इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को बड़ा झटका लगा है. ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य विवाद में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती और स्वामी वासुदेवानंद दोनों को इस पीठ का शंकराचार्य मानने से इंकार करते हुए उनका दावा खारिज कर दिया. कोर्ट ने दोनों संतों की नियुक्ति को गलत माना है. इसके साथ ही न्यायालय ने तीन महीने के भीतर परंपरा के अनुसान नया शंकराचार्य चुनने कहा है.

फैसले के मुताबिक तीन महीने तक यथास्थिति कायम रहेगी. बाकी तीनों पीठो के शंकराचार्य, काशी विद्वत परिषद और भारत धर्म सभा मंडल मिलकर नया शंकराचार्य तय करेंगे. ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की गद्दी में वर्तमान में स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती काबिज हैं और वे अगले तीन महीने तक इस पीठ के शंकराचार्य रहेंगे.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने पिछले साल कई महीने तक इस मामले की डे-टू-डे बेसिस पर सुनवाई की थी. इस मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद इसी साल तीन जनवरी को कोर्ट ने अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था. आपको बता दें कि स्वामी वासुदेवानंद करीब 27 सालों तक ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य पद रहे, लेकिन साल 2015 में इलाहाबाद की जिला अदालत से उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया, जिसके बाद उन्होंने न्यायालय की शरण ली.

यह था विवाद

गौरतलब है कि आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में एक उत्तरखंड के जोशीमठ की ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की पदवी को लेकर विवाद देश की आज़ादी के समय से ही शुरू हो गया था. 1960 से यह मामला अलग- अलग अदालतों में चला. 1989 में स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के गद्दी संभालने के बाद द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने उनके खिलाफ इलाहाबाद की अदालत में मुकदमा दाखिल किया और उन्हें हटाये जाने की मांग की. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद इलाहाबाद की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में करीब तीन साल पहले इस मामले की सुनवाई डे-टू-डे बेसिस पर शुरू हुई थी.

निचली अदालत में दोनों तरफ से करीब पौने दो सौ गवाहों को पेश किया गया था. ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की पदवी को लेकर करीब सत्ताईस साल तक चले मुक़दमे में इलाहाबाद की जिला अदालत ने साल 2015 में पांच मई को स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के हक़ में अपना फैसला सुनाया था. कोर्ट ने 1989 से इस पीठ के शंकराचार्य के तौर पर काम कर रहे स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की पदवी को अवैध करार देते हुए उनके काम करने पर पाबंदी लगा दी थी.

इलाहाबाद जिला अदालत के सिविल जज सीनियर डिवीजन गोपाल उपाध्याय की कोर्ट ने 308 पेज के फैसले में स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की वसीयत को फर्जी करार दिया था. निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी. इस बीच शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने भी हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर मामले का निपटारा जल्द किये जाने की अपील की थी. अपनी अर्जी में उन्होंने कहा था कि उनकी उम्र बानवे साल हो गई थी, इसलिए वह चाहते हैं कि उन्हें इस मामले में जीते जी इंसाफ मिल जाए.