होली (HOLI 2023) में रंगों का अपना महत्व होता है. इस त्योहार में लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और खुशियां मनाते हैं. लेकिन देश में एक ऐसी जगह भी है जहां रंगों से होली नहीं खेली जाती है. दरअसल, ऐसा उस परंपरा की वजह से होता है जिसका यहां के लोग बरसों से पालन करते आ रहे हैं.

झारखंड के संथाल आदिवासी समाज में पानी और फूलों की होली करीब एक पखवाड़ा पहले से शुरू हो गई है. संथाली समाज इसे बाहा पर्व के रूप में मनाता है. यहां की परंपराओं में रंग डालने की इजाजत नहीं है. इस समाज में रंग-गुलाल लगाने के खास मायने हैं. अगर किसी लड़के ने समाज में किसी कुंआरी लड़की पर रंग डाल दिया तो, उसे या तो लड़की से शादी करनी पड़ती है या भारी जुर्माना भरना पड़ता है. ये नियम झारखंड के पश्चिम सिंहभूम से लेकर पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी तक के इलाके में प्रचलित है. इसी डर से कोई संथाल युवक किसी युवती के साथ रंग नहीं खेलता. परंपरा के मुताबिक पुरुष केवल पुरुष के साथ ही होली खेल सकता है.

इस आदिवासी बहुल इलाके के लोगों का मानना है कि अगर कोई लड़का या लड़की रंग की होली खेलता है या अगर इनमें से कोई भी एक-दूसरे पर रंग डालता है, तो उन्हें आपस में शादी करनी पड़ती है. यही वजह है कि इस समाज के लोग रंगों से होली नहीं खेलते. इस समुदाय में यह प्रथा बरसों से चली आ रही है. बरसों से इन लोगों ने रंग से होली नहीं खेली.

होली के दौरान यहां ढोल-बाजे के साथ लड़का-लड़की नाचते-गाते हैं और एक-दूसरे पर पानी डालते हैं. लेकिन वो रंग से परहेज करते हैं. यहां आदिवासी होली के दिन से कुछ रोज पहले ही होली खेलना शुरू कर देते हैं. यहां रातभर लोग एक-दूसरे पर पानी डालकर होली खेलते हैं और इस दौरान वो अपनी पारंपरिक वेशभूषा भी पहनते हैं.