गौरेला-पेंड्रा-मरवाही. आचार्य विद्यासागर महाराज का जीवन त्याग, तपस्या और संयम से भरा है. आचार्य विद्यासागर की आयु 76 वर्ष है और आहार इतना अल्प कि साधारण व्यक्ति के एक घंटे की ऊर्जा के लिए भी पर्याप्त नहीं है. आचार्य विद्यासागर 50 वर्ष से अधिक काल से नीरस आहार बिना नमक और शक्कर के चैबीस घंटे में एक बार खाते हैं. कभी-कभी कई दिन तक खाते भी नहीं हैं.

उन्होंने सांसारिक अवलंबनों का पूर्णतः त्याग वस्त्र का रंचमात्र भी उपयोग नहीं किया और ये साधना का बल है कि उनकी ऊर्जा उनकी सरलता सहजता त्याग को देख संसार और विज्ञान आश्चर्यचकित है. इस आयु में सामान्य गृहस्थ व एक-एक इंच चलने में असमर्थ हो जाता है. लाठी डंडा का सहारा लेकर एक-एक पग चलता है. बात-बात पर झुंझला जाता है, आंखों से दिखाई देना बंद हो जाता है या कम हो जाता है परंतु आचार्य विद्यासागर इन सभी चीजों से मुक्त हैं, क्योंकि वे साधना, त्याग और अहिंसा की मूर्ति हैं. संसार के लिए वरदान हैं और पंचम काल में तीर्थंकर भगवान के अनुरूप हैं.

छिंदवाड़ा जिले की सीमा पर हैं आचार्य
आचार्य विद्यासागर महावीर भगवान के पथ के सच्चे अनुयायी हैं. इस आयु में भी वे इतने मुस्कुरा रहे हैं जैसे करोड़ों की लॉटरी लग गई हो. आचार्य श्री में कुछ शारिरीक अस्वस्थता को देख जगत में चिंता व्याप्त हो गई थी, किंतु त्याग का यह परिणाम है कि कुछ ही महीनों के बाद आचार्यश्री इस तपती धरती पर रहली पटनागंज से लगभग 250 किमी से अधिक पदविहार करते छिंदवाड़ा जिले की सीमा पर हैं और अभी सतत चल रहे हैं.

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