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रायपुर. कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी या अक्षय नवमी कहा जाता है. इस दिन तीनों युगों में विशेष पुण्य कार्य हुए, इसलिए इस दिन का विशेष महत्व है. दान-धर्म का अधिक महत्व होता है. मान्यता है कि दान करने से उसका पुण्य वर्तमान के साथ अगले जन्म में भी मिलता है. शास्त्रों के अनुसार आंवले का पौधा घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं करने देता. सुख-समृद्धि बनी रहती है.
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सतयुग
आज के दिन को सतयुग का प्रारंभ भी माना जाता है. एक कथा के अनुसार मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु और भगवान शिव की एक ही रूप में आंवले के पेड़ की पूजा की थी. दोनों भगवानों को अम्मा मां लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन कराया था. आज के दिन भगवान विष्णु के दामोदर रूप की पूजा की जाती है.
द्वापर युग
आज ही के दिन भगवान विष्णु ने कूष्माण्ड दैत्य को मारा था. इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा की थी. आंवला नवमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन-गोकुल की गलियों को छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था. यही वो दिन था जब उन्होंने अपनी बाल लीलाओं का त्याग कर कर्तव्य के पथ पर कदम रखा था इसीलिए आंवला नवमी के दिन से वृंदावन परिक्रमा भी प्रारंभ होती है. इस दिन से ही द्वापर युग की शुरुआत हुई थी.
कलयुग
आंवला नवमी के दिन शंकराचार्य ने कनक धारा स्त्रोत की रचना कर मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया. कथा के अनुसार शंकराचार्य ने एक वृद्धा की गरीबी दूर करने के लिए स्वर्ण के आंवला फलों की वर्षा करवाई थी. आयुर्वेद में आंवला को प्राकृति का अमृत कहा जाता है. सैकड़ों बीमारियों को जड़ से खत्म करने वाला है ये वृ़क्ष. प्रकृति को सम्मान देने का दिन है. आज आंवले की पूजा, आंवले के रस के स्नान और आंवले का सेवन शरीर को सालभर निरोग रखता है. संतान प्राप्ति के लिए इस नवमी पर पूजा अर्चना का विशेष महत्व है. इस व्रत में भगवान श्री हरि का स्मरण करते हुए रात्रि जागरण करना चाहिए.
आंवला नवमी पूजा मुहूर्त 2022
आज आंवला नवमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 34 मिनट से दोपहर 12 बजकर 4 मिनट तक है. आज आपको आंवला नवमी की पूजा के लिए साढ़े पांच घंटे का समय प्राप्त हो रहा है. शास्त्रों के अनुसार कार्तिक की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ में विद्यमान रहते हैं. इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है.
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