नई दिल्ली। महानायक अमिताभ बच्चन ने दिल्ली स्थित अपना घर ‘सोपान’ को बेच दिया है. दिल्ली के गुलमोहर पार्क में स्थित इस घर को 23 करोड़ रुपये में खरीदा गया है. अमिताभ बच्चन के माता-पिता तेजी बच्चन और हरिवंश राय बच्चन इस घर में रहा करते थे. ये घर अमिताभ की मां तेजी बच्चन के नाम पर था. आकाशवाणी में काम करते हुए तेजी बच्चन को यहां प्लॉट मिला था. पिछले साल इस घर का रजिस्ट्रेशन किया गया था. Nezone ग्रुप के सीईओ अवनी बदेर ने अमिताभ बच्चन का दिल्ली वाला घर ‘सोपान’ खरीदा है.

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बदेर पिछले 35 साल से अमिताभ बच्चन की फैमिली के करीबी रहे हैं. रिपोर्ट की मानें अमिताभ बच्चन की दिल्ली में स्थित यह प्रॉपर्टी 418 स्क्वॉयर मीटर में विस्तृत है. पिछले साल 7 दिसंबर को बदेर ने अपने नाम इस प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन कराया. इस पुराने घर से अमिताभ बच्चन की कई यादे जुड़ी थीं. हालांकि, मुंबई में रहने के लिहाज से दिल्ली वाले घर की देख-रेख करना मुश्किल हो रहा होगा, जिस वजह से उन्होंने इस घर को बेचने का फैसला किया है. उन्होंने अपने ब्लॉग के जरिए कई बार ‘सोपान’ का जिक्र किया था.

काव्य गोष्ठी होती थी आयोजित

1970 के आसपास अमिताभ बच्चन बालीवुड में एक्टिव थे. उनके पिता और मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन और मां तेजी बच्चन के साथ वो यहीं रहते थे. कहा जाता है कि उन दिनों सोपान में काव्य गोष्ठियां खूब आयोजित होती थी. हरिवंश बच्चन खुद कविता पाठ करते थे. उन दिनों की मेहमाननवाजी के कई किस्से आज भी गुलमोहर पार्क में सुने-सुनाए जाते हैं. बताया जाता है कि दिवाली समेत अन्य त्योहार अमिताभ बच्चन यहीं मनाते थे. खूब धूमधाम से त्योहार मनाए जाते थे. अमिताभ बच्चन की डॉन 1978 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म ने अमिताभ को सुपरस्टार बना दिया. फिल्म के सफल होने के बाद अमिताभ अपने मां-पिता को मुंबई लेकर गए. इसके बाद उनका यहां आना बहुत कम हो गया. कभी लंबे समय के लिए अमिताभ यहां नहीं रहे.

हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा का आखिरी अध्याय यहीं लिखा था

हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा का आखिरी चैप्टर इसी सोपान में रहते हुए लिखा था. खुद अमिताभ बच्चन ने इसकी जानकारी साझा की थी. 2016 में शुजीत सरकार की फिल्म पिंक की शूटिंग के सिलसिले में अमिताभ बच्चन दिल्ली आए थे. उस समय अमिताभ यहीं सोपान में रहते थे. उन्होंने एक फोटो ट्वीट की थी, जिसमें लिखा कि पिता जी की कुर्सी पर बैठा हूं. चारों तरफ उनकी किताबें रखी हुई हैं. यहीं पिता ने अपनी आत्मकथा का आखिरी चैप्टर और कई अन्य कविताएं लिखी थीं.