शिवा यादव, सुकमा. सुकमा जिले के छोटे से गांव दोरनापाल की रानी राय अब साउथ अफ्रीका में प्रदेश का नाम रौशन कर रही है. इस बेटी को पिता ने हाट बाजार में पुराने कपड़े बेचकर भिलाई के एक नामी कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करवाई और अब ये बेटी 6.5 लाख रुपए के पैकेज में नौकरी कर पिता का सहारा बन रही है.
रानी राय का बचपन बेहद संघर्ष पूर्ण रहा, परिवार की आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी ठीक नहीं थी. हाट बाजार में पुराने कपड़ों को बेचकर पिता ठाकुर दास राय किसी तरह बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतेजाम बड़ी मुश्किल से कर पाते थे.
पिता का सपना था कि किसी भी तरह बच्चों को अच्छी शिक्षा दें. लेकिन आर्थिंक तंगी उनके और सपनों के बीच रोड़ा बनी हुई थी. गरीबी के कारण पिता श्रीठाकुर दास राय भी शिक्षा से वंचित रहे. खुद नहीं पढ़ पाये लेकिन शिक्षा की एहमियत को अच्छे से समझते थे. यही कारण था कि माली हालत ठीक नहीं होने के कारण भी बच्चों के शीक्षा में कभी कमी नहीं आने दिया. आज उनकी बड़ी बेटी रानी राय पिता के सपनों को पूरा ही नहीं किया बल्कि पूरे परिवार का सहारा बनी है. पिता ने पुराने कपड़े बेचकर अपनी बेटी भिलाई के श्री शंकरार्चाय कॉलेज से आईटी ब्रांच में इंजीनियरिंग की पढ़ाई 2014 में पूरी करवाई. इसके बाद ही रानी का कैंपस सलेक्शन हुआ. वर्तमान में रानी मुंबई की एक कंपनी में 6.5 लाख रुपए के पैकेज में काम करती है और उस कंपनी के प्रोजेक्ट के सिलसिले में साउथ आफ्रिका में भी काम करने गई थी.
रानी के मुताबिक उसके पिता श्रीठाकुर दास राय जिले के ग्रामीण इलाकों में लगने वाले हाट-बाजारों में पुराने कपड़े बेचने का काम करते हैं. विरासत में मिली इस व्यवसाय के अलावा उनके पास और कोई रास्ता नहीं था. हालात ऐसे थे कि रोज काम किया तो दो वक्त की रोटी का इंतेजाम हो पाता था. हालांकि ये बात रानी जब भी अपने दोस्तों को बताती की वे नक्सल प्रभावित क्षेत्र से आई है, उनके दोस्त ये सुनकर काफी खुश होते और हमेशा उनका हौंसला बढ़ाते थे, यही कारण है कि रानी आज इस बुलंदियो पर काबिज है.
बेटियों को कभी बेटों से कम नहीं सोचा
ठाकुर दास राय के तीन बेटियां और एक बेटा है. रानी उनमें बड़ी है. रानी प्राथमिक स्कूल से ही होशियार और पढ़ाई में तेज थी. बेटी की शिक्षा के प्रति रूचि देखकर पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा देने का ठान ली थी. रानी की प्राथमिक शिक्षा देारनापाल पूरी करने के बाद दंतेवाड़ा भेज दिया. एक साल की पढ़ाई पूरी करने के बाद घर की तंगी हालत ने पिता को सुकमा वापस लाने पर मजबूर कर दिया. सुकमा में ही किसी तरह हाई स्कूल की शिक्षा दिलाने के बाद हायर सेकेण्डरी के लिए रायपुर भेज दिया, लगातार बेटी का अच्छे नंबरों से उत्र्तीण होना पिता के लिए नई मुसिबत बन रही थी. बावजूद इसके पिता ठाकुर दास राय ने हार नहीं माना इंजीनियर की पढ़ाई करने की बेटी की इच्छा को पूरा करने पिता ठाकुर दास राय ने अपनी पुष्तैनी जमीन को बेच दिया. इंजीनियर की पढ़ाई के अंतिम वर्ष में ही देश की नामी कंपनी में रानी राय का कैंपस सलेक्शन हो गया. अब वो अपने माता पिता के सपनो को पूरा करने के बाद अपने छोटे भाई बहनों को एक अच्छा इंसान बनाकर उनकी पढ़ाई में मदद कर रही है.