रायपुर। झीरम घाटी नक्सल हमला मामले में न्यायिक आयोग के समक्ष प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी ने शपथ-पत्र के साथ जाँच के 8 बिंदुओं पर अपना जवाब प्रस्तुत किया है. उन्होंने बताया कि जिस समय यह घटना हुई, वे संचार विभाग में अध्यक्ष पद का दायित्व संभाल रहे थे. इस नाते उनकी तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल रोज बात होती थी. परिवर्तन यात्रा संबंधित कार्यक्रमों की जानकारी मीडिया में देने के बाद वे स्थानीय प्रशासन और पुलिस को देते थे.

शैलेष निति त्रिवेदी शपथ-पत्र में क्या कुछ लिखा वह आप हूबहू यहाँ पर पढ़ सकते हैं, जिसे खुद उन्होंने मीडिया में जारी किया है.

शपथ-पत्र

मैं शैलेश नितिन त्रिवेदी पिता/पति स्व. गिरिजा शंकर त्रिवेदी, उम्र 56 वर्ष, व्यवसाय कृषि, निवासी ग्राम-पहंदा, पो. तह. बलौदाबाजार, शपथपूर्वक निम्नांकित कथन करता/करती हूं :-

स्रोत :- इस शपथ पत्र में मेरे कथन मेरी व्यक्तिगत जानकारी तथा सूचनाएँ जिस पर मैं भरोसा करता हूं तथा जो विभिन्न माध्यमों से मुझे प्राप्त हुये तथा जिनका विश्लेषण करने पर जो स्वयं सिद्ध हो रहे है पर आधारित हैं।

मैं झीरम घाटी की घटना के दिन छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया विभाग का अध्यक्ष था। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल से मेरा जीवंत संपर्क था। लगभग प्रतिदिन मेरी विभिन्न राजनैतिक, समसामयिक और सामाजिक विषयों पर चर्चा होती थी।

पीसीसी प्रदेश कार्यालय से आने पर परिवर्तन यात्रा का कार्यक्रम प्रेस में जारी किया जाता था। पीसीसी कार्यालय से मीडिया विभाग के साथ-साथ एक प्रति डीजीपी, संबंधित जिलों में एसपी को भेजी जाती थी। यात्रा के बस्तर क्षेत्र भ्रमण के कार्यक्रम में बदलाव की जानकारी भी कई दिन पहले पुलिस अधिकारियों को भेज दी गयी थी। 20 मई 2013 को ही यह जानकारी दे दी गयी थी कि परिवर्तन यात्रा 25 मई को जगदलपुर से राष्ट्रीय राज्य मार्ग से सुकमा तक जायेगी और उसी मार्ग से काफिला वापस आएगा।

जांच बिन्दु क्र. 1-नवंबर 2012 में स्व. महेन्द्र कर्मा पर हुये हमले के पश्चात् क्या उनकी सुरक्षा की समीक्षा प्रोटेक्शन रिव्यू ग्रुप के द्वारा की गई थी?

एवं

जांच बिन्दु क्र. 2-स्व. महेन्द्र कर्मा को नवंबर 2012 में उन पर हुये हमले के पश्चात्, उनके द्वारा मांगी गई अतिरिक्त सुरक्षा की मांग पर किस स्तर पर विचार निर्णय किया गया था और उस पर क्या कार्यवाही की गई थी?

8 नवंबर 2012 में और उसके पहले भी और बाद में भी स्व. महेन्द्र कर्मा माओवादियों के निशाने पर रहे। उनके गांव से दंतेवाड़ा के मार्ग में उनकी गाड़ी ब्लास्ट की जा चुकी थी।

माओवादियों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के कारण कर्मा जी पर लगातार हमले होते रहे और उनके खिलाफ हमलों की साजिश की जानकारियां विभिन्न समाचार माध्यमों में मिलती रही है। स्व. महेन्द्र कर्मा माओवादियों की हिटलिस्ट में थे। 25 मई 2013 को परिवर्तन यात्रा में शरीक स्व. महेन्द्र कर्मा की पहचान होने के बाद जिस क्रूरता से स्व. महेन्द्र कर्मा पर संगीनो, कुल्हाड़ी, बंदूक से हमला किया गया और उनकी शहादत के बाद जिस तरह से माओवादियों ने उत्सव मनाया वह इस बात का जीताजागता प्रमाण है। स्व. श्री महेन्द्र कर्मा को मारने की साजिश नक्सलियों के विशेष अभियान टी.सी.ओ.सी. 2013 में विशेष रूप से रची गयी हैं। यह गुप्त सूचना 10 अप्रैल 2013 को पुलिस मुख्यालय ने आई.जी. बस्तर के अलावा एस.पी. दंतेवाडा बीजापुर को भेजी थी। यही सूचना बस्तर एस.पी. और सुकमा एस.पी. (इन दोनो जिलों के बीच ही झीरम घाटी है।) को क्यों नहीं भेजी गयी? इसकी कोई जांच नहीं हुई है। इस गुप्त सूचना के बावजूद स्व. कर्मा की सुरक्षा में अतिरिक्त जवानों की तैनाती नहीं की गयी और केवल रूटीन में पहले से तैनात अधिकारियों कर्मचारियों को सतर्कता बरतने का निर्देश दे दिया गया। उक्त गुप्त सूचना की प्रतिलिपि संलग्नक 1 के रूप में शपथ पत्र के साथ संलग्न है।

यह कि 2005 से 2011 के बीच जब तक स्व. महेन्द्र कर्मा के नेतृत्व में ’’सलवा जुड़ुम’’ अभियान चलाया जा रहा था डॉ. रमन सिंह की सरकार ने उनके कन्धों का इस्तेमाल करते हुए अपनी राजनीति की। परन्तु सन् 2011 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा जब ’’सलवा जुड़ुम’’ की आड़ में राज्य के पुलिस बलों द्वारा आदिवासियों पर अत्याचार की बात कहते हुए ’’सलवा जुड़ुम’’ को बंद करने का आदेश दे दिये गये थे। तब से राज्य सरकार माओवादियो के निशाने पर रहे स्व. महेन्द्र कर्मा और सलवा जुड़ुम के अन्य नेताओं की सुरक्षा के लिए चिंतित नहीं रही, बल्कि दूसरी ओर राज्य सरकार और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह व उनके भ्रष्ट नजदीकी अधिकारी किसी तरह से सीधे नक्सलवादियों से समझौते का रास्ता तलाशने में लगे रहे जिससे कि बस्तर क्षेत्रों में खनिजो की लूट की जा सके।

स्व. महेन्द्र कर्मा को जेड श्रेणी की सुरक्षा पहले से प्राप्त थी। इसके बावजूद नक्सली 8 नवम्बर 2012 को दंतेवाडा जिले में उन पर हमला करने में कामयाब रहे। उनकी गाडी विस्फोट में ध्वस्त हुई और किस्मत से श्रीकर्मा बाल-बाल बचे। इस घटना के बाद रमन सिंह सरकार को समय रहते चेत जाना चाहिए था। आवश्यक प्रबंध किये जाने चाहिये थे। अतिरिक्त सुरक्षा देकर एक विशेष सुरक्षा कार्य योजना श्री कर्मा जी के लिए बनायी जानी चाहिए थी। एक तरफ तो कर्मा जी ने तो पार्टी लाईन से ऊपर उठकर राज्य और बस्तर के व्यापक हित में सलवा जूडूम में रमन सिंह सरकार को सहयोग दिया था। उसके बावजूद उनकी सुरक्षा को नजरअंदाज करना, यह साफ बताता है कि रमन सिंह सरकार श्री कर्मा जी की सुरक्षा के लिए गंभीर नही थी। मै चूकि मिडिया विभाग का प्रभारी था इसलिए मुझे यह ज्ञात है कि कर्मा जी ने कई पत्र लिखकर अतिरिक्त सुरक्षा की माँग की थी। हमले के बाद मै उनसे मिला था और उन्होंने भी हमें यह बात बतायी थी।

जेड$ श्रेणी में ही देशभर में कुछ प्रमुख लोगों को ब्लैक कैट कमाण्डों (एन.एस.जी.) सुरक्षा भी दी गयी है। रमन सिंह सरकार ने जनवरी/2013 में ही मुख्यमंत्री रमन सिंह के लिए केन्द्र सरकार से ब्लैक कैट कमाण्डों सुरक्षा मांगी थी और वह उन्हें प्रदान करने का निर्णय फरवरी/2013 में ही कर लिया गया था। मैं अपने कथन के समर्थन में प्रेस ट्रस्ट ऑफ इण्डिया (पी.टी.आई.) द्वारा जारी समाचार जो कि इकानॉमिक टाइम्स और फर्स्ट पोस्ट जैसे प्रतिष्ठित मिडिया में 6 फरवरी 2013 को प्रकाशित हुआ, उसकी प्रति साथ में संलग्नक 2 के रूप में संलग्न कर रहा हूँ।

श्री महेन्द्र कर्मा पर नवम्बर/2012 का हमला होने के बाद भी उनके लिए राज्य सरकार ने इस तरह ब्लैक कैट कमाण्डो देने की मांग नही की और न ही उनकी सुरक्षा का कोई उचित आंकलन किया। झीरम घाटी की घटना के दौरान भी उनके सुरक्षा मानदंडों के अनुसार सुरक्षा उनको नहीं दी गयी। पर्याप्त आरओपी न होना और सुरक्षा मानको के अनुसार जवान और बल साथ में नहीं होना ही घटना होने के प्रमुख कारण है।

जांच बिन्दु क्र. 3- गरियाबंद जिले में जुलाई 2011 में स्व. नंद कुमार पटेल के काफिले पर हुये हमले के पश्चात् क्या स्व. पटेल एवं उनके काफिले की सुरक्षा हेतु अतिरिक्त सुरक्षा उपलब्ध कराई गई थी और क्या उन अतिरिक्त सुरक्षा मानकों का पालन झीरम घाटी घटना के दौरान किया गया?

स्व. नंदकुमार पटेल अविभाजित मध्यप्रदेश की सरकार में और छ.ग. की पहली सरकार में भी गृहमंत्री रहे। 2003 और 2008 में भी उन्होंने विधानसभा चुनाव बड़े बहुमत से जीता था और मार्च/2011 में वो प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये गये। अध्यक्ष बनने के साथ ही उन्होंने पूरे राज्य का दौरा करना शुरू कर दिया था, इसमें नक्सल प्रभावित इलाके भी शामिल थे। अध्यक्ष बनने के पूर्व स्व. पटेल को एक्स श्रेणी की सुरक्षा दी गयी थी। अध्यक्ष बनते साथ ही उनकी सुरक्षा श्रेणी में कोई परिवर्तन राज्य सरकार ने नहीं किया। उस वक्त कांकेर और केशकाल विधायक सुमित्रा मारकोले और संत राम नेताम को भी जेड श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त थी, जबकि उनके क्षेत्र सामान्य रूप से ही प्रभावित थे। स्व. पटेल बस्तर लोकसभा के उपचुनाव में भी अंदर अंदर के क्षेत्रों में दौरे पर गये थे। उसके बाद भी उनकी सुरक्षा श्रेणी नहीं बढायी गयी।

19 जुलाई 2011 को गरियाबंद जिले में धुरवागुड़ी के किसान सभा कार्यक्रम से लौटते समय नंदकुमार पटेल जी के काफिले पर नक्सली हमला हुआ था, जिसमें कांग्रेस के कार्यकर्ता शहीद हो गये थे। इस तरह का हमला राज्य में बहुत ही कम राजनेताओं पर हुआ था। जाहिर है इस घटना के बाद उन्हें सर्वोच्च स्तर की जेड$ सुरक्षा दी जानी चाहिए थी पर घटना के 5-6 महीने बाद उनकी सुरक्षा श्रेणी जेड ही की गयी।

चूंकि नंद कुमार पटेल विभिन्न कार्यक्रमों में बडा काफिला लेकर शामिल हो रहे थे, उनके काफिले में भी विशेष सुरक्षा दस्ते (काम्बेट टीम) विशेष रूप से नक्सली क्षेत्र में तैनात किया जाना चाहिए था परन्तु इस संबंध में कोई पहल नहीं की गयी।

मैं स्व. पटेल के साथ लगातार संपर्क में था, इसलिए इस बात को जानता हूं कि पुलिस विभाग के बडे अधिकारी श्री मुकेश गुप्ता और श्री आर.के.विज ने स्वयं आकर स्व. पटेल को आश्वस्त किया था कि आप के साथ विशेष सुरक्षा दस्ते की स्थायी तैनाती तो नहीं कि जा रही है पर नक्सल क्षेत्रों में आवश्यकतानुसार आवश्यक तैनाती हर हाल में रहेगी।

स्व. पटेल चूंकि गृह मंत्री रहे थे और उक्त अधिकारी उनके मातहत काम कर चुके थे, उनकी बातों पर भरोसा कर गये। जून/2012 में जब सारकेगुडा नरसंहार धुर नक्सल क्षेत्र में हुआ था, तब कांग्रेस पार्टी का जांच दल लेकर स्व. पटेल स्वयं गये थे और उस दौरान अतिरिक्त सुरक्षा दस्ते और आई.पी.एस. स्तर के अधिकारी उनके दौरे में साथ रहे थे लेकिन झीरम घाटी घटना के दिन ही श्री पटेल या उनके काफिले को कोई भी अतिरिक्त सुरक्षा दस्ता उपलब्ध नहीं कराया गया, जिसके कारण सुरक्षा व्यवस्था नक्सलियों के सामने एकदम कमजोर पड़ गया।

गरियाबंद हमले में भी आई.ई.डी. ब्लॉस्ट कर पटेल जी के काफिले में शामिल गाड़ी उडायी गयी थी, उसे देखते हुये रोड ओपनिंग में आई.ई.डी. को विशेष रूप से जांचना चाहिए था। झीरम घाटी में लगायी गयी आई.ई.डी. पुलिया के नीचे लगायी गयी थी, अर्थात उस दिन रोड ओपनिंग भी नहीं की गयी, अन्यथा उक्त आई.ई.डी. पहले ही दिखायी दे जाती। मेरा स्पष्ट मानना है कि झीरम घाटी हमले के दौरान स्व. पटेल एवं उनके काफिले की सुरक्षा पर आपराधिक लापरवाही बरती गयी, जिसका दुखद परिणाम आज भी हम भोग रहे है। यह सीधे-सीधे एक आपराधिक राजनैतिक षड़यंत्र था।

जांच बिन्दु क्र. 4-क्या राज्य में नक्सलियों के द्वारा पूर्व में किये गये बड़े हमलों को ध्यान में रखते हुये नक्सली इलाकों में यात्रा आदि हेतु किसी निर्धारित संख्या में या उससे भी अधिक बल प्रदाय करने के कोई दिशा-निर्देश थे? यदि हां तो उनका पालन किया गया? यदि नहीं तो क्या पूर्व के बड़े हमलों की समीक्षा कर कोई कदम उठाये गये?

मेरा कथन : मैने कोई शासकीय रिकार्ड तो नही देखा है, पर ये सामान्य समझ-बूझ का विषय है कि पहले हो चुके बडे हमलों जैसे तारमेटला, मदनवाडा, रानीबोदली आदि जिसमें 150-200 सशस्त्र नक्सली हमले में शामिल थे, से सीख लेते हुए, पर्याप्त सुरक्षा जवान कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के साथ तैनात किये जाते। परिवर्तन यात्रा में वरिष्ठ नेताओं के निजी सुरक्षा कर्मियों और फॉलोपायलट के अलावा कोई अतिरिक्त बल तैनात नहीं था। मैं अपने शपथ पत्र के साथ 7 मई 2013 को पत्रिका समाचार पत्र की प्रतिलिपि संलग्न कर रहा हूं। इसमें माओवादियों के द्वारा विकास यात्रा और परिवर्तन यात्रा दोनो के ही विरोध किये जाने का जिक्र है। बस्तर संभाग की यात्रा में विकास यात्रा को तो हजारों जवानों की सुरक्षा दी गयी, पर परिवर्तन यात्रा को जानबूझकर बिना सुरक्षा के छोड दिया गया। विकास यात्रा के साथ बडी संख्या में पुलिस जवानों की तैनाती स्पष्ट रूप से माओवादियों के द्वारा बडे दल के रूप में किसी हमले की संभावना को मनोवैज्ञानिक रूप से पहले ही निष्फल करने के तहत किया गया था जबकि कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को नक्सलियों के लिए ‘‘साफ्ट टारगेट’’ के रूप में छोड दिया गया। जुलाई 2013 के विधानसभा सत्र में राज्य सरकार ने 23 मई, 24 मई और 25 मई को परिवर्तन यात्रा को दी गयी सुरक्षा के संबंध में जानकारी दी गयी है। इसके अनुसार 25 मई को बस्तर जिले जिसमें परिवर्तन यात्रा लगभग 45 किलोमीटर की दूरी तय कर रही थी, केवल 125 का बल इस पूरे 45 किलोमीटर के क्षेत्र में तैनात था। इसमें भी अधिकांश बल शाम 4.00 बजे केशलूर में होने वाले कार्यक्रम में तैनात था। एन.आई.ए. द्वारा प्रस्तुत चार्जशीट के अनुसार केवल 29 पुलिसवाले परिवर्तन यात्रा के साथ थे। मै शपथ पत्र के साथ 16 जुलाई 2013 को विधानसभा में प्रश्न क्रमांक 184 का उत्तर साथ में संलग्नक 3 के रूप में संलग्न कर रहा हूं।

जाँच बिंदु क्र. 5  नक्सल विरोधी ऑपरेशन में और विशेषकर टी.सी.ओ.सी. की अवधि के दौरान यूनिफाईड कमाण्ड किस तरह अपनी भूमिका निभाती थी घ् यूनिफाईड कमाण्ड के अध्यक्ष के कर्तव्य क्या थे और क्या यूनिफाईड कमाण्ड के तत्कालीन अध्यक्ष ने अपने उन कर्तव्योंका उपर्युक्त निर्वहन किया घ्

मेरा कथन : मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह यूनिफाईड कमाण्ड के अध्यक्ष थे। जाहिर है उनकी सहमति और अनुमति से ही यूनिफाईड कमाण्ड की बैठक आयोजित हो सकती थी। 2013 मेंं झीरम घाटी घटना के पूर्व युनिफाईड कमाण्ड की कोई भी बैठक आयोजित नही की गयी, जबकि हर गर्मी के मौसम में नक्सली अपना विशेष अभियान टी.सी.ओ.सी. (टेक्टिकल काउन्टर ऑफेन्सिव कैम्पैन) चलाकर बडे हमले करते रहे है। अतः उसके पहले यूनिफाईड कमाण्ड की बैठक होना एक आवश्यकता ही है। यूनिफाईड कमाण्ड के आदेश पर ही सभी प्रकार के बलों की तैनाती होती है। केन्द्र सरकार के करीब 40,000 सशस्त्र बल राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अध्यक्षता वाली यूनीफाईड कमांड के अधीन थें। मुख्यमंत्री जब अपनी विकास यात्रा निकालने वाले थे तब बकायदा कलेक्टर और एस.पी. कांन्फ्रेन्स करके विकास यात्रा की सुरक्षा और सफलता सुनिश्चित कर रहे थे लेकिन परिवर्तन यात्रा की सुरक्षा के लिए कोई कलेक्टर एस.पी. कांन्फ्रेन्स तो दूर कोई सुरक्षा तैयारी नही करायी। मै अपने शपथ पत्र के साथ दैनिक हरिभूमि अखबार में प्रकाशित समाचार पत्र की प्रतिलिपि संलग्न कर रहा हूं। जिसमें विकास यात्रा के पूर्व ली गयी कलेक्टर एस.पी. कान्फ्रेन्स का स्पष्ट उल्लेख है। ऐसा कुछ भी परिवर्तन यात्रा के लिए भाजपा सरकार के मुखिया रमन सिंह के द्वारा नहीं किया गया। हरिभूमि समाचार पत्र में प्रकाशित कलेक्टर एस.पी. कांन्फ्रेन्स विकास यात्रा विषय पर दिनांक 16/04/2013 की कटिंग संलग्नक 4 के रूप में शपथ पत्र के साथ संलग्न है।

नक्सलियों की लडाई और लोकतंत्र और जनप्रतिनिधियोंं के साथ है इसलिए सभी जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा स्पष्ट रूप से यूनिफाईड कमाण्ड के मेन्डेट के अंतर्गत आता है और उसके तत्कालीन अध्यक्ष, मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह अपनी इस जिम्मेदारी को निभाने मे पूरी तरह विफल रहे है।

उन्होंने अपनी विकास यात्रा की सुरक्षा तो सुनिश्चित की परन्तु  जानबूझकर परिवर्तन यात्रा की सुरक्षा की समीक्षा के लिए न तो एस.पी. कांन्फ्रेन्स की और न ही युनीफाईड कमांड की कोई बैठक बुलाईं। जबकि इन दोनो ही यात्राओं के विरोध की धमकी नक्सलियों के द्वारा पहले ही दी चुकी थी।

जांच बिन्दु क्र. 6-25 मई 2013 को बस्तर जिले में कुल कितना पुलिस बल मौजूद था? परिवर्तन यात्रा कार्यक्रम की अवधि में बस्तर जिले से पुलिस बल दूसरे जिलों में भेजा गया? यदि हां तो किस कारण से और किसके आदेश से? क्या इसके लिये सक्षम स्वीकृत प्राप्त की गई थी?

मेरा कथन : विधानसभा में 16 जुलाई 2013 को दिये गये जवाब में राज्य सरकार द्वारा केवल बस्तर जिले के थानों मे उपस्थित बल के बारे में बताया था परन्तु बस्तर जिले में परिवर्तन यात्रा कार्यक्रम की अवधि मई 2013 के समय कितना अन्य बल (छ.ग. सशस्त्र बल, केन्द्रीय सशस्त्र बल, एवं अन्य बल, एस.पी.ओ.) मौजूद था, इसकी जानकारी नहीं दी गयी। केन्द्र सरकार के द्वारा लगभग 40 बटालियन (लगभग 40000) का बल राज्य को दिया गया था, इसके अलावा 20000-25000 छ.ग. के सशस्त्र बल भी थे। इसमें से बस्तर जिले में 25 मई 2013 को परिवर्तन यात्रा की तैनाती के लिए केवल 125 का बल उपलब्ध कराया गया। यह साफ तौर पर दुर्भावना और आपराधिक, राजनैतिक साजिश का जीताजागता सबूत है। कई मिडिया में इस तरह के समाचार भी प्रकाशित हुए थे कि 24 मई को ही बस्तर जिले से पुलिसबल को  अन्य जिलों में रवाना किया गया था।

जांच बिन्दु क्र. 7-क्या नक्सली किसी बड़े आदमी को बंधक बनाने के पश्चात् उन्हें रिहा करने के बदले अपनी मांग मनवाने का प्रयास करते रहे है? स्व. नंद कुमार पटेल एवं उनके पुत्र के बंधक होने के समय ऐसा नहीं करने का कारण क्या था?

मेरा कथन : नक्सली अपहरण को एक रणनीति के रूप में इस्तेमाल करते रहे है। यह तत्थ्य विभिन्न मिडिया समाचारों से भी जाहिर होता है। फर्स्ट पोस्ट में 25 अर्प्रल 2012 को छपे समाचार का शीर्षक है ‘‘ द माओइस्ट मंत्राः किडनैप, डिमाण्ड एण्ड प्रोसपर’’ इस समाचार में किसी तरह माओवादी अपहरण को एक रणनिति के रूप में इस्तेमाल कर अपनी विभिन्न मांगे पूरी कराते हे उसका ब्यौरा है। इसी तरह का समाचार टाइम्स ऑफ इण्डिया में 19 फरवरी 2011 को प्रकाशित हुआ था, इसका शीर्षक है ‘‘ माओइस्ट वेन कार्नड टर्न टू किडनैप स्ट्रेटजी’’ इसमें 1987 से बाद तक माओवादियों की इस रणनिति पर जानकारी दी गयी है। जाहिर है कि माओवादी किसी भी बडे व्यक्ति को अपहरण करने के बाद उसके बदले में बहुत ही मांगे पूरी कराते रहे है। यह रणनीति झीरम घाटी में स्व. पटेल के बंधक होने के बाद माओवादियों द्वारा नही अपनायी गयी। जबकि केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व की सरकार थी और उस पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष उनके कब्जे में था। इस पूरे घटनाक्रम में एक अन्य तथ्य बहुत महत्वपूर्ण है कि स्व. नंदकुमार पटेल के सुपुत्र स्व. दिनेश पटेल जो किसी भी तरह नक्सलियों के निषाने पर नहीं थे उन्हें पहचान लेने के बाद उनकी निर्मम हत्या की गई। ऐसा नक्सलवादी सामान्यतः नहीं करते हैं। वस्तुतः स्व. दिनेष पटेल स्व. नंद कुमार पटेल की समस्त राजनैतिक योजनाओं और कार्यक्रमों का रिकार्ड रखते थे। उनकी हत्या किया जाना सीधे-सीधे किसी राजनीतिक साजिश का हिस्सा है, जिसमें बैकडोर से भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री की सहमति से माओवादियों के साथ कोई डील की गयी है। ऐसा आरोप मै इसलिए लगा रहा हूं कि 23 मई 2013 को स्व. दिनेश पटेल ने मुझे मैसेज भेजकर बताया था कि परिवर्तन यात्रा समाप्ति के पश्चात 15 जून को पीसीसी रमन सिंह को लेकर बडा खुलासा करेगी जिसके बाद मुख्यमंत्री और अन्य मंत्री का इस्तीफा निश्चित है। उक्त एस.एम.एस. के माध्यम से भेजे गये संदेष को स्व. दिनेष पटेल ने मोबाईल नं. 94525-75678 से मुझे भेजा था।

मै यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि यह आरोप और इस जांच की मांग के लिए खरसिया पुलिस थाने में एक शिकायत 12 जुलाई 2013 को विस्तृत ब्यौरे के साथ की गयी थी। यह शिकायत कुछ कांग्रेसजनों द्वारा खरसिया थाना रायगढ़ में की गयी थी जिसकी हस्ताक्षरित प्रति शपथ पत्र के साथ संलग्न है। इसकी मूल प्रति और संलग्न दस्तावेज खरसिया थाने से प्राप्त किये जा सकते है। इस शिकायत पर न तो राज्य पुलिस ने कोई कार्यवाही की और न ही एन.आई.ए. के द्वारा कोई जांच की गयी हैं।  मै शपथ पत्र के साथ उक्त शिकायत की प्रति एवं मोबाईल मैसेज का प्रिन्ट आउट संलग्नक 5 के रूप में संलग्न कर रहा हूं।

25 मई, 2013 को जीरम घाटी में शाम 4.15 बजे हुए हमले की सूचना 15 मिनट के भीतर नजदीक के दरभा, तोंगपाल पुलिस थानों और जगदलपुर तथा रायपुर तक पहुंच चुकी थी बावजूद इसके न तो नेताओं को बचाने के लिए सषस्त्र बलों की टुकड़ियों को भेजा गया न ही हेलीकाप्टर आदि से हवाई हमला नक्सलियों पर किया गया। जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दरभा और तोंगपाल थानों में बार-बार सषस्त्र बलों को जीरम घाटी जाने का अनुरोध किया तो यही बताया गया कि शासन से ऐसे आदेष नहीं मिले हैं। यह महत्वपूर्ण है कि घटना प्रारंभ होने के बाद करीब डेढ़ से दो घंटे से अधिक समय तक स्व. पटेल व स्व. कर्मा आदि बड़े नेता जिंदा थे अगर शासन ने समय पर सशस्त्र बल भेजा होता तो उनकी जानें बचाई जा सकती थी। बचाव के लिए तुरंत अतिरिक्त बल न भेजना स्पष्ट रूप से छ.ग. सरकार और उसमें बैठे लोगो की अपराध में संलिप्तता बताता है। यह साजिश की गयी थी कि स्व. महेन्द्र कर्मा नक्सलियों की हिट लिस्ट में थे, उनकी सुरक्षा कम रखने के एवज में माओवादियों को स्व. नंदकुमार पटेल एवं दिनेश पटेल की हत्या करने की सुपाडी रमन सिंह सरकार ने दी थी। यही कारण है कि स्व. पटेल के साथ-साथ उनके पुत्र को भी नक्सलियों ने मार दिया और उसका लैपटाप और मोबाईल आदि सभी साथ ले गये। यह स्पष्ट है कि घटना के 2 घण्टे के बाद जगदलपुर की तरफ से तो पुलिस बल भेजा गया परन्तु सुकमा के तरफ के रास्ते को नक्सलियों को भागने के लिए खुला छोडा गया। स्वयं सुकता का एस.पी. मुख्यालय में न होकर मिनपा में था। जब राज्य के प्रमुख विपक्षी राजनैतिक दल परिवर्तन यात्रा का कार्यक्रम सुकमा में था तो परिवर्तन यात्रा की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी क्यों नहीं निभाई गयी? यह सब कुछ बिना सोची समझी साजिश के संभव नही हैं।

बस्तर क्षेत्र से कुल 12 विधायक चुन कर आते हैं और छत्तीसगढ़ की 90 सदस्यीय विधानसभा में इसका भारी महत्व है। छत्तीसगढ़ में अब तक तीन सरकारों ने शासन किया है। 2000 में जब कांग्रेस की सरकार बनी तब 90 में से 48 विधायक कांग्रेस के थे। इन 48 में से 11 विधायक बस्तर क्षेत्र के थे। 2003 में भाजपा की सरकार में भी 9 विधायक बस्तर क्षेत्र के थे। 2008 में बनी भाजपा सरकार में पुनः 11 विधायक बस्तर क्षेत्र से चुनकर आये थे। अर्थात यह साफ है कि छत्तीसगढ़ की सरकार बनाने में सर्वाधिक भूमिका बस्तर क्षेत्र की रही है। स्व. नंद कुमार पटेल ने अध्यक्ष बनने के बाद से ही बस्तर क्षेत्र में काफी मेहनत की थी और सुरक्षा बलों द्वारा नकली मुठभेड़ में आम आदिवासियों के मारे जाने का भारी विरोध किया था। चूंकि  2008 चुनाव में भाजपा के बस्तार क्षेत्र से जीते 11 विधायकों में से 4 काफी कम अंतर से जीत कर आये थे। आम जनता में यह धारणा बन चकी थी कि इस बार समभवतः 6-8 विधायक कांग्रेस पार्टी के जीतने वाले थे। इन परिस्थितियों में भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह जो सरकार बदलने की स्थिति में भ्रष्टाचार के मामलों के उजागर हो जाने से घबराये हुए थे बस्तर में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को एक बड़ी बाधा के रूप में देख रहे थे।

सामान्य रूप से नक्सली पटेल और उनके लडके को बंधक बनाकर राज्य और केन्द्र सरकार से कई मांगे पूरी करा सकते थे। जाहिर है उससे बडी कोई डील उन्हे दी गयी जिसके कारण स्व. पटेल एवं उनके पुत्र की हत्या की गयी। यह भी उल्लेखनीय है कि पहले तो नक्सलियों ने बयान जारी कर स्व. पटेल की हत्या को उचित ठहराया बाद में कुछ महीने बाद उस पर खेद भी व्यक्त कर दिया। हिट लिस्ट में न होने के बाद भी पिता पुत्र की हत्या राजनितिक साजिश का ही परिणाम है, क्योंकि स्व. पटेल के नेतृत्व में कांग्रेस पूरे राज्य और विशेषकर बस्तर जहां से 12 विधायक चुनकर आते है को कांग्रेसमय बना चुकी थी और इस बार राज्य में भाजपा की पराजय निश्चित थी। सत्ता परिवर्तन से इसी खतरे को देखते हुए ही यह पूरी साजिश रची गयी।

कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के पहले बस्तर में भाजपा विकास यात्रा निकली थी। विकास यात्रा का बस्तर दौरा जब समाप्त हो रहा था, तब ही माओवादियों की परिवर्तन यात्रा और विकास यात्रा के विरोध की धमकी की जानकारी आयी थी। हमारे सामने पटेल जी ने इसपर तत्कालीन डीजीपी से चर्चा की थी। उस समय नंदकुमार पटेल के पुत्र दिनेश पटेल ने स्वयं मुझसे कहा था कि बिना पूरी सुरक्षा के आश्वासन के मैं पापा को नहीं जाने दूंगा। दो बड़े पुलिस अधिकारी श्री मुकेश गुप्ता एवं आर.के.विज ने आकर नंद कुमार पटेल को भरोसा दिया था कि परिवर्तन यात्रा को पूरी सुरक्षा दी जायेगी। मैं उस मीटिंग के समय पटेल जी के ही साथ ही और उनके निवास में ही था। चर्चा व्यक्तिगत हुई थी परन्तु उसके बाद नंदकुमार पटेल ने मुझे बताया था कि सुरक्षा का पूरा भरोसा पुलिस अधिकारियों के द्वारा दिलाया गया है। यह पूरा भरोसा दिलाकर उनका बस्तर क्षेत्र जाना सुनिश्चित किया गया था।

जांच बिन्दु क्र. 8-सुकमा के तत्कालीन कलेक्टर, श्री अलेक्स पाल मेनन के अपहरण एवं रिहाई में किस तरह के समझौते नक्सलियों के साथ किये गये थे? क्या उनका कोई संबंध स्व. महेन्द्र कर्मा की सुरक्षा से था?

मेरा कथन : बस्तर के तत्कालीन कलेक्टर अलेक्स पॉल मेनन की रिहाई के संबध में बहुत सी बाते कही गयी है, परन्तु समझौते और बातचीत का विस्तृत ब्यौरा कभी सामने नही आया। 16 जुलाई 2013 को विधानसभा में प्रश्न क्र 189 के तहत दी गयी जानकारी के अनुसार निर्मला बुच समिति की 6 बैठक होने का जिक्र है, परन्तु उसके मिनट्स नही दिये गये है। अप्रैल-मई 2012 में कलेक्टर अलेक्स पॉल मेनन 12 दिन बंधक रहे थे  इस दौरान कई दौर की बातचीत माओवादियों के मध्यस्थों और सरकार के मध्यस्थें के बीच हुई थी , जिसमें अलग अलग स्तर पर कई मांगे जोडी और घटायी जाती रही। यह आश्चर्यजनक है कि महज एक समिति गठन के नाम पर नक्सलियों ने कलेक्टर को छोड दिया जबकि 2011 में उडीसा के मलकानगिरि कलेक्टर विनील कृष्णा को छोडने बदले में उडीसा सरकार को 5 दुर्दान्त नक्सलियों के जेल से छोडना पडा था।

उडीसा विधानसभा में इस अपहरण के संबंध में बाद में गंभीर आरोप लगे। एक मध्यस्थ के अनुसार चार करोड रूपये का भुगतान कलेक्टर के बदले में और 2 करोड रूपये का भुगतान विधायक हिना हिकाका के बदले में माओवादियों को किया गया था। उक्त संबंध में विभिन्न मिडिया इंडिया टुडे, उडीसा टीवी, टैलीग्राफ, संण्डे इंण्डिन, फ्रन्ट लाईन, आदि में प्रकाशित हुये है। जिन्हे मे सम्मिलित रूप से संलग्नक 6 के रूप में शपथ पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 4 मई 2012 को कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन की रिहाई के तुरन्त बाद छ.ग. के मुख्यमंत्री डां. रमन सिंह ने दिल्ली में प्रेस कांन्फ्रेन्स लेकर कहा था कि छ.ग. सरकार की डिक्सनरी में सलवा जूडूम जैसा कोई शब्द नही है। यह बयान उस मुख्यमंत्री ने दिया था, जो 2005 से 2011 तक लगातार सलवा जूडूम के नाम पर एक बडा नक्सल विरोधी अभियान चलवा रहा था। रमन सिंह का उक्त बयान विभिन्न मिडिया रिपोर्टो में उल्लेखित हुआ है। जिन में पत्रिका, द ट्रिब्यूल एवं विभिन्न बेबसाईट उल्लेखित है। इनकी प्रति संयुक्त रूप से संलग्नक 7 के नाम पर संलग्न है।

मुख्यमंत्री के द्वारा दिये गये इस बयान पर आपत्ति जाहिर करते हुए स्व. महेन्द्र कर्मा ने सीक्रेट डील का आरोप लागते हुए यह कहा था कि सलवा जूडूम के लोगो की सुरक्षा से समझौता किया गया है। स्व. कर्मा का दिया गया यह उक्त बयान पत्रिका अखबार में प्रकाशित हुआ था। उसकी 6 मई 2012 की प्रति मै शपथ पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूं। इसी डील में 60 करोड रूपये दिये जाने का आरोप राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री वीरेन्द्र पाण्डेय ने लगाते हुये यह कहा था कि आई.जी. स्तर के अधिकारी के हवाले यह जानकारी उन्हे प्राप्त हुई है। श्री पाण्डेय का उक्त बयान द संडे इंण्डियन ने 9 मई 2012 को प्रकाशित किया था। उक्त दोनो समाचार संलग्नक 8. के नाम से संलग्न है।

झीरम घाटी घटना के बाद स्वयं मुख्यमंत्री डां. रमन सिंह ने पुलिस पार्टी देर से पहुंचना न्यूज 18 को दिये इंटरव्यू में स्वीकार किया था। इस इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकार किया था कि झीरम घाटी इलाका इतना सेन्सटिव है कि 100 पुलिस जवान भी अगर एक साथ निकले, उन पर भी अटैक हो सकता है। इतना होने पर भी परिवर्तन यात्रा के साथ महज 29 पुलिस जवान थे, जैसा कि एन.आई.ए. रिपोर्ट कह रही है। इस इंटरव्यू में मुख्यमंत्री ने यह भी स्वीकार किया कि बस्तर के कई इलाकों में मै हैलीकाप्टर से जाता हूं। सुरक्षा कारणों से कांग्रेस पार्टी की परिर्वन यात्रा के लिए भी हेलिकाप्टर देकर वायुमार्ग से जाने का विकल्प दिया जा सकता था, जो कि नही दिया गया।

मैं अपने द्वारा प्रदत्त जानकारी के संबंध में दस्तावेजों की छायाप्रति प्रस्तुत कर रहा हूँ। मैने मिडियो के समाचारों के प्रिन्ट आउट स्वयं अपने कम्प्यूटर पर उक्त समाचार को डाउनलोड करके लिए है और उनमें किसी तरह कि छेडछाड नही की गयी है। मेरा कम्प्यूटर पूरी तरह उचित रूप से कार्य कर रहा था। अतः इलेक्ट्रानिक माध्यम से उक्त सभी प्रिन्ट आउट मूल रूप के ही सत्य प्रतिलिपि है। एवं आयोग द्वारा आहूत किये जाने पर अथवा साक्ष्य के समय दस्तावेजों की मूल प्रति प्रस्तुत करूंगा/करूंगी।

शपथकर्ता
सत्यापन

मै शैलेश नितिन त्रिवेदी उपरोक्त शपथकर्ता निम्न सत्यापन करता हूॅ कि कंडिका 1 से कंडिका 8 तक की जानकारी मेरे व्यक्तिगत ज्ञान एवं मीडिया स्त्रोतों के ज्ञान के मुताबिक सत्य है और इस पर विष्वास कर मै यह षपथ पत्र दे रहा हूॅं।

अतः आज दिनांक ……………………………. को स्थान ……………………… में सत्यापित कर अपना हस्ताक्षर किया।

शपथ कर्ता

झीरम घटना की जांच में 8 नये बिन्दु

1 नवंबर 2012 में स्व. महेन्द्र कर्मा पर हुये हमले के पश्चात् क्या उनकी सुरक्षा की समीक्षा प्रोटेक्शन रिव्यू ग्रुप के द्वारा की गई थी?
2 स्व. महेन्द्र कर्मा को नवंबर 2012 में उन पर हुये हमले के पश्चात्, उनके द्वारा मांगी गई अतिरिक्त सुरक्षा की मांग पर किस स्तर पर विचार निर्णय किया गया था और उस पर क्या कार्यवाही की गई थी?
3 गरियाबंद जिले में जुलाई 2011 में स्व. नंद कुमार पटेल के काफिले पर हुये हमले के पश्चात् क्या स्व. पटेल एवं उनके काफिले की सुरक्षा हेतु अतिरिक्त सुरक्षा उपलब्ध कराई गई थी और क्या उन अतिरिक्त सुरक्षा मानकों का पालन जीरम घाटी घटना के दौरान किया गया?
4 क्या राज्य में नक्सलियों के द्वारा पूर्व में किये गये बड़े हमलों को ध्यान में रखते हुये नक्सली इलाकों में यात्रा आदि हेतु किसी निर्धारित संख्या में या उससे भी अधिक बल प्रदाय करने के कोई दिशा-निर्देश थे? यदि हां तो उनका पालन किया गया? यदि नही ंतो क्या पूर्व के बड़े हमलों की समीक्षा कर कोई कदम उठाये गये?
5 नक्सल विरोधी आपरेशन में और विशेषकर टी.सी ओ.सी. की अवधि के दौरान यूनिफाईड कमाण्ड किस तरह अपनी भूमिका निभाती थी? यूनिफाईड कमांड के अध्यक्ष के कर्तव्य क्या थे और यूनिफाईड कमाण्ड के तत्कालीन अध्यक्ष ने अपने उन कर्तव्यों का उपर्युक्त निर्वहन किया?
6 25 मई 2013 को बस्तर जिले में कुल कितना पुलिस बल मौजूद था? परिवर्तन यात्रा कार्यक्रम की अवधि में बस्तर जिले से पुलिस बल दूसरे जिलों में भेजा गया? यदि हां तो किस कारण से और किसके आदेश से? क्या इसके लिये सक्षम स्वीकृत प्राप्त की गई थी?
7 क्या नक्सली किसी बड़े आदमी को बंधक बनाने के पश्चात् उन्हें रिहा करने के बदले अपनी मांग मनवाने का प्रयास करते रहे है? स्व. नंद कुमार पटेल एवं उनके पुत्र के बंधक होने के समय ऐसा नहीं करने का कारण क्या था?
8 सुकमा के तत्कालीन कलेक्टर, श्री अलेक्स पाल मेनन के अपहरण एवं रिहाई में किस तरह के समझौते नक्सलियों के साथ किये गये थे? क्या उनका कोई संबंध स्व. महेन्द्र कर्मा की सुरक्षा से था?