वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। कांग्रेस के भीतर कई कांग्रेस है. मतलब सबके नेता और नेता सबके. कार्यकर्ताओं की पसंद और पंसद के कार्यकर्ता. लेकिन चुनाव जीतना है, तो कई कांग्रेस को एक कांग्रेस में बदलना होगा. पुनिया इसी फार्मूले के साथ छत्तीसगढ़ में पूरा जोर लगा रहे हैं, शीर्ष पंक्ति के नेताओं की बीच मतभेद मिटा रहे हैं. जो नेता एक मंच पर पास-पास होकर भी दूर-दूर रहते हैं उन सबकों एकजुटता का पाठ पढ़ा रहे हैं. जब से प्रभारी बने छत्तीसढ़ में कई दौरा, बैठकें कर चुके हैं. लेकिन 4 नवंबर को दिल्ली लौटने से पहले पुनिया ने जो बैठक ली और बैठक में जो बातें कही, वो अंदर के लोगों ने भले ही कई बार सुनी हो पर बाहर के लोगों ने जिसमें मीडिया प्रमुख है ने पहली बार सुनी.

पुनिया ने 2018 चुनाव को लेकर पार्टी की तमाम लाइनों के बीच एक लाइन खींच दी है. वो लाइन है पार्टी में रहना है, तो पार्टी के लिए काम करना होगा. ना तो जिलाध्यक्षों को नाराजगी को लेकर चलना है, ना ही नेताओं के बीच आपसी मनमुटाव को लेकर. नसीहत की यह पाठ पुनिया ने कुछ तीखेपन से पर बड़े प्यार से कार्यकर्ताओं से लेकर सभी बड़े नेताओं को पढ़ा दिया. इन सबके बीच इशारों में यह भी समझा दिया कि फिलहाल चुनाव तक नेता वर्तमान अध्यक्ष ही है. सबकों उनके साथ ही काम करना है. लिहाजा पार्टी की मजबूती के लिए काम करिए, बस ये सोचिए की सरकार बनानी है. किसके नेतृत्व में बनेगी इस पर से ध्यान हटा लीजिए.

ये तो पुनिया की बात हुई. हालांकि ये बात कई नेताओं के बाद अंत में हुई, लेकिन इससे पहले एक नेता ने बड़े दिनों बाद मंच से खुलकर अपनी बात कही. वैसे ये नेता जी कई महीनों से मीडिया में मौन है. खैर मौन वाले नेता को अगर सुन नहीं पाए तो पढ़िए जरूर.  क्योंकि पूर्व मंत्री ने बात बड़ी अहम कही है. चूंकि उन्होंने ने ही ये बात कही है, इसलिए पार्टी में मौजूदा नेतृत्व के हिसाब से भी बेहद अहम है.

बात उस नेता की हो रही है जिनकी नाराजगी अक्सर खुलकर और विशेषकर संगठन चुनाव को लेकर आती रही है. बात केन्द्रीय मंत्री रह चुके चरणदास महंत की है. जो महंत रायपुर से दिल्ली तक जिलाध्यक्षों के चुनाव के दौरान अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं उसी महंत ने 4 नवंबर को रायपुर स्थित प्रदेश कार्यलय में आयोजित बैठक में कहा- कांग्रेस अब पहले से ज्यादा मजबूत है. “पुनिया जी आपके आने के बाद से कांग्रेस संगठित और एक हो गई है. इसमें कुछ और ऐसा गठान कर दीजिए कि कोई अलग ही ना हो पाए.” महंत के इस बयान के बाद कार्यकर्ताओं के बीच खुलकर तो नहीं, लेकिन भीतर-भीतर चर्चा होते रही. बात मीडिया के सामने थी लिहाजा यहां खुलकर होते रही.  महंत को जो करीब से जानते है वे कुछ हैरान थे, ये सोचकर महंत ने जी ने कभी ऐसी बात खुलकर तो नहीं की थी.

वैसे एक चर्चा कांग्रेस के भीतर कई कांग्रेस में आमतौर पर होते रही है, अभी भी होती है. चर्चा नेतृत्व परिवर्तन को लेकर है. जिस पर पहले ही विराम कांग्रेस प्रभारी लगा चुके हैं. शायद अब ये बात शीर्ष पंक्ति के उन नेताओं को भी समझ में आने लगी है, जो शायद कयासों में ही सही पर लगाते रहे हो कि देर-सबेर क्या पता कब परिवर्तन हो जाए. परिवर्तन की आश में कई की प्यास भी कभी-कभी बड़ी नज़र आई. कुछ ने रायपुर से लेकर दिल्ली तक दौड़ लगाई है. लेकिन इस दौड़ में फिलहाल सब पिछड़े ही नजर आते हैं. और मौजूदा नेतृ्त्व पर ही दिल्ली का भरोस ज्यादा प्रबल दिखता है.

ऐसे हालात में अगर कोई नेता और वो नेता जिनके विरोध को सब देख चुके हैं, वो सहज रूप में विमन्रतापूर्वक ये कहें कि पुनिया जी इस गठान को और मजबूत कर दीजिए. मतलब कोई तो संकेत है जो मिल रहे हैं. शायद इसी संकेत को पुनिया ने भी भांपा है. तभी उन्होंने बैठक की समाप्ति अपने भाषण के उस पंक्ति के साथ की है कि सब भूल जाइए, मतभेद, विरोध, अपना-पराया और बस याद रखें कि सरकार सिर्फ कांग्रेस की ही बने.

जाहिर तौर पर तमाम जवाबों के बीच फिर भी एक सवाल सबके जहन में बना रहा. मीडिया वालें इस सवाल का जवाब पुनिया से भी जानने आतुर थे और महंत से भी. लेकिन दोनों ही नेता इस पर मौन रहें. वैसे मौन रहना ज्यादा लाजिमी है. क्योंकि एकता पर अगर नेताओं के सुर एक ना होकर अलग-अलग हो गए तो फिर तमाम पाठ और गठान सब धरे के धरे ही रह जाएंगे. लिहाजा ना पुनिया बोले और ना महंत बोले. वैसे भी महंत तो मीडिया मौन ही है.

खास तौर पर टीवी मीडिया से बड़े दूर भागते हैं. कल तक लाइट कैमरा में एक्शन की मुड में रहते थे, अब कैमरा देखते ही बचने वाले रिएक्शन के मुड में रहते हैं. मतबल साफ है कांग्रेस के भीतर अब कई कांग्रेस ना चलकर एकला से एक होकर चलो ही चलना है वो भी मौजूदा नेतृत्व के संग-संग.