पता नहीं क्यों आज कुछ बांटने का मन कर रहा है. मगर क्या बांटूं समझ नहीं आ रहा है. क्या बाँटना है ये समझ भी लूँ तो किसे बांटूं ये भी समझने में कठिनाई हो रही है. वैसे एक कलमघसीटू के पास बाँटने के लिए आखिर होता क्या है. इधर-उधर का बटोरा हुआ कूड़ा ज्ञान. सोच रहा हूँ यही कूड़ा ज्ञान ही बाँट दूँ आज. क्यों क्या विचार है आपका. ज्ञान के बारे में सोचते ही एक बात याद आ रही है. किसी बड़े कलमघसीटू ने लिख छोड़ा है कि ‘ ज्यों-ज्यों बूढ़त श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जवल होय’. आदमी जब काला रंग में डूबे तो उसमें चमक कैसे आ सकती है. पहले ये लिखी हुई विरोधाभासी बातें मुझे भी समझ नहीं आती थी.

मगर जब से बड़े-बड़े कलमघसीटुओं के संगत में रहने लगा हूँ. अब जाकर उस बड़े कलमघसीटू की लिखी बात समझ में आई है. जैसे-जैसे आदमी ज्ञान के अँधेरे में डूबता चला जाता है, वो और ज्ञानी बनता चला जाता है. जैसे-जैसे आदमी ज्ञान के सागर में उतरता है, उसे अपना ज्ञान तुच्छ नजर आने लगता है. एक बात कहूँ ज्ञान का गर्त बहुत गहरा है. आदमी डूबता चला जाता है. कलमघसीटू की बात चली है तो एक बात याद आ रही है. ये किन कलमघसीटुओं ने कल प्रदेश के प्रथम वित्त मंत्री रामचन्द्र सिंहदेव के मृत्यु की झूठी खबर फैला दी थी. व्हाट्सएप ग्रुपों में मैंने भी श्रद्धांजलि तक अर्पित कर डाली थी.

बाद में कमबख्त कलमघसीटुओं ने खबर का खंडन प्रकाशित कर दी. अपने अधकचरे सूत्रों के जरिये हम क्या फतह करना चाहते हैं. संजू मूवी ने तो समाचार में सूत्र के पात्र की एकदम कहके ले ली है. ब्रेकिंग की होड़ में हम कलमघसीटू ज्ञान के गहरी गर्त में समाते जा रहे हैं. ब्रेकिंग, बिग ब्रेकिंग, एक्सक्लूसिव जैसे टैग एकदम साधारण हो चले हैं. हम लोगों को एक्सक्लूसिव बताकर भी भरोसे में नहीं ले पा रहे हैं. ऐसा लगता है कि आने वाले समय में अपने पाठकों को भरोसे में लेने के लिए माँ कसम बड़ी खबर है, भगवान कसम एक्सक्लूसिव है., खुदा कसम पढ़ लो यार, प्लीज क्लिक करें, उससे बड़ी ये खबर है, फलाने की खबर न पढ़ें झूठी है, हमारी खबर पढ़ें और इनाम जीतें, इस खबर की लिंक पर क्लिक करें ऑफ़र जारी है….जैसे अनर्गल टैग लगाकर खबर प्रकाशित करने शुरू हो जाएँ तो कोई आश्चर्य नहीं है.

वैसे ये बात मैं किसी से चिढ़कर, कुढ़कर नहीं लिख रहा हूँ. एक कलमघसीटू दूसरे कलमघसीटू से चिढ़-कुढ़कर क्या हासिल कर लेगा. कल रात नींद नहीं आई, कई पोर्टल में प्रदेश के प्रथम वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव के निधन का समाचार पब्लिश हो चुकी थी. मुझे लगा कि मैं काफी पिछड़ गया हूँ. मैंने सोचा मुझे भी तत्काल बिना इस खबर की पड़ताल किये अपना कलम घसीटना चाहिए. कभी-कभी जल्दबाजी में कलमघसीटने का मतलब कट कॉपी और पेस्ट भर होता है. ये अलग बात है. हम कलमघसीटुओं के बिरादरी में ये परंपरा आदि-अनादि कालों से चली आ रही है.

मोबाइल क्रांति के बाद इस परंपरा में बाढ़ आ चुकी है. हर मोबाइलधारी हमसे बढ़िया अवैतनिक पत्रकार बन चुका है. वैसे हम पत्रकारों की मामूली वेतन आज के ज़माने में अवैतनिक सेवा जैसी ही है. पता नहीं कलम क्यों घसीट रहे हैं समझ नहीं आता. कलम घसीटते बस इतना ही हो रहा है हम ना दुबरा रहे हैं और ना ही मोटा रहे हैं. कुछ कलम घसीटू तो यहाँ तक कहते हैं बस भाई सांस चल रही है. कलमघसीटुओं की स्थिति दयनीय होती जा रही है. कमायेगा धोतीवाला और खायेगा लंगोटीवाला जैसी स्थिति में भी बेचारे हम कलमघसीटू सिर्फ कलम घसीटते चले जा रहे हैं. भाई जब कलम घसीटा नहीं जा रहा है, तो छोड़ दो घसीटना. बस भाई आज ज्ञान पेलने के लिए इतना ही काफी है. फिर मिलेंगे…

(कलम घसीटू- कंचन ज्वाला कुंदन, ये कलम घसीटू के निजी विचार हैं )