राम कुमार यादव, सरगुजा। जिला कलेक्टर विलाश भोस्कार शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए जंगल और पहाड़ियों में पैदल चलकर स्कूलों का निरीक्षण कर रहे हैं, वहीं कई ऐसे स्कूल हैं जहां इस प्रकार के शिक्षक पदस्थ हैं जो बेधड़क शराब पीकर स्कूल आते हैं। यह शिक्षक न सिर्फ अपने पेशे बल्कि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है। ऐसा ही एक मामला सरगुजा जिले के लखनपुर ब्लॉक के प्राइमरी स्कूल लब्जी से सामने आया है। यहां एक टीचर शराब पीकर स्कूल पहुंचा था। जब मीडिया कर्मियों ने उससे शराब पीकर आने बारे में पुछा तो उसने कैमरे से बचने की कोशिश की और यहां मामले को दबाने के लिए पैसे भी देने की पेशकश की।

जब मीडिया कर्मियों ने उससे पैसे लेने से इंकार कर दिया तब उसने बात आगे न बढ़ाने का हवाला देते हुए शराब पीकर स्कूल आने की बात कबूल की, उसने मीडिया कर्मियों से कहा कि ज्यादा चढ़ गई तो उतारने के लिए स्कूल आने से पहले उसने थोड़ी सी पी ली।

प्राथमिक शाला लब्जी में विशेष जनजाति के 38 बच्चे करते है पढ़ाई

बता दें कि लखनपुर विकासखंड के शासकीय प्राथमिक शाला लब्जी में लगभग 38 विशेष जनजाति के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, जिनकी शिक्षा की जिम्मेदारी दो शिक्षकों पर है। लेकिन जब एक शिक्षक ट्रेनिंग में गए होते हैं, तो दूसरे शिक्षक, पौलुस तिर्की शराब के नशे में स्कूल आते हैं, जिससे बच्चों की शिक्षा पर गहरा असर पड़ रहा है। शिक्षक की गैरजिम्मेदाराना हरकतों से बच्चे पढ़ाई छोड़कर खेलने में मग्न हो जाते हैं। इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि बच्चे स्कूल में क्या सीखते होंगे।

शराबी शिक्षक को किया गया सस्पेंड

बता दें कि वीडियो वायरल होने के बाद कलेक्टर विलास भोस्कर के निर्देश पर बीईओ प्रदीप राय ने लब्जी स्कूल का दौरा किया। प्रधान पाठक और शिक्षक ने शराब पीने की पुष्टि की। सरगुजा डीईओ अशोक सिन्हा ने शिक्षक पौलुस तिर्की को निलंबित कर दिया है । निलंबन अवधि के दौरान उनका मुख्यालय बीईओ कार्यालय उदयपुर तय किया गया है।

नाकामी छिपाने BEO ने जारी किया तुगलगी फरमान

गौरतलब है कि शिक्षा की अव्यवस्थाओं और शिक्षकों की अनुचित हरकतों को छिपाने के लिए लखनपुर विकासखंड के शिक्षा अधिकारी ने एक तुगलगी फरमान जारी किया है। इस आदेश के तहत, स्कूल परिसर में पढ़ाई के दौरान बच्चों के परिजनों और विभागीय अधिकारियों को छोड़कर किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित कर दिया गया है। इसका उद्देश्य शिक्षा विभाग की आंतरिक खामियों को बाहर न आने देना प्रतीत होता है।

यह फैसला शिक्षा विभाग की कमियों को छिपाने का एक प्रयास माना जा सकता है, क्योंकि ऐसे फरमानों से आम लोगों और मीडिया की पहुंच स्कूल तक नहीं हो पाएगी, जिससे शिक्षकों की अनुचित गतिविधियों पर पर्दा डाला जा सके। इसका असर न केवल शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ेगा, बल्कि बच्चों के भविष्य पर भी गहरा नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

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