रायपुर-  बुधवार को कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल पत्रकारों के पूछे गए सवाल से बौखला गए. मामला किसानों की आत्महत्या का था. सवाल से मंत्री जी इतने गुस्से में दिखाई दिए कि वे पत्रकारों को ही धमकाने लगे. उलटा पत्रकार से पूछने लगे कि ये कोई सवाल है?  फसल बीमा क्या है? आप कहां के पत्रकार हैं?  पढ़े-लिखे हो या नहीं ? आप पत्रकार हो क्या या नहीं ?  मंत्री का ये अंदाज बेदह आपत्तिजनक था, लेकिन जैसे ही मंत्री जी को याद आया कि कैमरे सामने तने हैं, वो फौरन संभल गए और फिर सवाल का  जवाब देने लगे, लेकिन इस नसीहत के साथ की बहस मत करो ?

पत्रकार सवाल पूछे तो बहस करना नहीं होता? तर्क और दलील दे, तो इसे भी बहस नहीं कहते ? लेकिन सत्ता जब पूरे परवान पर चढ़ी हो, तो अच्छे-अच्छे रंग दिखाने लगते हैं और जब सत्ता तीन बार की हो तो फिर कहना क्या? पत्रकारों को मंत्री की दी गई सीख पर प्रतिक्रिया होनी ही चाहिए. आइए बताते हैं कि मामला था क्या ?

दरअसल महासमुंद और धमतरी के मृत किसानों के परिजन उम्मीद की बांट जोहकर कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से मिलने पहुंचे थे. किसानों के मन में इस बात को लेकर टीस थी कि खेती-किसानी के लिए लिए गए कर्ज को नहीं पटा पाने की वजह से उनके अपनों ने दुनिया छोड़ दी, लेकिन सरकारी रिपोर्ट में आत्महत्या की वजह पारिवारिक विवाद बता दिया गया. परिजनों के दिल में पीड़ा थी, तो आंखें डबडबायी हुई, लेकिन उस पर भी मंत्री की संवेदना का मरहम उन्हें नसीब नहीं हुआ. किसान चाहते थे कि जिन हालातों से जूझकर उनके अपनों ने दुनिया से अलविदा कहना ही बेहतर समझा, उन हालातों से उन्हें निजात मिल जाए,  किसान चाहते थे कि कर्ज के जिस बोझ तले वे दबे हैं, उससे उन्हें मुक्ति दिला दी जाए, किसान चाहते थे कि जिस परिवार के किसान की मेहनत से परिवार का पोषण होता था, उन परिवारों की सरकार सुध ले ले, किसान चाहते थे कि बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया करा दी जाए.  लेकिन किसानों के सुख-दुख के हितैषी बनने का तमगा लगाने वाले सरकार के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने किसानों की भावनाओं की कीमत भी तय कर दी. मृत किसानों के परिजनों को स्वेच्छानुदान मद से 25-25 हजार रुपए देने का ऐलान कर दिया.

 

 

किसानों की मंत्री से मुलाकात के बीच मृतक किसानों के परिजन फूट-फूटकर रोने लगे. किसान परिवार मंत्री के उस कांधे का सहारा चाहता था, लेकिन सहारा तो दूर किसानों के हिस्से मंत्री की नाराजगी आई. किसानों की संवेदनाओं पर मरहम लगाने की नौटंकी सिर्फ सरकार के नुमाइंदों ने नहीं की, बल्कि कांग्रेस ने भी भावनाओं को खूब कुरेदा और जमकर छला. कांग्रेस ने ऐलान किया था कि मृत किसानों के परिजनों को 50-50 हजार रूपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी, लेकिन ऐलान करने के बाद शायद कांग्रेस ये सहायता राशि देना भूल गई. किसान इसकी अब भी बांट जोह रहे हैं.

 इधर मंत्री से मुलाकात के पहले महासमुंद और धमतरी के उन तीन किसानों के परिजनों ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर बीजेपी किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष पूनम चंद्राकर के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आत्महत्या करने वाले किसानों ने पारिवारिक विवाद की वजह से आत्महत्या की है. कर्ज की वजह से परेशान होकर एक किसान ने भी आत्महत्या नहीं की. किसानों को सरकार की योजनाओं को लाभ मिल रहा है. मृत किसानों के परिजनों ने कहा कि किसानों के आत्महत्या के पीछे कर्ज ही बड़ी वजह थी.
धमतरी के किसान चंद्रहास साहू के परिजनों ने बैंक के नोटिस की वजह से आत्महत्या की है. महासमुंद जिले के बागबहरा ब्लाॅक के मोखा गांव के किसान मंथिर ध्रुव के परिजनों ने कहा कि उन पर आठ लाख रूपए का कर्ज था. मंथिर के बेटे मोहन ध्रुव ने कहा- ना तो हमे मुआवजा मिला और ना ही सरकार की ओऱ से किसी तरह की मदद. जामगांव के मृतक किसान हीराधर निषाद के परिजनों के मुताबिक खाद्य लेने के लिए लिए गए कर्ज ने उनकी जान ले ली. कर्ज नहीं पटा पाने की वजह से हीराधऱ ने मौत का दामन थामना उचित समझा. साथ ही मुफ्त बिजली देने का दावा करने वाली सरकार ने 3196 रूपए का बिजली बिल भेज दिया.
 बहरहाल किसानों की पीड़ा को सुनकर मंत्री भड़क रहे हैं, सरकार के नुमाइंदों के पास इतना वक्त नहीं कि मृत किसानों के परिजनों से मुलाकात कर लें. इतनी चिंता भी कर ले कि मृत किसान के परिजनों का हाल कितना बेहाल हैं. सरकार के दावे किसानों के परिजनों के दिल के रूदन को और भी सहला रहे हैं,  ये कहते हुए कि किसानों ने कर्ज के बोझ तले आत्महत्या नहीं की है, बल्कि पारिवारिक विवाद की वजह से की है. ऐसे में इन किसानों की चिंता कौन करेगा? किसानों की सुध कौन लेगा? ये बुनियादी सवाल, सवालों में ही गुम ना हो जाए…
देखे वीडियो-
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