नई दिल्ली.  शुक्रवार से मध्यप्रदेश सहित देश के 6 राज्यों के अन्नदाता एक बार फिर से अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर हैं. जिसका असर भी मंडियों पर साफ तौर पर देखा गया. किसान कितने नाराज हैं. इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि शहरी इलाकों में दूध की आपूर्ति बंद कर दी है. कई जगह पर आक्रोशित किसानों ने सड़कों पर फलों और सब्जियों को फेंककर अपना विरोध जताया है. ऐसे में इस विरोध का असर छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिल सकता है. इसी बात के मद्देनजर अब यह जानना जरूरी हो गया है कि कुछ साल पहले जब सरकार ने इन परेशानियों से निजात पाने और किसानों को राहत देने के लिए जो कमेटी गठित की थी. उस कमेटाी की किसानों को लेकर क्या राय थी और उन्होंने अपनी रिपोर्ट में क्या पेश किया था.

 

वजह

बता दें  कि एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में 2004 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने एक आयोग गठित किया था. इस आयोग ने दिसंबर 2004 से अक्टूबर 2006 के बीच पांच रिपोर्ट पेश कीं और बताया कि किसानों की आर्थिक समस्याओं की वजह क्या हैं और उनके निदान के लिए उपाय क्या होने चाहिए.

इस आयोग ने भूमि सुधार के अधूरे एजेंडा, सिंचाई के लिए पानी की कमी, तकनीक का अभाव, समय पर संस्थागत कर्ज, बेहतर और उचित मूल्य दिलाने वाले बाजार का अभाव और मौसम की अनिश्चितता को समस्या का प्रमुख कारण बताया. इसके बाद आयोग ने कुछ सुझाव भी दिए जो इस प्रकार हैं.

सुझाव

  •  खेतिहर जमीन का न्यायोचित वितरण किया जाए. देश में सबसे छोटे किसानों के पास सिर्फ तीन फीसद जमीन है, जबकि शीर्ष दस फीसद किसानों के कब्जे में 54 फीसद है.
  • खेतिहर और वनीय भूमि के गैर कृषि कार्यों के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाए.
  •  किसानों को सार्वजनिक भूमि पर पशुओं को चराने और जनजातीय समुदायों को जंगलों में उत्पाद एकत्रित करने का अधिकार दिया जाए.
  • राष्ट्रीय भूमि उपयोग सलाहकार सेवा स्थापित की जाए. इसे भू उपयोग पर फैसला करने का अधिकार हो और वह पारिस्थितिकीय और बाजार दशाओं को ध्यान में रखकर निर्णय करें.
  • खेतिहर भूमि की बिक्री के नियमन के लिए तंत्र बनाया जाए जो जमीन की उपलब्धता के आधार पर भू उपयोग और खरीदारों के वर्गो के बारे में फैसले करें.

खरीफ सत्र से लागू

इसके अथिरक्त आयोग ने एमएसपी को लेकर भी एक बेहतर फार्मुला दिया था. ज्ञातो हो राष्ट्रीय किसान महासंघ ने 130 संगठनों के साथ केंद्र सरकार के खिलाफ 10 दिवसीय आंदोलन का आह्वान किया है.  उधर, किसान आंदोलन के बीच केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गुरुवार को कहा है कि सरकार इस खरीफ सत्र से ही स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करेगी. पर इसका आंदोलन पर कितना प्रभाव पड़ता है . यह आने वाला दस दिन ही तय करेंगे.