अक्सर ऑपरेशन कराने के बाद फिर से उभर आती है. ऐसा करीब 10 प्रतिशत केसेज में देखने को मिलता है. जहां मरीज ऑपरेशन कराने के बाद फिर से उस स्थिति में पहुंच जाता है, जब उसे दोबार ऑपरेशन की पीड़ा और खर्च को सहना होता है. लेकिन अगर ऑपरेशन लेप्रोस्कोपिक तकनीक के जरिए किया जाए तो हर्निया के दोबारा पनपने की संभावना दस प्रतिशत से घटकर 0.1 प्रतिशत रह जाती है.

क्या होता है हर्निया?

हर्निया एक ऐसी बीमारी है, जिसमें शरीर के किसी हिस्से की मांशपेशियां अपनी ऊपरी परत के टिश्यूज में छेद करके अंदर का अंग बाहर की तरफ उभरने लगता है. इस समस्या को ही हर्निया कहते हैं. ये आमतौर पर पेट में होता है. लेकिन कमर और जांघों पर भी यह समस्या हो सकती है. अब अगर किसी व्यक्ति की आंत उसके पेट की अंदरूनी परत के कमजोर हिस्से में छेद कर पेट की बाहरी परत के अंदर की तरफ बढऩे लगे, तो यह समस्या हर्निया कहलाएगी. Read More – World Most Expensive Potato : 50 हजार रुपए किलो बिकता है ये आलू, जानिए क्या है इसमें ऐसा खास …

शरीर के इन अंगों में होती है दिक्कत

आमतौर पर हर्निया की समस्या घातक या जानलेवा नहीं होती है. लेकिन इसमें कम या अधिक दर्द हो सकता है. साथ ही आमतौर पर हर्निया को दूर करने के लिए ऑपरेशन ही कराना होता है. जबकि कुछ केसेज में अन्य चिकित्सा पद्धतियों के जरिए भी हर्निया का इलाज किया जाता है.

हर्निया का इलाज इसकी स्थिति और इस बात पर भी निर्भर करता है कि यह शरीर के किस हिस्से में हुआ है. कुछ केसेज में हर्निया के उबरने से नसों पर दबाव पडऩे लगता है, इससे संबधित हिस्से में रक्त का प्रवाह बाधित होता है. इस कारण तुरंत ऑपरेशन की स्थिति भी बन जाती है.

हाइटल हर्निया आमतौर पर 50 साल या इससे अधिक उम्र के लोगों में होता है. लेकिन ब’चों में इस हर्निया के लक्षण उस समय दिखते हैं, जब उन्हें जन्म से ही कोई विशेष दोष रहा हो. इस तरह के हर्निया में पेट के द्रव्यों का रिसाव हमारे फूड पाइप में होने लगता है. इससे पेट में कभी कम और कभी तेज जलन की शिकायत बनी रहती है. Read More – 55 साल की उम्र में 20 का दिखता है ये Model, Physique देख हैरान हैं लोग, ऐसे रखते हैं खुद Fit …

ब’चों को भी हर्निया हो जाता है

अंबिलिकल हर्निया आमतौर पर नवजात शिशुओं में ही देखा जाता है. इस हर्निया को ब’चे के पेट पर उस स्थिति में साफतौर पर देखा जा सकता है, जब बच्चा तेज-तेज रोता है. यह हर्निया का एक मात्र प्रकार है, जो बच्चे के जन्म के एक साल के अंदर-अंदर खुद से ठीक हो जाता है. यदि यह ठीक नहीं होता है तो इसे भी सर्जरी के माध्यम से ही ठीक करना होता है.

क्यों बेहतर है लेप्रोस्कोपिक ट्रीटमेंट?

दरअसल, ओपर सर्जरी के बाद जहां पेशंट को कम से कम दो से तीन दिन हॉस्पिटल में रहना होता है, उसके साथ रहने वाले अटेंडेंट को भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ओपन सर्जरी के बाद दोबारा अपनी रुटीन लाइफ में आने के लिए पेशंट को करीब 1 महीने का इंतजार करना पड़ता है. जबकि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के बाद 10 से 12 दिन में ही पेशंट अपने काम पहले की तरह कर पाता है.