रोहित कश्यप, मुंगेली. आपने विश्व में कई राम-जानकी मंदिर देखे होंगे लेकिन आज हम आपको ऐसा मंदिर के बारे में बता रहे जो पूरे विश्व कहीं नहीं बनाया गया है. इस मंदिर की पहरेदारी रावण करते हैं, इस मंदिर के द्वारपाल मे पदमासन में रावण की मूर्ति है, जो पुरे विश्व में ऐसा मंदिर कही नही है, 6वीं सदी का यह मंदिर फणीनागवंशी राजाओं के द्वारा स्वप्न आने के बाद निर्मित किया गया था.

मुंगेली जिला मुख्यालय से लगभग 15 किमी मुंगेली-जबलपुर मुख्य सड़क मार्ग पर स्थापित है 6वीं शताब्दी का मंदिर श्वेतगंगा. इस मंदिर की मुख्य विशेषता है कि यह विश्व का ऐसा रामजानकी मंदिर है जिसके बाहर ईशान्य दिवार पर पद्मासन्न अवस्था में अहंकारी रावण स्थापित है,जो इस मंदिर की रक्षा करता है, वहीं लोगों को एक सन्देश जाता है की लोग अपने अंदर अहंकार को त्याग करके गर्भगृह में जाकर भगवान राम-जानकी के दर्शन करे.

इस मंदिर के गर्भगृह के समक्ष 12 प्रस्तर विग्रह-स्तम्भ है, जिसमें दक्षिण दिवार में नैऋत्य दिशा में गणेश स्तम्भ,दक्षिण दिशा में केशर अबीर गुलाल लिए राधा जी, आग्नेय दिशा में श्री कृष्ण, वायव्य में ब्रम्हा जी व ईशान्य में लक्ष्मण जी विध्यमान है। पूर्व में एक विचित्र नागपुरुष विध्यमान है. मध्य के चारो स्तम्भो के ऊपर चारो कोनो में देवी-देवताओं या पौराणिक कथा चित विध्यमान है. गर्भगृह के दोनों ओर गंगा-यमुना कलशधारी विग्रह तथा महर्षि,नारद और प्रवेश द्वार पर विचित्र गणपति विध्यमान है.

इस मन्दिर के सम्बन्ध में कई धार्मिक उत्सव,सत्संग,प्रवचन,पूजा पाठ कार्यक्रम होते रहते है, यहां रामनवमी में श्रीरामजन्मोत्सव,महाशिवरात्रि में रुद्राभिषेक,श्रावण माह में श्रीकृष्णजन्मोत्सव, मकरसक्रांति में दूर-दराज से लोग यहाँ श्वेतकुण्ड में पवित्र स्नान, बसन्त पंचमी में माँ सरस्वती-माँ लक्ष्मी पूजा और यहाँ माघ-पूर्णिमा में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, श्वेतगंगा के पवित्र कुण्ड स्नान तथा रामजानकी मन्दिर, महामाया मंदिर, हनुमान, शिव और गुरुघासी दास के दर्शन के लिए स्थानीय लोगों के साथ-साथ दूर दराज से लोग यहाँ पहुचते है जिससे सामाजिक सरसता और सदभावना को बल मिलता है. यहाँ लोगों की आस्था जुडी हुई है,लोग अपनी मन्नते लेकर यहाँ पहुचते है.

 

पुजारी पंडित महंत राधेश्याम दास बताते है कि यहाँ लोगो की आस्था जुडी हुई है लोग अपनी मनोकामना लेकर यहाँ पूछते है नर्मदा कुण्ड में लोग यहाँ अपने पाप धोते है मुख्य बात यहा यह है की मंदिर के बाहर रावण की पद्मसन्न मूर्ति स्थापित जो इस मंदिर की रक्षा करती है साथ ही लोग अहंकारी रावण की अहंकार को त्याग करके गर्भगृह पहुंचकर मंदिर में प्रवेश कर दर्शन करे.

मंदिर 6वीं शताब्दी की यहाँ नागवंशी राजाओ के स्वप्न के बाद निर्मित किया था राजा अपने स्वप्न की सत्यता के लिए गंगा नदी में नारियल में ताम्रपत्र लपेटकर डालने पर वही नारियल श्वेतगंगा के कुण्ड उदगम में निकलने से हुआ,यहाँ माघ पूर्णिमा पर 5 दिवसीय भव्य मेले का आयोजन किया जाता है.जिसमे लोग बड़े दूर दूर से यहाँ आस्था से जुड़े लोग पहुंचते है.

जिले में एक मात्र 6वीं सदी का मन्दिर धार्मिक पवित्र स्थल की बड़ी विडम्बना है की भोरमदेव से पहले की यह मंदिर आज तक पर्यटन घोषित नहीं हो पाई है. कई बार पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह का कार्यक्रम हो चुका है. उन्होंने ने आश्वस्त भी किया लेकिन आज भी 6वीं सदी का यह मन्दिर की उपेक्षा की जा रही है, जबकि यह मन्दिर विश्व् का ऐसा अद्वितीय मन्दिर है जहा रावण पद्मसन्न अवस्था में मंदिर के द्वारपाल में स्थित है, अगर इसे पर्यटन में लिया जाए तो श्वेतगंगा की अलग पहचान हो जाएगी. जिसे बाहर से पर्यटक देखने के लिए पहुंचेंगे और मन्दिर की खासियत पहचान सकेंगे.