रायपुर. वेद में एक वाक्य है कि वाणी की मधुरता से सहज ही सभी को मित्र और कर्कश वाणी से दुश्मन बनाया जा सकता है. विभिन्न वेदों और शास्त्रों में भी वाणी संयम को सर्वश्रेष्ठ तप कहा गया है. ऋग्वेद में कहा गया है, या ते जिव्हा मधुमति सुमेधाने देवेषूच्यत उरुचि. यानी, तू मीठी और सद्बुद्धि युक्त वाणी का प्रयोग कर, जिसे देव बोलते हैं. नीतिशास्त्र में कहा गया है, ‘झूठ बोलना, कटु बोलना, असंगत बात कहना, अहंकारयुक्त शब्द बोलना, निंदा करना आदि वाणी के ऐसे उद्वेग दोष हैं, जिनसे मनुष्य पग-पग पर संकट में पड़ता है. अतः एक-एक शब्द सोच-समझकर बोलना चाहिए.’

विदुर नीति में कहा गया है कि ‘असंयमपूर्ण बोलने की अपेक्षा मौन रहना श्रेयस्कर है. सत्य, प्रिय और धर्मयुक्त वचन ही उच्चरित करने चाहिए. मनमाने ढंग से ऊटपटांग बोल देने वाला पग-पग पर शत्रु पैदा करता है.’ मीठे वचनों में इतनी शक्ति और आकर्षण होता है कि पराया आदमी भी मित्र व हितैषी बन जाता है, जबकि कटु वचन बोलने वाला भाई-बांधवों और मित्रों को भी दुश्मन बना लेता है. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘पार्थ, जिस वाणी को धारण करने से मानव को यश और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, जिससे मनुष्य की विद्वान के रूप में पहचान होती है, उस वाणी को वाक् कहते हैं. ऐसा व्यक्ति वागीश अर्थात वाणी का देवता कहलाता है.’ तलवार का घाव देर-सबेर भर जाता है, किंतु कटु वाणी से हुआ घाव कभी नहीं भरता. इसलिए हमेशा “मीठा और उचित बोलिए. खुद भी प्रसन्न होइए और दूसरों को भी प्रसन्न कीजिए” जीवन में किसी व्यक्ति की पहचान उसकी आवाज होती है.

कोई व्यक्ति किस प्रकार के जबान से पहचाना जायेगा और उसका लोग आदर करेंगे, उसे बात करना पसंद करेंगे या उससे बचते हुए रहना चाहेंगे यह सब कुछ ज्योतिषीय ग्रहों की गणना का विषय है. उसके सभी रिश्ते और अपनापन उसके जुबान के द्वारा बनती और बिगड़ती हैं वहीं यदि हम ज्योतिषीय नजरिए से देखें तो किसी की कुंडली में उसका यही काम उसका तीसरा स्थान या तीसरे स्थान का स्वामी करता है. अतः यदि किसी जातक को लगातर उसके जुबान के कारण अपमानित होना पड़ रहा हो अथवा उसके जुबान या भाषाशैली के कारण उसके रिश्तों में कटुता आ रही हो या रिश्ते खराब हो रहे हों तो ऐेसे व्यक्ति को अपनी कुंडली के तीसरे स्थान का विवेचन कर उससे संबंधित ग्रहों की शांति, मंत्रजाप अथवा उस ग्रह से संबंधित वस्तुओं के दान एवं उस ग्रह के अनुकूल व्यवहार रखकर अपना तीसरा घर सुधारने का प्रयास करना चाहिए और अपने बिगड़ कार्य या बिगड़े रिश्तों में मधुरता लाना चाहिए. जिसके लिए गणेश मन्त्र का जाप करना चाहिए. सत्यनारायन भगवन की कथा सुनना चाहिए, पूजा करानी चाहिए. पौधे या इलायची का दान करना और पन्ना धारण करना चाहिए.