रायपुर. हमारी मातृभाष हिंदी के महान सपूत, भाषा उन्नयक पंडित माधवराव सप्रे की आज जयंति है. 19 जून 1871 को मध्यप्रदेश के दमोह जिले के पथरिया गांव में उनका जन्म हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर में हुई. मेट्रिक उन्होंने रायपुर से किया. कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए करने के बाद उन्हें तहसीलदार की रूप में शासकीय नौकरी मिली. उस समय के देशभक्त युवाओं में एक परंपरा थी सप्रे जी ने भी शासकीय नौकरी की परवाह न की.
रायपुर में अध्ययन के दौरान पं. माधवराव सप्रे, पं. नंदलाल दुबे जी के समर्क में आये जो इनके शिक्षक थे एवं जिन्होंनें अभिज्ञान शाकुन्तलम और उत्तर रामचरित मानस का हिन्दी में अनुवाद किया था व उद्यान मालिनी नामक मौलिक ग्रंथ भी लिखा था । पं. नंदलाल दुबे नें ही पं. माधवराव सप्रे के मन में साहित्तिक अभिरूचि जगाई जिसने कालांतर में पं. माधवराव सप्रे को ‘छत्तीसगछ मित्र’ व ‘ हिन्दी केसरी’ जैसे पत्रिकाओं के संपादक के रूप में प्रतिष्ठित किया और राष्ट्र कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी के साहित्तिक गुरू के रूप में एक अलग पहचान दिलाई ।
पं. माधवराव सप्रे सन् 1889 में रायपुर के असिस्टेंट कमिश्नर की पुत्री से विवाह के बाद श्वसुर द्वारा अनुशंसित नायब तहसीलदार की नौकरी को ठुकरा दिया. इसी बीच उनकी पत्नी का देहावसान हो गया और शिक्षा में कुछ बाधा आ गई । पुन: 1989 में इन्होंनें कलकत्त विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री ली एवं एलएलबी में प्रवेश ले लिया किन्तु अपने वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण इन्होंनें विधि की परिक्षा को छोड छत्तीसगढ वापस आ गए ।
छत्तीसगढ में आने के बाद परिवार के द्वारा इनका दूसरा विवाह करा दिया गया जिसके कारण इनके पास पारिवारिक जिम्मेदारी बढ़ गई तब इन्होंने सरकारी नौकरी किए बिना समाज व साहित्य सेवा करने के उद्देश्य को कायम रखने व भरण पोषण के लिए पेंड्रा के राजकुमार के अंग्रेजी शिक्षक के रूप में कार्य किया । समाज सुधार व हिन्दी सेवा के जजबे नें इनके मन में पत्र-पत्रिका के प्रकाशन की रूचि जगाई और मित्र वामन लाखे के सहयोग से सन 1900 में ‘छत्तीसगढ मित्र’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया जिसकी ख्याति पूरे देश भर में फैल गई ।
3 साल इसे चलाने के बाद सप्रे जी ने लोकमान्य तिलक के मराठी केसरी को हिंद केसरी के रूप में छापना शुरू किया. साथ ही हिंदी साहित्यकारों व लेखकों को एक सूत्र में पिरोने के लिए नागपुर से हिंदी ग्रंथमाला भी प्रकाशित की. ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ को हिंदी की पहली कहानी होने का श्रेय प्राप्त है।
सप्रे जी पत्रकारिता के साथ ही साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रिय रहे
1921 में रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की और साथ ही रायपुर में ही पहले कन्या विद्यालय जानकी देवी महिला पाठशाला की भी स्थापना की। यह दोनों विद्यालय आज भी चल रहे हैं.
माधव राव सप्रे-
“जिस शिक्षा से स्वाभिमान की वृत्ति जागृत नहीं होती वह शिक्षा किसी काम की नहीं है”
“विदेशी भाषा में शिक्षा होने के कारण हमारी बुद्धि भी विदेशी हो गई है।”