जगदलपूर। भूराजस्व संशोधन अधिनियम में संशोधन के खिलाफ विपक्ष के साथ ही आदिवासी नेताओं ने भी अपना मोर्चा खोल दिया है. पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा बस्तर के आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने वर्तमान सरकार पर करारा हमला बोलते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री और कई मंत्री आउटसोर्सिंग से आए हुए हैं. इसलिए उनके मन में आदिवासियों के प्रति दर्द नहीं है और आदिवासियों की जमीन को उद्योगपतियों को बेचने के लिए भू -राजस्व संशोधन अधिनियम 2017 लेकर सामने आई है.
जिसका आदिवासी समाज भी पुरजोर तरीके से विरोध कर रहा है और इस मामले पर 6 जनवरी को ब्लॉक स्तरीय धरना होगा उसी के साथ ही साथ जिला स्तर पर भी धरना प्रदर्शन किया जाएगा.
आदिवासी नेता नेताम ने कहा कि आदिवासी कभी भी विकास के विरोधी नहीं है किंतु सरकार जिस प्रकार का माहौल बना रही है वह उसी के लिए ही नुकसानदायक साबित होगा. क्योंकि बस्तर और सरगुजा क्षेत्र में पेशा कानून भू अधिग्रहण कानून 2013 वन अधिकार कानून के तहत जल जंगल जमीन पर किस प्रकार का काम किया जाए. उसको लेकर उस क्षेत्र के लोगों की ग्राम सभा के माध्यम से सहमति आवश्यक है.
कितने प्रोजेक्ट आदिवासियों के विरोध के कारण रुके, सरकार जारी करे श्वेत पत्र
नेताम ने कहा कि राज्य सरकार इस कानून के सहारे उद्योगपतियों को आदिवासी क्षेत्र की जमीन देने की तैयारी कर रही है जिसका तगड़ा विरोध किया जाएगा. आदिवासियों को बार-बार विकास विरोधी कहे जाने से आहत नेताम ने स्पष्ट किया है कि विकास का पैमाना सरकार तय करे और उसे श्वेत पत्र के माध्यम से यह स्पष्ट करना चाहिए. बस्तर और सरगुजा में आदिवासियों के विरोध के कारण कितने प्रोजेक्ट रुके. बस्तर और सरगुजा में प्रचलित कानून पेशा कानून के तहत कितने उद्योगपति यहां पर जबरन रह रहे हैं.
बहुमत है तो क्या कोई भी कानून बना सकते हैं
अरविंद नेताम ने लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में कहा कि ये आउटसोर्सिंग वाली सरकार है, आदिवासियों की भावना और उनके मनोविज्ञान को समझने की कोशिश ही नहीं करते हैं. उन्होंने कहा कि सरकार दादागिरी कर रही है, बहुमत है तो हम कुछ भी कर सकते हैं कोई भी कानून बना सकते हैं. पार्लियामेंट ने 4 से 5 कानून बनाए हैं आदिवासियों की जमीन की रक्षा के लिए तो हम जानना चाहते हैं कि देश में पार्लियामेंट का कानून बड़ा है या विधानसभा का. फिर उन कानूनों का क्या होगा जो पार्लियामेंट ने बनाए हैं , संविधान का क्या होगा. हमारे सामने यह समस्या है लोग बता दें कि विधानसभा का कानून बड़ा है हम मान लेंगे. हम तो यही समझते हैं कि पार्लियामेंट का कानून बड़ा है संविधान सबसे ऊपर है.
नेताम ने बताया कि इस मामले को लेकर ब्लॉक स्तरीय धरना प्रदर्शन के बाद सर्व आदिवासी समाज की बैठक होगी जिसमें फैसला लिया जाएगा. 10 फरवरी को राजधानी रायपुर में प्रदेश भर के आदिवासी इकट्ठा सरकार के इस संशोधन के खिलाफ लामबंद होंगे.