पुरुषोत्तम पात्रा,गरियाबंद. राजा महाराजाओं और अंग्रजों द्वारा पुराने जमाने में लगान और वर्तमान की सरकारों द्वारा टैक्स वसूलने की बातें तो आपने खुब सुनी होंगी. लेकिन कभी भगवान द्वारा टैक्स वसूलने की बात सुनी है. जी हां भगवान भी लगान वसूलते है, और ये सब होता है गरियाबंद जिले के देवभोग में विराजमान भगवान जगन्नाथ मंदिर में. यहां विराजमान जगन्नाथ भगवान आज भी अपने भक्तों से लगान वसूलते है. 84 गांव के लोग भगवान को आज भी लगान देते है. लगान देने की ये परंपरा 117 साल से निरंतर चली आ रही है. लगान के रुप में चावल और मुंग लिया जाता है. यहां से वसूला गया लगान पुरी के विश्व प्रसिद् भगवान जगन्नाथ मंदिर जाता है और फिर उसी सुगंधित चावल और मुंग का भोग पुरी के जगन्नाथ मंदिर में लगाया जाता है.
बता दें कि भक्त खुद ही अपने स्वेच्छा से यहां लगान भरने आते है. इन पर कोई दबाव नहीं डाला जाता है. जानकारी के मुताबिक देवभोग को पहले कुसुमभोग के नाम से जाना जाता था. इसके अतर्गत आने वाले गांव झरलाबहाल और उसके आप-पास के लोगों द्वारा साल 1901 में बैठक लगाकर तय किया गया कि लगान के रुप में भगवान जगन्नाथ मंदिर को सुगंधित चावल और काला मुंग दिया जाएगा. उसके बाद से ये पंरपंरा आज तक निरंतर चला आ रहा है. वहीं पुरी के जगन्नाथ मंदिर में यहां के अन्न का भोग लगने के बाद से इस जगह का नाम भी कुसुमभोग से देवभोग कर दिया गया.
इस देवभोग की खासियत भी कुछ अलग है. अक्सर घर या मंदिरों के निर्माण में रेत, ईट, पत्थर से तैयार किया जाता है, लेकिन इस मंदिर को बेल, चिवडा, बबूल और अन्य देशी समानों का इस्तेमाल कर बनाया गया है. इसी वजह से मंदिर को बनाने में 46 साल का समय लगा. इतना ही नहीं यह लगान देने की परंपरा 117 साल से चली आ रही है. आज भी देश में कई ऐसे मंदिर है जिनमें लोगों का विश्वास और श्रद्धा बना हुआ है.