नई दिल्ली  जूस की दुकान पर बर्तन धो रहे इन शख्स को जानते हैं आप? यह करगिल वॉर के वीर योद्धा सतवीर सिंह हैं. इन्हें इस हाल पर सरकारी सिस्टम ने लाकर बैठा दिया है. आज पूरे देश में 19 वां करगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है. लेकिन देश की राजधानी दिल्ली में ही एक योद्धा जूस की दुकान खोलकर खुद ही झूठे बर्तन धो रहे हैं. एक राष्ट्रीय अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक  लांस नायक सतवीर सिंह दिल्ली के ही मुखमेलपुर गांव में रहते हैं. करगिल युद्ध के दिल्ली से इकलौते जाबांज हैं. 19 साल बीत गए, पैर में आज भी पाकिस्तान की एक गोली फंसी हुई है, जिसकी वजह से चल फिर नहीं सकते. बैसाखी ही एक सहारा है. यह योद्धा करगिल की लड़ाई जीते, मगर हक के लिए सिस्टम से लड़ते हुए हार गए.

सतवीर बताते हैं, ‘वह 13 जून 1999 की सुबह थी, करगिल की तोलोलिंग पहाड़ी पर थे. तभी घात लगाए पाकिस्तानी सैनिकों की टुकड़ी से आमना-सामना हो गया. 15 मीटर की दूरी पर थे पाकिस्तानी सैनिक  9 सैनिकों की टुकड़ी की अगुवाई सतवीर ही कर रहे थे. सतवीर ने हैंड ग्रेनेड फेंका बर्फ में 6 सेकंड बाद ग्रेनेड फट गया. जैसे ही फटा पाकिस्तान के 7 सैनिक मारे गए. उन्होंने बताया, ‘हमें कवरिंग फायर मिल रहा था लेकिन 7 जवान हमारे भी शहीद हुए थे.  उसी दरम्यान कई गोलियां लगीं. उनमें एक, पैर की एड़ी में आज भी फंसी हुई है. 17 घंटे वहीं पहाड़ी पर घायल पड़े रहे. सारा खून बह चुका था. 3 बार हेलीकॉप्टर भी हमें लेने आया. लेकिन पाक सैनिकों की फायरिंग की वजह से नहीं उतर पाया. हमारे सैनिक ही हमें ले गए. एयरबस से श्रीनगर लाए, 9 दिन बाद वहां रहने के बाद दिल्ली शिफ्ट कर दिया.

सरकारी आंकड़ों में करीब 527 देश के जवान शहीद हुए और करीब 1,300 से ज्यादा योद्धा घायल हुए थे. भारत की विजय के साथ 26 जुलाई को यह युद्ध समाप्त हुआ. करगिल के उन घायल योद्धाओं में लांस नायक सतवीर सिंह का भी नाम था, उस युद्ध में शहीद हुए अफसरों, सैनिकों की विधवाओं, घायल हुए अफसरों और सैनिकों के लिए तत्कालीन सरकार में पेट्रोल पंप और खेती की जमीन मुहैया करवाने की घोषणा की थी. लांस नायक सतबीर सिंह के पैर में 2 गोलियां लगी थीं. एक तो पांव से लगकर एड़ी से निकल गई और दूसरी पैर में ही फंसी रह गई. वह गोली आज भी उनके पैर में फांसी हुई है.

अभी भी बैसाखी के सहारे चलते हैं सतवीर

इस वीर जवान ने बताया, ‘एक साल से ज्यादा मेरा इलाज दिल्ली सेना के बेस हॉस्पिटल में चला. मुझे भी औरों की तरह पेट्रोल पंप आवंटित होने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी, लेकिन दुर्भाग्यवश पेट्रोल पंप नहीं मिल सका. इसके बाद जीवनयापन करने के लिए मुझे करीब 5 बीघा जमीन दी गई. मैंने उस पर फलों का एक बाग भी लगाया. वह जमीन का टुकड़ा भी करीब 3 साल तक मेरे पास रहा, लेकिन बाद में मुझसे छीन लिया. 2 बेटे हैं जिनकी पढ़ाई भी पैसों के अभाव में छूट गई। पेंशन और इस जूस की दुकान से घर का खर्च मुश्किल से चलता है.’


वह कहते हैं, ’13 साल 11 महीने नौकरी की, मेडिकल ग्राउंड पर अनफिट करार दिया. दिल्ली का अकेला सिपाही था. सर्विस सेवा स्पेशल मेडल मिला, सरकार ने जमीन व उस पर पेट्रोल पंप देने का वादा किया. उसी दरम्यान एक बड़ी पार्टी के नेता की तरफ से संपर्क किया गया ऑफर दिया कि पेट्रोल पंप उनके नाम कर दूं. मैंने इनकार किया तो सब कुछ छीन लिया गया. 19 साल से फाइलें पीएम, राष्ट्रपति, मंत्रालयों में घूम रही हैं। आज तक कोई नहीं मिला। कोई मदद नहीं मिली। सम्मान नहीं मिला। डिफेंस ने सम्मान बरकार रखा.’