अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दुनियाभर के देशों पर लगाए जा रहे भारी भरकम टैरिफ के बीच भारत और चीन एक साथ आ रहे हैं। दोनों देशों के बीच पांच साल से ठप पड़ा बॉर्डर ट्रेड फिर शुरू होने की संभावना है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों देश स्थानीय उत्पादों के आदान-प्रदान के लिए सीमा पर तय व्यापारिक प्वाइंट्स को दोबारा खोलने पर विचार कर रहे हैं. यह कदम दोनों एशियाई पड़ोसियों के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव को कम करने की दिशा में एक अहम संकेत माना जा रहा है. चीन के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को बयान जारी कर कहा कि बीजिंग इस मसले पर भारत के साथ संवाद और समन्वय बढ़ाने को तैयार है. मंत्रालय के अनुसार, ‘सीमा व्यापार लंबे समय से दोनों देशों के सीमावर्ती निवासियों के जीवन को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाता रहा है.’ वहीं, भारत के विदेश मंत्रालय ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार किया है.
भारत और चीन के बीच किन चीजों का व्यापार?
करीब तीन दशकों तक भारत-चीन के बीच मसाले, कालीन, लकड़ी का फर्नीचर, मवेशियों का चारा, मिट्टी के बर्तन, औषधीय पौधे, इलेक्ट्रिक सामान और ऊन जैसे स्थानीय उत्पादों का आदान-प्रदान होता रहा. यह कारोबार तीन तय प्वाइंट्स से 3,488 किलोमीटर लंबी विवादित हिमालयी सीमा के जरिए होता था. हालांकि 2017-18 में इस व्यापार का मूल्य महज 3.16 मिलियन डॉलर था.
कोविड-19 महामारी के दौरान यह व्यापार पूरी तरह बंद हो गया. इसी समय गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद रिश्ते ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गए थे, जिसमें भारत के 20 जवान और चीन के कम से कम 4 सैनिक मारे गए थे.
अब पिघल रही है रिश्तों पर जमी बर्फ
अब संकेत मिल रहे हैं कि रिश्तों में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है. बीते साल दोनों देशों ने सीमा पर तनाव कम करने के लिए कई कदम उठाए. रिपोर्ट्स के मुताबिक अगले महीने भारत-चीन के बीच सीधी उड़ानें भी फिर शुरू हो सकती हैं. साथ ही बीजिंग ने भारत के लिए कुछ उर्वरक निर्यात पर लगी पाबंदियां भी हटाई हैं.
इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगस्त में सात साल बाद पहली बार चीन जा सकते हैं. वे वहां शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) समिट में शामिल होंगे और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय बैठक भी कर सकते हैं.
विशेषज्ञ मानते हैं कि सीमा व्यापार की बहाली केवल आर्थिक पहल नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है. यह दिखाता है कि भारत और चीन आपसी मतभेदों के बावजूद सहयोग के रास्ते तलाश रहे हैं. हालांकि असली परीक्षा इस बात की होगी कि क्या यह पहल दोनों देशों के रिश्तों में स्थायी सुधार का रास्ता खोल पाएगी या नहीं.
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