रायपुर. पहले सूखा पड़ा. फिर खूब बारिश हुई. फिर शुरु हुई धान खरीदी- मुकर्रर तारीख से कोई एक महीने की देरी से. केंद्र ने रोड़ा अटकाया. राज्य की कांग्रेस ने आंदोलन किया. फिर केंद्र सरकार के आगे झुकी. खूब धड़पकड़ हुई. फिर बेमौसम बारिश हुई. धान भींगे. बारदानों की कमी हुई. टोकन पर किचकिच हुई. खरीद की आखिरी तारीख बढ़ी. फिर चक्का जाम और लाठीचार्ज भी हुआ. उतार चढ़ाव वाले इन तमाम घटनाक्रम के बाद आखिरकार धान खरीदी की प्रक्रिया 20 फरवरी को संपन्न हो गई. लेकिन खरीदी के जब आंकड़े सामने आए हैं तो सारे रिकार्ड टूट चुके थे.

भूपेश सरकार ने धान खरीदी में नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए करीब 82.5 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी शाम तक कर ली है. ये आंकड़ा लगातार बढ़ते जा रहा है. अनुमान है कि इस साल करीब 83 से 84 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी हो जाएगी. जो पिछले साल से 3-4 लाख मीट्रिक टन ज़्यादा और अनुमान से कोई 1 से 2 लाख मीट्रिक टन कम है.

इस साल धान खरीदी में उन सालों के रिकार्ड टूट गए. जब धान खरीदी की प्रक्रिया सुचारु रुप से निर्विघ्न संपन्न हो गई थी. इस दौरान पिछले साल के मुकाबले करीब ढाई लाख ज्यादा किसानों ने धान बेचा है. करीब साढ़े चौदह हज़ार करोड़ की राशि किसानों के खाते में सीधे भुगतान किया जा चुका है.

जिस बस्तर संभाग में धान को लेकर सबसे ज़्यादा कोहराम मचा. उस बस्तर में बंपर धान की खरीदी हुई है. यहां ये आंकड़ा करीब 6 लाख मीट्रिक टन है. जबकि पिछले साल ये 5.3 लाख मीट्रिक टन था.

नया राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में धान खरीदी साल 2000-2001 में शुरु हुई थी. तब करीब साढ़े चार लाख मीट्रिक टन की खरीदी हुई थी. पिछले साल भूपेश सरकार ने अपने पहले साल में करीब 80 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी की थी. जबकि रमन सिंह के कार्यकाल में ये आंकड़ा साल 13-14 में 78 लाख मीट्रिक टन तक पहुंचा था. उस वक्त केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी.

इसके बाद अगले साल नरेंद्र मोदी की सरकार आ गई और उसने धान खरीदी में सीलिंग लगा दिया. इसे घटाकर प्रति एकड़ 15 क्विंटल तय कर दिया गया.  इसके बाद धान खऱीदी का आँकड़ा गिरता चला गया.