॥ तूफान और दीया॥ अजीत जोगी। संदीप अखिल। श्री अजीत जोगी अपना 72 वां जन्म दिवस “साथ दो “72 के नारे के साथ मना रहे हैं। जब हमारा जाना छत्तीसगढ़ के पेंड्रारोड हुआ, तो छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद जोगी जी जो यहीं के रहने वाले हैं, उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई. उसके लिए उनसे जुड़े लोगों से उनके बारे में जाना उनके बचपन उनके प्रारंभिक जीवन की चर्चा की. वहां के लोगो के पास जोगी से जुड़ी ऐसी यादें, ऐसी बातें थीं कि उनके बारे जानने की हमारी इच्छा और बढ़ गई। जोगी जी के बारे में जानने के लिए सार बस्ती बगरा जोगी डोंगरी का भ्रमण कर पेन्ड्रा रोड ज्योतिपुर के उनके निकटस्थ लोगों से जानकारी ली, तो मै इस निष्कर्ष पहुंचा कि राजनीति के फलक के इस नक्षत्र का पूरा जीवन मुझे एक पुरानी फिल्म के इस गीत से मिलता हुआ लगा।
॥ निर्बल से लड़ाई बलवान की यह कहानी है दिए की और तूफान की॥
श्री अजीत जोगी अभावों की हरियाली हैं. विपन्नता के तपते हुए रेगिस्तान के गरम-गरम लू के थपेड़ों ने इन्हें झुलसाया, तो कभी तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के उपेक्षा के हलाहल ने इनको विदग्ध किया. मिशन स्कूल के इस प्रतिभावान छात्र का मन पद प्रतिष्ठा, मान-सन्मान की ऊंचाई को पाने के लिए सुलग रहा था. ठीक राख में दबी हुई चिंगारी की तरह। फिर इस प्रतिभा को स्व. मथुरा प्रसाद दुबे का प्रश्रय मिलाऔर भोपाल मे इंजीनीरिंग कॉलेज की शिक्षा पूर्ण हुई। विशेष योग्यता के चलते इंजीनीरिंग कॉलेज़ रायपुर के प्राध्यापक बने। संघर्ष जारी रहा। उच्चता, श्रेष्ठता, पद, प्रतिष्ठा की दीपशिखा को जलाए वह ज़माने से जूझता रहे इसीलिए मैंने लिखा-
॥ निर्बल से लड़ाई बलवान की, यह कहानी है दिए की और तूफ़ाने की॥
आखिर IPS बाद में I.A.S की परीक्षा उत्तीर्ण कर कलेक्टर बने. रायपुर, शहडोल और अविभाजित मध्यप्रदेश के बहुत सारे स्थानों में अपनी सेवाएं दीं. बाद में जब ये इन्दौर में पदस्थ थे तब इनके जीवन मे यू टर्न आया। तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह जी की इच्छा से वे वर्ष 1986 में शासकीय सेवा से इस्तीफा देकर राज्यसभा सदस्य बने और उनका राजनैतिक जीवन प्रारंभ हुआ। आदिवासी जन जीवन में बीते बचपन और अभावों में छटपटाते बाल मन के स्मरण ने उन्हें सहज, सरल और संवेदनशील बनाया।
लोगों के स्मरण में है जब राज्य सभा सदस्य बनने के बाद वे पहली बार पेन्ड्रा रोड आए, तो रेलवे स्टेशन पर समर्थकों की भीड़ बाजे-गाजे के साथ स्वागत के लिए तैयार थी। किसी ज़माने मे उपेक्षा करने वाले लोग माला लिए उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। यह देखकर शायद मिशन स्कूल का मैदान हंस रहा था और अपने भाग्य पर इठला रहा था। परंतु रेलवे स्टेशन पर भीड़ और बाजे स्वागत सत्कार को छोड़कर श्री अजीत जोगी उस सेलून में जा पहुंचे, जहां उनके उन दिनों का मित्र था। भीड़ तलाशती रही और जोगी सेलून में अपने मित्र के पास बैठे रहे। दिखने में यह छोटी सी घटना है, पर इसके अन्दर है मानवीय मूल्यों की स्थापना का संदेश। उनकी सहजता और सरलता की आहट। आत्मीयता का अंतरंग स्वर। यही वह कारण है जिसने आज तक अजीत जोगी को अजीत जोगी बनाए रखा है।
राजनीति में उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं। पृथक छतीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई और डोंगरी पेन्ड्रा रोड की तड़पती प्रतिभा को मिला उसकी तपस्या का अभीष्ट। उसके संकल्पों का प्रसाद। राजनीति में समीकरण बनते-बिगड़ते रहते हैं। कभी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पार्टी प्रवक्ता रहे अजीत जोगी को पार्टी ने निलंबित कर दिया। श्री अजीत जोगी के लिए ये पंक्तियां प्रासंगिक लगती है।
॥ रहते थे कभी दिल मे जिनके जान से भी प्यारो की तरह बैठे है उन्हीं के कूचे में हम आज गुनहगारों की तरह॥
अपने तीन वर्षों का मुख्यमंत्रित्व का कार्यकाल उन्होंने सफलतापूर्वक सम्पन्न किया। छतीसगढ़ की नब्ज़ को पकड़ा। कई प्रभावशाली योजनाओं का क्रियान्वयन किया। पृथक छतीसगढ़ राज्य बनने के सुख का आभास जन-जन को कराने में वे सफल रहे। जब आदमी उच्चता को प्राप्त करता है, उसकी प्रतिष्ठा को आकाश की बुलंदियों को छूते देख विरोधी सक्रिय हो जाते हैं। क्षेत्र चाहे राजनीति का हो या समाज सेवा का या आध्यात्म का। जब किसी व्यक्ति का मान सन्मान आसमान की ऊंचाई को छूता है, तो उसी ताकत से विरोधी उसकी प्रतिष्ठा को गिराने का प्रयास करते हैं।
कोई भी राजनेता हो, चाहे वह किसी भी विचारधारा का हो, जब प्रतिष्ठित हो जाता है, तब ऐसा होना स्वाभाविक होता है. जिस सामाजिक पारिवारिक परिवेश से आकर वह उच्चता को प्राप्त करता है, उस समाज में परिवार में उसका दुर्बल पक्ष होता है। वही उस प्रतिष्ठा की छाया है। उसी दुर्बल पक्ष रूपी छाया को पकड़कर लोग उसे नीचे गिराने का प्रयास करते हैं। इस दुर्बल मानव जनित भावना के संक्रमण से अजीत जोगी भी नहीं बचे, उन्हें भी संक्रमण ने प्रभावित किया। कभी जाति के लिए तो कभी अन्य कोई उनके कार्यकाल में घटित घटनाओं के लिए। परंतु अजीत जोगी ने कहा- ज़माने में दम नहीं जो बुझा सके मेरे चराग को क्योंकि हौसलों की हवाएं इनके पीछे रहती हैं।
॥ वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में उन्होंने छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) के नाम से नई पार्टी का गठन कर दिया है। पार्टी सक्रिय भी दिखती है। और वर्तमान सरकार के लिये चुनौती भी। यह तो हम सभी मानते हैं कि अपने नाम के आधार पर भीड़ जुटाने की क्षमता यदि किसी नेता में है तो वे श्री अजीत जोगी हैं। उनमें गजब का आत्मबल और जिजीविषा है। उनकी सभाओं में अच्छा जनसैलाब उमड़ रहा है। वैसे भीड़ को देखकर टिप्पणी कर देना शीघ्रता होगी। सभी नेताओं की सभा में भीड़ हो जाती है या भीड़ एकत्रित कर ली जाती है। देखना तो यह है उस भीड़ का कितना प्रतिशत वोट में तब्दील होता है। बरहाल सच्चे दिन अबकी बार जोगी सरकार तथा “साथ दो” 72 मिशन के साथ जोगी जी अपना 72वां जन्मदिन मना रहे हैं। वैसे अंकों की दृष्टि से 7†2 9 होता है। 9 अंक शुभ होता है। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि अंक गणना का क्या परिणाम होता है। यह तो भविष्य के गर्भ में है। श्री अजीत जोगी को जन्म दिवस की बधाई के साथ मंज़र भोपाली जी का ये शेर उनको समर्पित करता हूं- आँधियाँ ज़ोर दिखाएँ भी तो क्या होता है, गुल खिलाने का हुनर बाद-ए-सबा जानती है.