परीक्षा के समय ज्यादा से ज्यादा अंक लाने की होड़, साथी बच्चों से तुलना, लक्ष्य का पूर्व निर्धारित कर उसके अनुरूप प्रदर्शन तथा इसी प्रकार के कई कारण से परीक्षा के पहले बच्चों के मन में तनाव का कारण बनता है. परीक्षा में अच्छे अंक की प्राप्ति के लिए किया गया तनाव अधिकांशतः नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है क्योंकि तनाव के कारण स्मरणशक्ति कम होती है. जिसके कारण पूर्व में तैयार विषय भी याद नहीं रह जाता. घबराहट के कारण स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है. साथ ही अनिद्रा, सिरदर्द तथा स्टेसहार्मोन के कारण एकाग्रता की कमी से परीक्षा का परिणाम भी विपरीत आता है. जोकि डिप्रेशन का कारण बनता है.
अतः परीक्षा के डर के कारण उत्पन्न तनाव को दूर करने हेतु ज्योतिषीय तथ्य का सहारा लिया जा सकता है. जब भी परीक्षा से पहले तनाव के कारण सिरदर्द या अनिद्रा की स्थिति बने तो तृतीयेश ग्रह को शांत करने का उपाय आजमाते हुए चंद्रमा तथा राहु की स्थिति तथा दशाओं और अंतरदशाओं का निरीक्षण कर उक्त ग्रहों के लिए उचित मंत्र जाप, दान द्वारा मनःस्थिति पर नियंत्रण किया जा सकता है. साथ ही ऐसे में जातक को चाहिए कि हनुमान जी के दर्शन कर हनुमान चालीसा का पाठ कर एकाग्रता बढ़ाते हुए शांत मन से पढ़ाई करनी चाहिए साथ ही मन को प्रसन्न करने का उचित उपाय आजमाने से तनाव से मुक्त हुआ जा सकता है.
हर माता-पिता की एक ही कामना होती है कि उसके बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण करें, हर परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करें. इसके लिए वे हर प्रकार से प्रयास करते हैं साथ ही हर वह उपाय करते हैं, जिससे उनकी मनोकामना पूरी हो किंतु हर संभव प्रयास करने के उपरांत भी कई बार असफलता आती है, जिसके कई कारण हो सकते हैं. प्रयास में कमी, परिस्थितियों का विपरीत होना या कोई मामूली सी गलती भी असफलता का कारण हो सकती है. किंतु ज्योतिष दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह सभी घटना आकस्मिक ना होकर ग्रहीय है.
परीक्षा का संबंध स्मरणशक्ति से होता है, जिसका कारक ग्रह है बुध परीक्षा भवन में मानसिक संतुलन का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसका कारक ग्रह है चंद्रमा परीक्षा में विद्या की स्थिरता, विकास का आकंलन मूख्य होता है. जिसका कारक ग्रह है गुरू भाषा या शब्द ज्ञान होना भी परीक्षा में आवश्यक गुण माने जा सकते हैं, जिसका कारक ग्रह होता है शनि. साथ ही राहु तथा शुक्र आपकी भोग तथा सुख के प्रति लालसा को प्रर्दशित करती है अतरू इनके अनुकूल या प्रतिकूल या दशा अंतदशा का प्रभाव भी परीक्षा में पड़ सकता है. इसके अलावा परीक्षार्थी के पंचम स्थान, जहॉ से विद्याविचार द्वितीय स्थान जहॉ से विद्या योग देखा जाता है.
इस सबो के अलावा जातक के विंशोतरी दशाओं पर भी विचार करना चाहिए. लग्न, तीसरे, दसवें, पांचवें, ग्यारवहें शनि के कारण तथा वयस्कता की शुरूआत इन दो वजहों से अथवा शुक्र राहु आदि ग्रहों की अंतरदशाओं में भी व्यवधान संभव है. क्योंकि इन तीनों ग्रहों की दशाओं में जातक स्वेच्छाचारी हो जाता है तथा अनुशासनहीन व अवज्ञाकारी अनियमित तथा बहिरमुखी हो जाता है. परिणामस्वरूप असफलता हाथ आती है. ऐसे जातकों के अभिभावकों को चाहिए कि अपने बच्चों की जन्म कुंडलियॉ विद्धान आचार्यो को दिखाकर उन ग्रहों के विधिवत् उपाय कर अनुशासन तथा आज्ञापालन नियमितता तथा एकाग्रता सुनिश्चित करें. तभी बच्चें अपने कैरियर में ग्रहों के प्रभाव से ऊपर सफलता प्राप्त कर सकते हैं.