पुरुषोत्तम पात्रा ,गरियाबंद. जिले के किसान फसल चौपट होने पर उतने निराश नहीं दिखे, जितने हताश अब फसल बीमा राशि मिलने पर दिख रहे है. फसल बीमा कंपनी ने किसानों के साथ जो मजाक किया, उसे सुनकर आप भी दंग रह जाओगे.
डेढ़ एकड़ की फसल खराब होने पर मिला 66.43 रुपये का मुआवजा
जिले के छुरा विकासखंड की देवरी पंचायत के आश्रित गॉव गोनबेरा का रहने वाला किसान त्रिलोचन की डेढ़ एकड़ की फसल इस साल खराब हो गई. त्रिलोचन के खेतों में इस साल बिल्कुल धान नही हुआ, सोसायटी में बेचना तो दूर घर में खाने लायक भी धान उसके खेतों में नही हुआ. त्रिलोचन ने जब फसल के लिए खाद बीज सोसायटी से खरीदा था तब सोसायटी ने बिना उससे पूछे उसकी फसल का बीमा कर दिया था और फसल खराब होने के बाद बीमा कम्पनी की ओर से फसल बीमे की राशि का चेक बकायदा त्रिलोचन के पास पहुंचा. चेक मिलते ही त्रिलोचन खुश हो गया, कि चालो उसे उसकी फसल बर्बाद होने का मुआवजा तो मिल गया, लेकिन त्रिलोचन की यह खुशी ज्यादा देर नहीं रही. क्योकि जैसे ही उसकी नजर चेक पर लिखी राशि पर पड़ी, तो उसके होश उड़ गये. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि बीमा कम्पनी ने उसे फसल खराब होने के एवज में मुआवजा दिया है या फिर उसके साथ एक भद्दा मजाक किया है. त्रिलोचन को बीमा कम्पनी की ओर से उसकी डेढ़ एकड़ की फसल खराब होने की एवज में 66 रुपये 43 पैसे का मुआवजा दिया है.
मुआवजे से ज्यादा राशि का प्रीमियम के तौर पर कर चुके है भुगतान
वैसे गोनबेरा में त्रिलोचन अकेला ऐसा किसान नहीं है, जिसके साथ बीमा कंपनी ने ऐसा भद्दा मजाक किया है, बल्कि उसके गॉव के सभी 35 किसानों के साथ कंपनी ने कुछ इसी तरह का मुआवजा देकर किसानों के जले पर नमक छिडकने का काम किया है. किसानों को जो राशि कंपनी ने मुआवजा के तौर पर दी है, उससे कहीं ज्यादा राशि तो किसानो नें प्रीमियम के तौर पर कंपनी में जमा करायी है.
और भी किसानों का है यही हाल
बतादें अकेले गोनबेरा गॉव के किसानों को ही इतना मुआवजा नहीं मिला, बल्कि सिवनी सोसायटी के अन्तर्गत आने वाली 7 पंचायत के 18 गॉव के किसानो को लगभग कुछ इसी तरह का मुआवजा कंपनी की तरफ से दिया गया है. देवरी गॉव के 71 किसानों को 96.71 हेक्टेयर के लिए 25694.86 रुपये, गोनबेरा के 35 किसानों को 35.04 हेक्टेयर के लिए 9310.75 रुपये, बिरोडार के 18 किसानों को 27.42 हेक्टेयर के लिए 7285.95 रुपये, कांटाखुरी के 34 किसानों को 32.81 हेक्टयर के लिए 34565.41 रुपये, राजपुर के 28 किसानों को 35.27 हेक्टेयर के लिए 39258.11 रुपये का मुआवजा कंपनी ने किसानों को मुहैया कराया है, जबकि कोठीगाव पंचायत के अन्तर्गत आने वाले 4 गांव के किसानों को तो अभी मुआवजा ही नहीं है.
बीमा कंपनी ने थमाए मात्र चंद सिक्के
किसानों के लिए उनकी फसल ही उनकी कमाई का जरिया होता है, लेकिन इस साल फसल तो आकाल पड़ने के कारण नहीं हुई. ऐसे में फसल बीमा की राशि ही उनके लिए एक सहारा था. जिसके जरिये वे अपने परिवार की जरूरतें पुरी करते, साहूकार का कर्ज अदा कर पाते, लेकिन फसल बीमा कंपनी ने मुआवजे के चंद सिक्के उनके हाथों में थमाकर चिंता में डाल दिया, ऐसे में किसानों के सामने अगली फसल के आने तक अपनी जरुरतें पुरी करना मुश्किल हो गया है.फसल खराब होने और मुआवजे के तौर पर चंद सिक्के मिलने का असर इन किसानों के घरों में साफ देखने को मिल रहा है, घर की महिलाओं की मानें तो उनके सामने दो वक्त चुल्हा जलाना मुश्किल हो गया है, खरीददारी तो दूर वे ठीक से नमक मिर्ची भी बाजार से खरीदने की स्थिति में नहीं है, जैसे तैसे करके अपने घर को चला रही है.
संबंधित अधिकारी है बेबस
ऐसा नही है कि जिले के जिम्मेदार अधिकारियों को इसकी जानकारी ना हो, कृषि विभाग के सहायक उप संचालक नरसिंह ध्रुव मामले की जानकारी होने के बाद भी नियम कानून से बंधे होने का हवाला देकर खुद को बेबस बता रहे है.
सिस्टम के सामने बेबस किसान
धरती पर आनाज उगाकर पूरे देश का पेट भरने वाला किसान आज सिस्टम के सामने बेबस नजर आ रहा है, पहले तो बिना किसान की सहमति के अपने नियम और शर्तो पर शासन ने किसानों का फसल बीमा करवा दिया और अब मुआवजा बांटने के समय बीमा कंपनी ने अपने नियम शर्तो के आधार पर बेबस किसानों के हाथों में चंद सिक्के थमा दिये, ऐसे में खुद को किसानों का हितैषी बताने वाली सरकार आखिर कैसे खुद को किसानों का हिमायती साबित कर पायेगी.