय़ा’ और ‘अलगाववादियों का प्रमुख’ बताता रहा है। निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे दलाई लामा की पिछले 60 वर्षों से भारत में मौजूदगी को लेकर दोनों देशों के रिश्तों में हमेशा कटुता पैदा होती रही है।